Contents
- 1. इस्लामी तारीख
- हज़रत इस्हाक़ (अ.स) की खुसूसियत व अज़मत
- 2. हुजूर (ﷺ) का मुअजिजा
- हज़रत फातिमा (र.अ) के चेहरे का रोशन हो जाना
- 3. एक फर्ज के बारे में
- तमाम रसूलों पर ईमान लाना
- 4. एक सुन्नत के बारे में
- कनाअत और सब्र हासिल करने की दुआ
- 5. एक अहेम अमल की फजीलत
- तकलीफों पर सब्र करना
- 6. एक गुनाह के बारे में
- नाप तौल में कमी करने का गुनाह
- 7. दुनिया के बारे में
- दुनिया की मुहब्बत
- 8. आख़िरत के बारे में
- कब्र से इन्सान किस हाल में उठेगा
- 9. तिब्बे नबवी से इलाज
- खजूर से पसली के दर्द का इलाज
- 10. नबी (ﷺ) की नसीहत
- इस तरह से सलाम करे
26. मुहर्रम | सिर्फ़ 5 मिनट का मदरसा
26 Muharram | Sirf Paanch Minute ka Madarsa
1. इस्लामी तारीख
हज़रत इस्हाक़ (अ.स) की खुसूसियत व अज़मत
हजरत इस्हाक़ (अ.स) अल्लाह तआला के जलीलुलकद्र नबी और बहुत सारी सिफात के मालिक थे। क़ुरआने करीम ने उन की नेकी व शराफत, नुबुव्वत व रहमत और बूलंदी व अजमत की शहादत दी है। उन्हें यह फजीलत व खुसूसियत हासिल है के बनी इस्राईल के सारे अम्बिया उन्हीं की नस्ल से हैं।
तारीख से मालूम होता है के तकरीबन साढ़े तीन हजार अम्बिया उन की नस्ल में पैदा हुए हैं। उसके साथ “मस्जिदे अक्सा” जैसी अजीमुश्शान मस्जिद की तामीर का शर्फ भी उन्हीं को हासिल है।
अल्लाह तआला ने उन के फज़ल व कमाल का तजकेरा करते हुए फर्माया :
“हमने हजरत इब्राहीम को हजरत इस्हाक (की विलादत) की बशारत दी के वह नबी नेक बन्दों में होंगे और हमने उन पर और इस्हाक़ पर बरकतें नाजिल फ़रमाई।” [सूरह साफ्फात: ११२ ता ११३]
उन की पैदाइश सरज़मीने इराक़ में हुई मगर पूरी जिन्दगी मुल्के शाम में रहे और एक सौ साठ साल या एक सौ अस्सी साल की उम्र में वफात पाई और अपने वालिदे मोहतरम के बराबर में “मदीनतुल खलील” में दफ्न हुए।
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2. हुजूर (ﷺ) का मुअजिजा
हज़रत फातिमा (र.अ) के चेहरे का रोशन हो जाना
एक मर्तबा हजरत फातिमा (र.अ) आप के पास तशरीफ लाईं और भूक की वजह से उन का चेहरा पीला हो रहा था। आप (ﷺ) ने हाथ उठा कर उनके लिये दुआ कर दी। हजरत इमरान (र.अ) कहते हैं के मैं ने देखा हज़रत फातिमा (र.अ) का चेहरा सुर्ख और रौशन हो गया। (यह वाकिआ पर्दे की आयत नाजिल होने हो से पहले का है।)
📕 बैहक़ी फी दलाइलिन्नुबुव्वहः २३५३, अन इमरान बिन हुसैन (र.अ)
3. एक फर्ज के बारे में
तमाम रसूलों पर ईमान लाना
कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है:
“जो लोग अल्लाह तआला पर ईमान रखते हैं और उसके रसूलों पर भी और उन में से किसी में फर्क नहीं करते, उन लोगों को अल्लाह तआला जरुर उन का सवाब देगा और अल्लाह तआला बड़े मगफिरत वाला हैं, बड़ी रहमत वाला हैं।”
खुलासा: अल्लाह तआला ने इन्सानों की हिदायत और रहनुमाई के लिए जितने नबी और रसूल भेजे हैं, उन सब पर ईमान लाना फ़र्ज है।
4. एक सुन्नत के बारे में
कनाअत और सब्र हासिल करने की दुआ
रसूलुल्लाह (ﷺ) कनाअत के लिये यह दुआ फर्माते:
( तर्जमा : ऐ अल्लाह ! तूने जो रिज्क मुझे दिया है, उस पर सब्र व कनाअत अता फर्मा और उस में मेरे लिये बरकत अता फर्मा। )
📕 मुस्तदरक : १८७८, अन इब्ने अब्बास (र.अ)
5. एक अहेम अमल की फजीलत
तकलीफों पर सब्र करना
रसलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया:
“वह मुसलमान जो लोगों के साथ मेल जोल रखता है और उन से पहुंचने वाली तक्लीफों पर सब्र करता है, उस मुसलमान से अफज़ल है जो लोगों के साथ मेल जोल नहीं रखता और न ही सब्र करता है।”
📕 तिर्मिज़ी : २५०७, अन इब्ने उमर (र.अ)
6. एक गुनाह के बारे में
नाप तौल में कमी करने का गुनाह
कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है :
“बड़ी बरबादी है नाप तौल में कमी करने वालों के लिये के। जब लोगों से (कोई चीज़) नाप कर लेते हैं, तो पूरा भर कर लेते हैं और जब लोगों को (कोई चीज़) पैमाने से नाप कर या वजन करके देते हैं तो (उस में कमी) कर देते हैं।”
7. दुनिया के बारे में
दुनिया की मुहब्बत
कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है:
“यह लोग दुनिया से मुहब्बत रखते हैं और अपने आगे आने वाले एक भारी दिन को छोड़ बैठे हैं।”
(यानी दुनिया की मुहब्बत ने ऐसा अंधा कर रखा है, के कयामत के दिन की न तो कोई फिक्र है और न ही कोई तय्यारी है : हालांके दुनिया में आने का मकसद ही आखिरत के लिये तय्यारी करना है।)”
8. आख़िरत के बारे में
कब्र से इन्सान किस हाल में उठेगा
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया:
“हर बन्दा क़ब्र में उसी हालत में उठाया जाता है, जिस हालत में उस का इन्तेक़ाल होता है, मोमिन अपने ईमान पर और मुनाफिक अपने निफाक़ पर उठाया जाता है।”
📕 मुस्नदे अहमद : १४३१२, अन जाबिर बिन अब्दुल्लाह (र.अ)
9. तिब्बे नबवी से इलाज
खजूर से पसली के दर्द का इलाज
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“खजूर खाने से कोलंज नहीं होता है।”
📕 कन्जुल उम्माल : २८१९१, अन अबी हुरैरह (र.अ)
फायदा: पस्ली के नीचे होने वाले दर्द को कौलंज कहा जाता है।
10. नबी (ﷺ) की नसीहत
इस तरह से सलाम करे
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया :
“जब तुम में से कोई अपने भाई से मुलाकात करे तो इस तरह सलाम करे।”
“अस्सलामु अलैयकुम व रहमतुल्लाहि व बरकतहु”
तर्जुमा : अल्लाह तआला की तुमपर रेहमते और बरकते हो।
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