26 अप्रैल 2024

आज का सबक

सिर्फ पांच मिनिट का मदरसा क़ुरआन व सुन्नत की रौशनी में
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1. इस्लामी तारीख

मदीना के कबाइल से हुजूर (ﷺ) का मुआहदा

मदीना तय्यिबा में मुख्तलिफ नस्ल व मज़हब के लोग रहते थे, कुफ्फार व मुश्रिकीन के साथ यहुद भी एक लम्बे जमाने से आबाद थे। रसूलुल्लाह (ﷺ) ने मदीना पहुँचने के बाद हिजरत के पहले ही साल मुसलमानों और यहूदियों के दर्मियान बाहमी तअल्लुकात ख़ुशगवार रखने के लिये एक बैनल अक्रवामी मुआहदा फर्माया। ताके नसल व मजहब के इख्तिलाफ के बावजूद कौमी यकजेहती और इत्तेहाद व इत्तेफाक कायम रहे और हर एक को एक दूसरे से मदद मिलती रहे।

यह मुआहदा हुकूके इन्सानी की सच्ची तस्वीर थी, तमाम लोगों को पूरे तौर पर मज़हबी आजादी हासिल थी, शहर में अमन व अमान और अद्ल व इन्साफ कायम करने और जुल्म व सितम को जड़ से ख़त्म करने का एक कामिल व मुकम्मल कानून था, बल्के इस को दुनिया का क़दीम तरीन बाकायदा “तहरीरी दस्तूर” कहा जा सकता है जो मुकम्मल शक्ल में आज भी मौजूद है। इस मुआहदे पर मदीना और उस के आस पास रहने वाले कबाइल से दस्तख़त भी लिये गए थे।

📕 इस्लामी तारीख

2. अल्लाह की कुदरत/मोजज़ा

नींद का आना

जब इन्सान दिन भर काम कर के थक जाता है, तो अल्लाह तआला उस की थकान दूर करने के लिये उस पर नींद तारी कर देता है, यह नींद उस के फिक्र व ग्रम को दूर कर के ऐसा सुकून व राहत का जरिया बनती है के दुनिया की कोई चीज उस का बदल नहीं बन सकती, फिर अल्लाह तआला ने यह नेअमत अमीर व ग़रीब, आलिम व जाहिल, बादशाह व फकीर हर एक को यकसाँ अता फरमा रखी है। और इस के लिये रात का वक़्त मुतअय्यन कर दिया है।

अगर इन्सान को नींद न आए तो उस का दिमागी तवाजुन बिगड़ जाता है और होश व हवास खत्म हो जाते हैं, लोगों के लिये रात का वक्त मुतअय्यन करना और एक साथ नींद का आना अल्लाह की बड़ी कुदरत है

📕 अल्लाह की कुदरत

3. एक फर्ज के बारे में

ज़कात अदा करना

हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद (र.अ) इर्शाद फ़र्माते हैं के,

“हमें नमाज़ कायम करने का और जकात अदा करने का हुक्म है और जो शख्स जकात अदा न करे उसकी नमाज़ भी (क़बूल) नहीं।”

📕 तबरानी फिल कबीर : ९९५०

4. एक सुन्नत के बारे में

5. एक अहेम अमल की फजीलत

नमाजों को सही पढ़ने पर मगफिरत का वादा

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :

पाँच नमाजें अल्लाह तआला ने फर्ज की हैं, जिस ने उन के लिऐ अच्छी तरह वुजू किया और ठीक वक्त पर उन को पढ़ा और रुकू व सज्दह जैसे करना चाहिये वैस हो किया, तो ऐसे शख्स के लिये अल्लाह तआला का पक्का वादा है, के वह उसको बख्श देगा। और जिस ने ऐसा नहीं किया तो लिए अल्लाह तआला का कोई वादा नहीं, चाहेगा तो उसको बख्श देगा और चाहेगा तो सजा देगा।”

📕 अबू दाऊद: ४२५

6. एक गुनाह के बारे में

यतीमों का माल खाने का गुनाह

कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है :

“यतीमों के माल उन को देते रहा करो और पाक माल को नापाक माल से न बदलो और उन का माल अपने मालों के साथ मिला कर मत खाओ ऐसा करना यकीनन बहुत बड़ा गुनाह है।”

📕 सूरह निसा : २

7. दुनिया के बारे में

दुनिया में लगे रहने का वबाल

दुनिया में लगे रहने का वबाल

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया :

“जो शख्स अल्लाह का हो जाता है तो अल्लाह तआला उस की हर जरूरत पूरी करता हैं
और उस को ऐसी जगह से रिज्क देता हैं के उस को गुमान भी नहीं होता।

और जो शख्स पूरे तौर पर दुनिया की तरफ लग जाता है,
तो अल्लाह तआला उस को दुनिया के हवाले कर देते हैं।”

📕 कन्जुल उम्माल: ६२७०

8. आख़िरत के बारे में

जन्नत के फल और दरख्तों का साया

कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है:

“मुत्तकियों से (तक़वा वालो से) जिस जन्नत का वादा किया गया है, उसकी कैफियत यह है के उसके नीचे नहरें जारी होंगी और उसका फल और साया हमेशा रहेगा।”

📕 सूरह रअद : ३५

9. तिब्बे नबवी से इलाज

मौसमी फलों के फवाइद

कुरान में अल्लाह तआला फ़र्माता है

“जब वह दरख्त फ़ल ले आएँ तो उन्हें खाओ।”

📕 सूरह अनाम: १४१

फायदा: मौसमी फलों का इस्तेमाल सेहत के लिए बेहद मुफीद है और बहुत सी बीमारियों से हिफ़ाज़त का ज़रिया है, लिहाज़ा अगर गुंजाइश हो तो ज़रूर इस्तेमाल करना चाहिए।

10. क़ुरआन व सुन्नत की नसीहत

जिस्म के दर्द का इलाज

हजरत उस्मान बिन अबिल आस (र.अ) ने रसूलुल्लाह (ﷺ) की खिदमत में हाजिर हो कर अपने जिस्म के दर्द को बताया तो रसूलल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया : जहां दर्द होता हो वहां हाथ रख कर तीन बार “बिस्मिल्लाह” और सात मर्तबा यह दुआ पढ़ो:

( أَعُوذُ بِاللَّهِ وَقُدْرَتِهِ مِنْ شَرِّ مَا أَجِدُ وَأُحَاذِرُ )

“A’udhu Billahi Wa Qudratihi Min Sharri Ma Ajidu Wa Uhadhiru”

तर्जमा: मैं अल्लाह और उस की कुदरत की पनाह चाहता हुँ उस तकलीफ़ से जो मुझे पहुँची है और जिस से मैं डरता हुँ। चुनान्चे उन सहाबी ने जब यह कलिमात कहे तो उन का दर्द खत्म हो गया फिर वह सहाबी अपने घर वालों और दूसरे जरुरतमंदों को हमेशा इन कलिमात की तलकीन करते रहते थे।

📕 मुस्लिम: ५७३७, अन उस्मान बिन अबिल आस (र.अ)

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