20. मुहर्रम | सिर्फ़ 5 मिनट का मदरसा
20 Muharram | Sirf Paanch Minute ka Madarsa
1. इस्लामी तारीख
हजरत इब्राहीम (अ.स) की दावत
जब हजरत इब्राहीम (अ.स) ने अपनी कौम की शिर्क व बुत परस्ती और जलालत व गुमराही का मुशाहदा किया, तो उन्हें सीधी राह पर लाने की कोशिश करने लगे।
सब से पहले अपने बाप को मुखातब होकर कहा : अब्बा जान ! आप ऐसी चीज़ों की क्यों इबादत करते हैं, जो सुनने देखने और बोलने की भी सलाहियत नहीं रखती, न ही वह नफा व नुकसान की मालिक हैं, वह चीजें बजाते बेबस और लाचार हैं, उन में अपने वुजूद को भी बाक़ी रखने की ताकत नहीं है।
ऐसी चीजें दूसरों के क्या काम आ सकती हैं।
अब्बा जान ! सीधी और सच्ची राह वही है, जो मैं बता रहा हूँ के एक अल्लाह की इबादत करो। वही मौत व हयात का मालिक है। वही लोगों को रिज्क देता है, उसीके रहमो करम से आखिरत में कामयाबी मिल सकती है, वही हर एक को नजात देने पर कादिर है और वह जबरदस्त कुव्वत व ताक़त का मालिक है।
हज़रत इब्राहीम (अ.स) ने उस के बाद कौम के लोगों को भी इन्हीं बातों की नसीहत की। मगर अफसोस! किसी ने भी आपकी दावत को कुबूल नहीं किया।
उनके वालिद ने तो यहाँ तक कह दिया के इब्राहीम ! अगर तू बुतों की बुराई से बाज नहीं आया, तो मैं तुझे संगसार कर दूंगा। फिर पूरी क़ौम भी हजरत इब्राहीम के खिलाफ साजिशें करने लगी।
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2. हुजूर (ﷺ) का मुअजिजा
एक इशारे में दरख्त का दो हिस्सा हो जाना
मक्का में रूकाना नामी एक आदमी था, जो बहुत बहादुर और ताकतवर था। रसूलुल्लाह (ﷺ) ने उस को इस्लाम की दावत दी, तो उसने कहा: पहले मुझे कोई निशानी बतलाओ, तो हुजूर (ﷺ) ने फर्माया : इस के बाद ईमान ले आओंगे? तो उसने कहा: हाँ! करीब में काँटों का एक दरख्त था, जो बहुत ही गुंजान और शाखों वाला था।
हुजूर (ﷺ) ने उस की तरफ़ इशारा कर के फर्माया : इधर आ ! तो उस दरख्त के दो हिस्से हो गए, एक हिस्सा अपनी जगह रहा और दूसरा हिस्सा हुजूर (ﷺ) के सामने आकर खड़ा हो गया, रूकाना बोला ऐसा है तो इस को हुक्म दो के वापस चला जाए, तो हुजुर (ﷺ) के इशारे पर वह वापस चला गया।
जब वह दोनों हिस्से आपस में मिल गए, तो हुजुर (ﷺ) ने रुकाना से कहा: ईमान ले आओ, लेकिन वह ईमान नहीं लाया।
📕 दलाइलुन्नुबुवह लिल असफहानी : २८८, अन अबी उमामा (र.अ)
3. एक फर्ज के बारे में
अपने घर वालों को नमाज़ का हुक्म देना
कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है :
“आप अपने घर वालों को नमाज का हुक्म करते रहिये
और खुद भी नमाज़ के पाबन्द रहिये,
हम आपसे रोजी तलब नहीं करते, रोजी तो आपको हम देंगे
और अच्छा अंजाम तो परहेज़गारी ही का है।”
4. एक सुन्नत के बारे में
अल्लाह से रहम तलब करने की दुआ
अल्लाह तआला से रहम तलब करने के लिये इस दुआ का एहतमाम करना चाहिये, यह दुआ
( Anta waliyyuna fagh-fir lana war-hamna, wa anta Khayrul- ghafirin )
हज़रत मूसा ने कोहे तूर पर जाते वक़्त पढ़ी थी।
तर्जुमा: (ऐ अल्लाह) तू ही हमारी खबर रखने वाला हैं, इस लिये हमारी मगफिरत और हमपर रहम फर्मा और तू सब से जियादा बेहतर माफ करने वाला हैं।
5. एक अहेम अमल की फजीलत
दोजख / जहन्नुम से नजात की दुआ
रसलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया:
“जब तुम मग़रिब की नमाज़ से फारिग हो जाओ, तो सात मर्तबा यह दुआ पढ लिया करो।
( Allahumma Ajirni Minan Naar )
( ऐ अल्लाह! मुझ को दोजख से महफूज़ रख )
जब तुम इस को पढ़ लो और फिर उसी रात तुम्हारी मौत आजाए तो दोजख से महफूज़ रहोगे और अगर इस दुआ को सात मर्तबा फज़्र की नमाज के बाद (भी) पढ लो और उसी दिन तूम्हारी मौत आजाए तो दोजख से महफूज़ रहोगे।”
📕 अबू दाऊद : ५०७९, अन मुस्लिम बिन हारिस तमीमी (र.अ)
6. एक गुनाह के बारे में
झूटी तोहमत लगाने का गुनाह
कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है :
“जो लोग मुसलमान मर्दो और मुसलमान औरतों को बगैर किसी जुर्म के तोहमत लगा कर तकलीफ पहुँचाते हैं, तो यक़ीनन वह लोग बड़े बोहतान और खुले गुनाह का बोझ उठाते हैं।”
7. दुनिया के बारे में
दुनियावी जिन्दगी एक धोका है
कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है:
“ऐ लोगो! बेशक अल्लाह तआला का वादा सच्चा है, फिर कहीं तुम को दुनियावी जिन्दगी धोके में न डाल दे और तुम को धोके बाज़ शैतान किसी धोके में न डाल दे, यकीनन शैतान तुम्हारा दुश्मन है। तुम भी उसे अपना दुश्मन ही समझो। वह तो अपने गिरोह (के लोगों) को इस लिये बुलाता है के वह भी दोज़ख वालों में शामिल हो जाएँ।”
8. आख़िरत के बारे में
पुल सिरात से अल्लाह की रहमत से नजात
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया:
“कयामत के दिन लोगों को पुल सिरात पर सवार किया जाएगा तो वह उस के किनारे से इस तरह से गिरेंगे जिस तरह से पतिंगे आग में गिरते हैं, पस अल्लाह तआला जिसे चाहेंगा अपनी रहमत से नजात अता फरमाएगा।”
📕 मुस्नदे अहमद : १९९२७, अन अबी बकरह (र.अ)
9. तिब्बे नबवी से इलाज
सफर जल (Pear) के फ़वाइद
हजरत तल्हा (र.अ) फर्माते हैं के मैं रसूलुल्लाह (ﷺ) की खिदमत में हाज़िर हुआ, तो आप के दस्ते मुबारक में एक सफरजल (बही) था, फिर आप (ﷺ) ने फर्माया: “तल्हा ! इसे लो क्योंकि यह दिल को सुकून पहुँचाता है।“
10. नबी (ﷺ) की नसीहत
पोहचा दो लोगो तक अगर एक भी आयत मालूम हो
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया :
“मेरी तरफ से (दीन की बात लोगों को) पहुँचाओ अगरचे एक ही आयत हो।”