Contents
- 1. इस्लामी तारीख
- हज़रत इब्राहीम (अ.स) की कौम की हालत
- 2. अल्लाह की कुदरत
- ज़बानों का मुख्तलिफ होना
- 3. एक फर्ज के बारे में
- इल्म हासिल करना फ़र्ज़ है
- 4. एक सुन्नत के बारे में
- माँगने वालों को नर्मी से जवाब देना
- 5. एक अहेम अमल की फजीलत
- सदका-ए-जारिया, नफ़ाबख्श इल्म और नेक औलाद की फ़ज़ीलत
- 6. एक गुनाह के बारे में
- शतरंज खेलने का गुनाह
- 7. दुनिया के बारे में
- दुनिया का फायदा वक्ती है
- 8. आख़िरत के बारे में
- अहले जन्नत का शुक्र अदा करना
- 9. तिब्बे नबवी से इलाज
- घेकवार और राई के फवाइद
- 10. कुरआन की नसीहत
- ऐ इन्सान ! तुझे अपने रब के बारे में किस चीज़ ने धोके में डाल रखा है ?
19. मुहर्रम | सिर्फ़ 5 मिनट का मदरसा
19 Muharram | Sirf Paanch Minute ka Madarsa
1. इस्लामी तारीख
हज़रत इब्राहीम (अ.स) की कौम की हालत
हजरत इब्राहीम (अ.स) ने जिस खान्दान और माहौल में आँखें खोली, उस में शिर्क व बूतपरस्ती और जहालत व गुमराही बिल्कुल आम थी। सारे लोग बुतों की पूजा करते और चाँद, सूरज और सितारों को अपनी हाजत व जरूरत पूरी करने का जरिया समझते।
हर एक ने अल्लाह तआला की ताक़त व कुदरत और वहदानियत को भूल कर बेशुमार चीजों को अपना माबूद बना लिया था। खुद हजरत इब्राहीम (अ.स) के वालिद आज़र अपनी कौम के मुख्तलिफ कबीलों के लिये लकड़ियों के बुत बनाते और लोगों के हाथों फरोख्त करते थे और फिर लोग उस की पूजा करते थे। यहां तक के आजर खुद अपने हाथों से बनाए हुए बुतों की पूजा करते और उनसे अकीदत व मुहब्बत का इजहार करते थे।
ऐसी जहालत व गुमराही और हक्क व सदाकत से महरूम माहौल में हज़रत इब्राहीम (अ.स) ने तौहीद की आवाज़ लगाई और लोगों को समझाया। मगर किसी ने आपकी दावत को तस्लीम नहीं किया और सख्ती के साथ मुखालफत करने लगे।
तफ्सील में बढे :
हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम | कसक उल अम्बिया
2. अल्लाह की कुदरत
ज़बानों का मुख्तलिफ होना
अल्लाह तआला ने दुनिया में बेशुमार कौमों को पैदा फर्माया। जिन की जबान (लैंग्वेज) एक दूसरे से अलग है, किसी की ज़बान अरबी है, किसी की फारसी, किसी की अंग्रेजी है तो किसी की उर्दू और हिंदी, जब के एक किस्म के जानवर और परिन्दों की बोली एक होती है।
लेकिन इन्सानी कौमों की बोलियाँ बिल्कुल मुख्तलिफ हैं, बल्के इन्सानों में से ही मर्दो, औरतों और लड़के लड़कियों की आवाज़ भी एक दूसरे से जुदा होती है। हालाँके सबकी जबान, होंट, ताल, हलक़ वगैरह एक ही तरह के हैं।
इसके बावजूद इन्सानों की ज़बान, आवाज और लब व लेहजे का मुख्तलिफ होना अल्लाह की अज़ीम कुदरत है।
3. एक फर्ज के बारे में
इल्म हासिल करना फ़र्ज़ है
कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है:
“ऐ ईमान वालो! अल्लाह की जात, उस के रसूल और उस की किताब (यानी कुरआन) पर ईमान लाओ, जिस को अल्लाह ने अपने रसूल पर नाजिल फर्माया है। और उन किताबों पर भी (ईमान लाओ) जो उन से पहले नाज़िल की जा चुकी हैं।”
खुलासा: कुरआने करीम को अल्लाह तआला की उतारी हुई किताब समझना और उस के हर्फ बहर्फ सही होने का यकीन रखना फर्ज है।
4. एक सुन्नत के बारे में
माँगने वालों को नर्मी से जवाब देना
हजरत अली (र.अ) बयान करते हैं के:
“रसूलुल्लाह (ﷺ) से जब कोई हाजत तलब करता, तो आप उस की जरूरत पूरी फर्माते थे, अगर न फर्मा सकते, तो बहुत नर्मी और अख्लाक से उससे कहते और माजरत फर्माते।”
5. एक अहेम अमल की फजीलत
सदका-ए-जारिया, नफ़ाबख्श इल्म और नेक औलाद की फ़ज़ीलत
रसूलल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“जब आदम की औलाद का इंतकाल होता है,
तो तीन कामों के अलावा उस के अमल का सिलसिला खत्म हो जाता है :
(१) सदका-ए-जारिया (२) वह इल्म जिस से लोग फायदा उठाएँ (३) ऐसी नेक औलाद जो उस के लिये दुआ करती रहे।”
6. एक गुनाह के बारे में
शतरंज खेलने का गुनाह
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“जो शख्स शतरंज (यानी चौसर) खेलता है,
वह गोया अपना हाथ खिन्जीर के गोश्त और खून में रंगता है।”
📕 मुस्लिम: ५८९६,अन बुरैदा (र.अ)
7. दुनिया के बारे में
दुनिया का फायदा वक्ती है
एक मर्तबा रसूलुल्लाह (ﷺ) ने अपनी तकरीर में फर्माया:
“गौर से सुन लो ! दुनिया एक वक़्ती फायदा है, जिससे हर शख्स फायदा उठाता है, चाहे नेक हो या गुनहगार।”
📕 मुअजमे कबीर : ७.१२, अन शहाद बिन औस (र.अ)
8. आख़िरत के बारे में
अहले जन्नत का शुक्र अदा करना
कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है :
“(जन्नती जन्नत में दाखिल होकर) कहेंगे के हम्द और शुक्र उस अल्लाह के लिये है जिस ने हम से हर किस्म का ग़म दूर कर दिया।
बेशक हमारा रब बड़ा बख्शने वाला , बड़ा कद्र दाँ है, जिसने अपने फ़ज़्ल से हम को हमेशा रहने की जगह में उतारा। जहाँ न हम को कोई तकलीफ पहुँचेगी और न हमको किसी किस्म की थकान महसूस होगी।”
9. तिब्बे नबवी से इलाज
घेकवार और राई के फवाइद
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“दो कड़वी चीज़ों में किस कद्र शिफा है ! (यानी) घेकवार (एल्वा) और राई में।”
नोट: घेकवार चेहरे पर लगाने से उस को निखारता है, जिल्द की खुश्की दूर करता है, सर पर लगाने से बाल उगाता है, जले और कटे हुए निशानात को दूर करता है, इस के इस्तेमाल करने से शूगर के मरीज को आफियत होती है और राई का तेल दिमाग को कुव्वत बख्शता है, मालिश करने से जिस्म में चुस्ती पैदा करता है।
10. कुरआन की नसीहत
ऐ इन्सान ! तुझे अपने रब के बारे में किस चीज़ ने धोके में डाल रखा है ?
कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है :
“ऐ इन्सान ! तुझे अपने करीम रब के बारे में किस चीज़ ने धोके में डाल रखा है ?
(हालौँ के) उसने तुझ को पैदा किया, फिर तेरे आजा को दुरूस्त किया (और) फिर तुझको बराबर किया (और) जिस सूरत में चाहा तुझ को जोड़ कर (बना दिया)”
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