Contents
- 1. इस्लामी तारीख
- कैदियों के साथ हुस्ने सुलूक
- 2. हुजूर (ﷺ) का मुअजीजा
- जमात के मुतअल्लिक़ ख़बर देना
- 3. एक फर्ज के बारे में
- कर्ज़ अदा करना
- 4. एक सुन्नत के बारे में
- खाने में बरकत बीच में उतरती है
- 5. एक अहेम अमल की फजीलत
- मुसाफा मगफिरत का जरिया है
- 6. एक गुनाह के बारे में
- गुमराही इख्तियार करने का गुनाह
- 7. दुनिया के बारे में
- दुनिया चाहने वालों के लिये नुकसान
- 8. आख़िरत के बारे में
- कब्र या तो जन्नत का बाग़ या जहन्नुम का गढ़ा है
- 9. तिब्बे नबवी से इलाज
- ककड़ी के फवाइद
- 10. नबी की नसीहत
- अपने मातहत लोगो का ख्याल करो
12 Jumada-al-Awwal | Sirf Panch Minute ka Madarsa
1. इस्लामी तारीख
कैदियों के साथ हुस्ने सुलूक
ग़ज़व-ए-बद्र में ७० मुश्रिकीन कैद हुए, जिन को मदीना मुनव्वरा लाया गया, हुजूर (ﷺ) ने कैदियों को सहाबा में तकसीम कर दिया, उन के साथ हुस्ने सुलूक और भलाई करने का हुक्म दिया, इस हुक्म को सुनते ही सहाबा ए किराम (र.अ) ने उन के साथ ऐसा सुलूक किया के दुनिया की कोई कौम उस अदल व इंसाफ और हुस्ने सुलूक की मिसाल पेश नहीं कर सकती।
आप (ﷺ) के चचा हज़रत अब्बास (र.अ) के बाजू कमर से कसे हुए थे, उन के कराहने की वजह से जब आप (ﷺ) बेचैन हो गए तो सहाबा ने उन की रस्सी ढीली कर दी, उनकी इस रिआयत की वजह से अद्ल व इन्साफ करते हुए हुजूर (ﷺ) ने तमाम कैदियों की रस्सियाँ ढीली करा दी, सहाबा के हुस्ने सुलूक का यह हाल था के उन्होंने अपने बच्चों को भूका रख कर कैदियों को खाना खिलाया और अपनी ज़रूरत के बावजूद उन को कपड़े पहनाए।
मालदार कैदियों से चार हज़ार दिरहम फिदया लेकर छोड दिया गया और पढ़े लिखे गरीब कैदियों को दस दस आदमियों को लिखना पढ़ना सिखाने के बदले आज़ाद कर दिया गया और अनपढ़ ग़रीब कैदियों को बिला किसी मुआवजे के रिहा कर दिया गया।
2. हुजूर (ﷺ) का मुअजीजा
जमात के मुतअल्लिक़ ख़बर देना
एक मर्तबा रसूलुल्लाह (ﷺ) अपने सहाबा से गुफ्तगू फ़रमा रहे थे, दौराने गुफ्तगू इर्शाद फ़रमाया :
अभी तुम्हारे पास इस तरफ से मश्रिक वालों की एक बा अख़्लाक़ जमात आएगी, चुनान्चे हज़रत उमर (र.अ) खड़े हो कर उस तरफ चले, थोड़े ही दूर पहुँचे थे के सामने से तेरा अफराद पर मुश्तमिल एक जमात आई, हज़रत उमर (र.अ) ने पूछा : कौन हो, जमात ने कहा : हम कबील-ए-बनी अब्दे कैस से तअल्लुक रखते हैं।
हजरत उमर (र.अ) ने पूछा : क्या इस शहर में तिजारत के इरादे से आए हो? तो उन्होंने फरमाया ‘नहीं।’
हज़रत उमर (र.अ) ने फरमाया : अभी अभी रसूलुल्लाह (ﷺ) ने आप लोगों का तज़केरा किया था आर तारीफ की थी।
📕 बैहकी फी दलाइलिन्नुयुब्बह २०७२
3. एक फर्ज के बारे में
कर्ज़ अदा करना
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया :
“क़र्ज़ की अदायगी पर ताकत रखने के बावजूद टाल मटोल करना जुल्म है।”
4. एक सुन्नत के बारे में
खाने में बरकत बीच में उतरती है
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“बरकत खाने के बीच में उतरती है, तुम किनारे से खाया करो,
खाने के बीच से मत खाया करो।”
5. एक अहेम अमल की फजीलत
मुसाफा मगफिरत का जरिया है
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया:
“जब दो मुसलमान आपस में मिलते हैं और मुसाफा करते हैं, तो जुदा होने से पहले उन दोनों की मगफिरत कर दी जाती है।”
6. एक गुनाह के बारे में
गुमराही इख्तियार करने का गुनाह
कुरआन में अल्लाह तआला फरमाता है :
“जो लोग अल्लाह तआला के रास्ते से भटकते हैं, उनके लिये सख्त अज़ाब है, इस लिये के वह हिसाब के दिन को भूले हुए हैं।”
7. दुनिया के बारे में
दुनिया चाहने वालों के लिये नुकसान
कुरआन में अल्लाह तआला फरमाता है :
“जो शख्स आखिरत की खेती का तालिब हो, हम उसकी खेती में तरक्की देंगे और जो दुनिया की खेती का तालिब हो, (के सारी कोशिश उसी पर खर्च कर दे)। तो हम उस को दुनिया में से कुछ दे देंगे और ऐसे शख्स का आख़िरत में कोई हिस्सा नहीं।”
8. आख़िरत के बारे में
कब्र या तो जन्नत का बाग़ या जहन्नुम का गढ़ा है
रसूलल्लाह (ﷺ) ने फरमाया:
“कब्र या तो जन्नत के बागों में से एक बाग़ है या जहन्नुम के गढ़ों में से एक गढ़ा है।”
9. तिब्बे नबवी से इलाज
ककड़ी के फवाइद
रसूलुल्लाह (ﷺ) से खजूर के साथ ककड़ी खाते थे।
फायदा : अल्लामा इब्ने कय्यिम (रह.) ककड़ी के फवाइद में लिखते हैं के यह मेअदे की गरमी को बुझाती है और मसाना के दर्द को खत्म करती है।
10. नबी की नसीहत
अपने मातहत लोगो का ख्याल करो
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने मातहत और यतीमों के बारे में फरमाया:
“तुम अपनी औलाद की तरह उन का इकराम करो और जो तुम खाते हो उन को भी वही खिलाओ।”
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