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Seerat un Nabi (ﷺ) Series: Part 26
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सफर ए हिजरत के मुख्तलिफ वाक़ियात
हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सुराका को अमाननामा दिला कर रवाना हुए।
दोपहर का वक्त था, इसलिए धूप में तेजी भी थी और हवा भी बहुत गर्म थी। रेत इतनी तप रही थी कि जिस्म से लगते ही जिस्म तपने लगता।
चूंकि डर था कि कुफ्फारे मक्का हुजूर (ﷺ) का पीछा कर सकते हैं, इसलिए अब्दुल्लाह बिन उरकत ने आम और सीधे रास्ते को छोड़ दिया था इस पूरे नये रास्ते पर दूर-दूर तक न साया था, न नखलिस्तान कि बैठकर दो घड़ी आराम किया जाए। हर तरफ़ या तो रेत का समुन्दर था या रेत के तोदे या पहाड़।
अब्दुल्लाह बिन उरकत ने कहा, मालिक ! धूप और गर्म हवा ने परेशान कर दिया है, प्यास से जान लबों पर आ गयी है। अगर हम इस तरह सफर करते रहे, तो अंदेशा है कि कहीं हमारी जिंदगियां खत्म न हो जायें।
हुजूर (ﷺ) ने फ़रमाया,
तुम जरा-सी तक्लीफ़ से घबरा गये। मुसलमानों को देखो, उन्हों ने कितनी सख्तियां बरदाश्त की हैं। उन पर सख्तियां सिर्फ़ इस लिए की गयीं कि एक खुदा की इबादत करते और एक खुदा को मानते थे।
अब्दुल्लाह ! मुझ से कहा गया कि मैं अपनी कौम को बद-दुबा दे दू, लेकिन मैं बद-दुआ न दे सका। बद-दुआ कैसे देता? वे लोग तो नासमझ है, वे मुझे नहीं पहचानते, जरूरत है कि वे मुझे पहचानें। जरूर एक दिन ऐसा होगा कि वे इस्लाम की तरफ झुकेंगे, कलिमा पढ़ेंगे, मुसलमान होंगे। अब्दुल्लाह ! याद रखो, हर तक्लीफ के बाद राहत है, हीरा तराशने के बाद ही खूबसूरत बनता है, सोना तपाने से निखरता है, इंसान को तकलीफ व मुसीबत से न घबराना चाहिए।
उस वक्त एक निहायत बुलन्द टीला सामने रास्ते के सिरे पर आ गया था। ऐसा लगता था कि जैसे उस ऊंचे और उत्तर-दक्खिन तक फैले हुए टीले ने रास्ता रोक दिया है।
हजरत अबू बक्र सिद्दीक (र.अ) ने उस टीले को देखकर कहा –
अब्दुल्लाह ! कहीं तुम रास्ता तो भूल नहीं गए हो? देखो टीले ने रास्ता रोक दिया है। क्या हमको वापस लौटना पड़ेगा?
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अब्दुल्लाह ने कहा, नहीं मेरे आका ! हम थोड़ी दूर दक्खिन की ओर चल कर पच्छिम की ओर निकल जायेंगे। ऊंट-ऊंटनियां बावजूद तेज धूप और गर्म हवा होने के निहायत तेजी से दौड़ रही थीं।
थोड़ी देर में पहाड़ जैसा रेत का तोदा करीब आ गया। अब्दुल्लाह पश्चिम की तरफ़ जरा मुड़ गया।
थोड़ी दूरी पर खजूर के कुछ पेड नजर आने लगे।
यह खुशी की बात थी।
फिर तेज-तेज यह काफिला इन पेड़ों के पास पहुंचा। यहां हिरनों की खाल का एक तंबू खड़ा था। तंबू के सामने दो ऊंट जुगाली कर रहे थे और तंबू के दरवाजे पर एक दुबली सी बकरी खड़ी थी।
उम्मे माबद से मुलाकात
इस काफिले ने खेमे से कुछ दूरी पर अपने ऊंट बिठाये और ऊंटों से नीचे उतरे। ऊंटों के आगे बैठने और उनके उतरने से जो आवाज आयी, उस आवाज को सुन कर खेमे के अन्दर से एक बूढ़ी औरत बाहर निकली। वह दरवाजे पर खड़ी हो कर हुजूर (ﷺ) और हजरत अबू बक्र (र.अ) को हैरत भरी नजरों से देखने लगी।
उस बूढ़ी औरत का नाम उम्मे माबद था। बड़ी नेक औरत थीं।
जब हुजूर (ﷺ) और हजरत अबू बक्र सिद्दीक (र.अ) उस की तरफ़ बढ़े तो वह खुद भी उन की तरफ़ चली। उस ने हजरत अबू बक्र (र.अ) से खिताब करते हुए कहा, मैं भी कितनी खुश किस्मत हूं अबू बक्र! आज मेरे खेमे पर अबू कहाफा का बेटा मेहमान बन कर आया है। यह तुम्हारे साथ और कौन हैं?
यह अल्लाह के नबी (ﷺ) हैं, हजरत अबू बक्र (र.अ) ने कहा।
उम्मे माबद ने चिल्ला कर कहा, क्या हजरत मुहम्मद? आमना के लाल ? ऐ अरब के रोशन सूरज ! खुश आमदीद ! बनू खुजामा की एक बूढी औरत का सलाम कुबल हो।
वह बड़ी खुशी से हुजूर (ﷺ) और हजरत अबू बक्र (र.अ) को साथ लेकर खेमे के दरवाजे पर पहुंची। उसने कहा। ऐ कोम के चमकते सितारे! इस नाचीज के खेमें के अन्दर तशरीफ़ ले जा कर आराम कीजिए। मैं हुजूर (ﷺ) के लिए दूध लेने जा रही हूं।
हुजूर (ﷺ) का मोजज़ा : बूढी बकरी का दूध देना
हुजूर (ﷺ) ने फरमाया, ठहरो, अभी धूप सख्त है, हवा गर्म चल रही है। ऐसी तेज और गर्म हवा में कहा जाओगी?
उम्मे माबद ने कहा, जो टीला हुजूर (ﷺ) ने देखा है, उस से दूसरी तरफ़ बकरियों का रेवड़ चर रहा है। मेरे हुजूर (ﷺ) ! मैं बहुत जल्द वापस आ जाऊंगी।
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मैं इसे अच्छा नहीं समझता कि तुम हमारे लिए दूध लेने धूप में दूर तक जाओ। अगर दो-चार खजुरें और थोड़ा-सा पानी हो तो ले आओ, हजूर (ﷺ) ने कहा।
मेरे हुजूर (ﷺ) ! मैं हर मुसाफिर का दूध से इस्तेकबाल करती हूं। क्या कुरैश के चांद का सिर्फ खजूर और पानी से इस्तेकबाल किया जाए। मेरे हुजूर (ﷺ) मुझ को इस से रंज होगा।
अच्छा, इतनी देर ठहरो कि मेरे साथी यहां आ जायें, हुजूर (ﷺ) ने फरमाया।
बहुत अच्छा हुजूर (ﷺ) ! उम्मे माबद ने कहा।
आमिर और अब्दुल्लाह जब तक ऊंटों को बांधते और उन के सामने चारा डालते रहे, हुजूर (ﷺ) और अबू बक्र उन के इन्तिज़ार में खेमे से बाहर खड़े रहे।
जब वे दोनों भी आ गये, तब उन्हें साथ ले कर दोनों खेमे में दाखिल हुए।
खेमे के अन्दर कोई सजावट न थी, एक रेगिस्तानी औरत का खेमा था, खेमे के अन्दर सिर्फ कम्बल बिछा हआ था। हुजूर (ﷺ), हजरत अबू बक्र सिद्दीक रजि०, हजरत आमिर और अब्दुल्लाह कम्बलों पर जा बैठे।
उम्मे माबद ने कहा, मेरे हुजूर (ﷺ) ! अब मुझे इजाजत है कि मैं अपने रेवड़ में जा कर दूध ले आऊ।
जो बकरी खेमे के दरवाजे पर खड़ी है, तुम उसे ही क्यों नहीं दूह लेती हो ? हुजूर (ﷺ) ने फ़रमाया।
हुजूर (ﷺ) ! यह बकरी बुढ़िया है, उम्मे माबद ने कहा, कमजोर है, दूध नहीं देती।
तुम इस बकरी को यहां ले आओ। उम्मे माबद बकरी ले आयीं।
हुजूर (ﷺ) ने उस के थनों पर हाथ फेरा। अगरचे बकरी बहुत कमजोर, दुबली और बुढ़िया थी, मगर आप (ﷺ) के थनों पर हाथ डालते ही थन दूध से भर आए। हुजूर (ﷺ) ने प्याला ले कर खुद ही दूध दूहना शुरू किया। प्याला भर गया तो पहले हजरत अबू बक्र सिद्दीक रजि० को पिलाया, फिर आमिर अबदुल्लाह, उम्मे माबद को दिया। जब सब के पेट भर गये, तब हुजूर (ﷺ) ने खुद पीकर, जितने बरतन रखे थे, सब दूध से भर दिये।
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हजरत अबू बक्र, आमिर, अब्दुल्लाह और उम्मे माबद सभी हैरत से इस मोजजे को देख रहे थे। अब्दुल्लाह ने बे-अख्तियार कहा, बेशक, आप खुदा के रसूल हैं। यह खुदा की मेहरबानी है कि उस ने आप के लिए एक कमजोर बकरी से दूध पिलाया।
दूध पी कर सब कम्बल पर लेट गये और आराम करने लगे।
दो घन्टे आराम करने के बाद सब उठे, नमाज पढ़ी और सफ़र पर रवाना हो गये।
जुबैर बिन अव्वाम रजि० से मुलाकात
अस्र के बाद यह काफ़िला क़दीर नामी जगह पर पहुंचा। यहाँ उन्हें वह काफ़िला मिला, जो शाम देश से आ रहा था।
इस काफ़िले में जुबैर बिन अव्वाम थे, जुबैर की शादी हजरत अस्मा से हो चुकी थी, जो हजरत अबू बक्र की बेटी थीं।
उन्हों ने मिलते ही पूछा, हजूर (ﷺ) ! कहां तशरीफ़ ले जा रहे हैं?
आप (ﷺ) ने फ़रमाया, मुझे मक्के वालों ने मक्के में न रहने दिया, इसलिए हिजरत कर के यसरब जा रहा हूं।
ऐ अल्लाह के रसूल (ﷺ) ! जब आप मक्का छोड़ कर तशरीफ़ ले जा रहे हैं, तो मैं भी मक्का जा कर क्या करूंगा? मैं भी यहीं से आप के साथ चलूंगा, जुबैर ने कहा।
हुजूर (ﷺ) ने फ़रमाया, जुबैर ! यह बात मुनासिब नहीं है। तुम मक्का जा कर वहां के तमाम कामों से फ़रागत पा कर यसरब आ जाना।
हजरत जुबैर ने कहा, बहुत अच्छा, लेकिन मैं हुजूर और हजरत अबू बक्र सिद्दीक रजि० के लिए शाम देश-से कुछ कपड़े तैयार करा कर लाया हूं, वह हुजूर (ﷺ) की नज्र करता हूं। मेहरबानी फरमा कर कुबूल कर लीजिए।
हुजूर (ﷺ) ने कहा, अच्छा ले आओ।
हजरत जुबैर वापस गये और कपड़े ले आए, जिसे हजरत अबू बक्र सिद्दीक (र.अ) ने ले लिया और वह चले गये।
इधर यह काफिला रवाना हुआ।
बुरैदा और उनके काफिले का ईमान लाना
चूंकि अंदेशा पीछा करने वालों का था, इसलिए अब्दुल्लाह ने आम रास्ता छोड़ कर मैदानी इलाके में सफ़र करना शुरू किया। रात वहीं ठहरे, सुबह फिर चले पड़े। दोपहर तक सफ़र ते कर के रास्ते में कुछ खेमे नजर आए। खेमे के सामने बैठे कुछ लोग बातें कर रहे थे।
चूंकि दोपहर का वक्त था, उन सब को प्यास लग रही थी, इसलिए उन्हों ने ऊंटों का रुख खेमों की तरफ़ कर दिया।
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खेमे के लोग उठ कर आ गये। उन में के बड़े ने सब का इस्तेकबाल किया।
हजरत अबू बक्र (र.अ) ने छूटते ही कहा, ऐ मुसाफ़िर नवाज अरबो ! हम प्यासे हैं, हम को पानी पीने के लिए दो।
उन के मुखिया ने हजरत अबू बक्र (र.अ) को पहचान लिया, बोला अबू कहाफ़ा के बेटे ! हम बड़े खुशनसीब हैं कि मक्के का बड़ा ताजिर हमारा मेहमान हो। तुम पानी मांगते हो, लेकिन हम ऐसे गये गुजरे नहीं कि तुम्हें दूध भी न पिला सकें। हम तुम्हारा इस्तेकबाल करेंगे, आओ चल कर खेमे में बैठो।
सब खेमे में पहुंच कर आराम से बैठ गये। हजरत अबू बक्र ने पूछा, मेहरबान मेजबान ! तुम्हारा नाम क्या है !
मेरा नाम बुरैदा है, उस ने जवाब दिया।
क्या तुम अपने कबीले के सरदार हो?
जी हो! मेरे क़बीले में कुल सत्तर आदमी हैं। सब साथ ही रहते हैं।
अबू बक्र (र.अ) ने पूछा, आप को आये यहां कितने दिन हुए?
लगभग दो हफ्ते, जवाब मिला।
अब कहां जाने का इरादा है?
हम घुमक्कड़ों का इरादा ही क्या, अभी तो यहीं ठहरूंगा।
इस बीच दूध आ गया। सब ने दूध पिया।
अब बुरैदा ने हजरत अबू बक्र से पूछा, यह तुम्हारे साथ कौन हैं ?
हजरत अबू बक्र (र.अ) ने जवाब दिया, यह मेरे हादी हैं।
बुरैदा ने हैरत से पूछा क्या यह मुहम्मद (ﷺ) हैं ?
हां, यह हजरत मुहम्मद (ﷺ) हैं, हजरत अबू बक्र ने तस्दीक की।
बुरैदा के चेहरे पर थोड़ी सख्ती आ गयी।
उस ने कहा, यह हमारे माबूदों की तौहीन करते हैं, हमारे मजहब को झूठा कहते हैं और हमारे बुजुर्गों को बुरा-भला कहते हैं।
हुजूर (ﷺ) ने फ़रमाया,
बुरैदा ! एक होशियार इंसान का फर्ज है कि हर बात पर गौर से और ठन्डे दिल से सोचे और फिर जो कुछ उस का दिल, उस का दिमाग, उस का जमीर उसे इजाजत दे उस पर अमल करे।
सुनो ! जिन बुतों को तुम पूजते हो, उन्हें तुम अपने हाथों से बनाते हो, या तूम्हारे बुजुर्गों ने बनाया है, बूततराशों ने जिस बुत की जैसी सूरत चाही बना ली, लोगों ने उस की इबादत शुरू कर दी, लेकिन उस बूत पर कभी गौर न किया कि जो बुत हरकत न कर सकते हों, न सुन सकते हों, वे खुदा कैसे हो सकते हैं?
खुदा वह है जो हर जगह मोजूद है, हर आदमी की बात सुनता है और हर काम को देखता है, उस से कोई काम या कोई बात छिपी हुई नहीं है। अब तुम्हीं बताओ, बुतों को पूजना मुनासिब है, या उस खुदा को जिस के हाथ में सब कुछ है ?
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बुरैदा और उस के साथी बड़े गौर से हुजूर (ﷺ) की तकरीर सुन रहे थे।
जब हुजूर (ﷺ) खामोश हुए तो बुरैदा ने कहा, मैं ने हुजूर (ﷺ) की बातें सुनी, असरदार भी हैं और सही भी।
हुजूर (ﷺ) ने फ़रमाया, अगर सही हैं तो उसे कुबूल करने में क्या है परेशानी है?
तैयार हूं, मुसलमान बना लीजिए, बुरैदा ने कहा।
हुजूर सल्ल० ने कलिमा पढ़ा कर उसे मुसलमान कर लिया।
फिर बुरैदा (र.अ) ने अपने कबीले के तमाम लोगों को जमा किया और कहा – ऐ मेरे कबीले के लोगो! तुम्हें मालूम है कि मैं कभी झूठ नहीं बोला, न कभी कोई बे-अक्ली की बात की, कभी नाहक बात मैं ने मानी नहीं। तो सुनो, आज मैं मुसलमान हो गया हूं। चाहता हूं कि तुम सब भी मुसलमान हो जाओ, सिर्फ एक खुदा को पूजो।
तमाम लोगों ने एक दूसरे को हैरत भरी नजरों से देखा। वे सब बुतपरस्त थे। उन्हों ने कभी इस्लाम का नाम भी नहीं सुना था।
उन्हें हैरान देख कर बुरैदा ने कहा, इस में हैरत की कोई बात नहीं। जिन बुतों को हम और हमारे बाप-दादा पूजते रहे हैं, वे पत्थर की मूर्तियां हैं, जो न हरकत कर सकती हैं, न किसी को नफ़ा और नुक्सान पहुंचा सकती हैं। पूजने के काबिल तो सिर्फ़ वह जात है, जिस ने दुनिया-जहान को पैदा किया और वह हर जगह मौजूद है।
सब लोगों ने कहा, ऐ कबीले के सरदार ! जब तुम मुसलमान हो गये तो हम सब भी मुसलमान होने को तैयार हैं। फिर उन्हें कलिमा पढ़ा कर मुसलमान कर लिया। तमाम मौजूद लोगों के चेहरों पर खुशी की लहर दौड़ गयी।
बुरैदा ने हुजूर (ﷺ) से पूछा, हुजूर (ﷺ) ! कहां तशरीफ़ ले जा रहे हैं ?
यसरब, आप (ﷺ) ने फ़रमाया।
बुरैदा ने हैरत से आप के चेहरे को देखा और बोला यसरब! इस अनजाने रास्ते को आप ने क्यों अपनाया?
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इसलिए कि मेरी कौम ने मुझे बेहद सताया, आप (ﷺ) ने फरमाया, जब मैं ने उन के जुल्म से तंग आ कर हिजरत का रास्ता अख्तियार किया, तो उन्हों ने रुकावटें पैदा की। आखिरकार में मौका निकाल कर हिजरत के लिए चल पड़ा और पीछा करने के अंदेशे से इस अनजाने रास्ते से जा रहा हु।
बुरैदा ने कहा, लेकिन हुजूर (ﷺ) को कैसे इत्मीनान हुआ कि मक्का वालों की तरह यसरब वाले आप को तकलीफ न पहुंचाएंगे।
हुजूर (ﷺ) ने फरमाया, यसरब के लोग ज्यादा तायदाद में मुसलमान हो गये हैं। जो लोग मक्का से वहां पहुंचे हैं, वहां के लोगों ने उन का जोरदार इस्तेकबाल किया है। इस के अलावा मुझे खुदा का हुक्म भी वहीं जाने का हुआ है और यसरब वालों ने भी मुझे बुलाया है।
बुरेदा ने कहा, क्या हम भी हुजूर (ﷺ) के साथ चल सकते हैं ?
हां, चल सकते हो, आप ने जवाब दिया, यसरब वाले तुम्हारा भी इस्तेकबाल करेंगे।
बुरंदा खुश हो गया, बोला, बस, तो हम भी हुजूर (ﷺ) के साथ चलेंगे।
अगर यह बात है, तो फ़ौरने तैयार हो जाओ, हुजूर (ﷺ) ने फ़रमाया।
हमें तैयारी ही क्या करनी है, सिर्फ़ खेमे उखाड़ कर ऊंटों पर लाद लेना है, बुरैदा ने कहा।
यह कह कर बुरेदा और उस के कबीले के लोग उठ कर बाहर चले गये और खेमे उखाड़-उखाड़ कर ऊंटों पर लादना शुरू कर दिया। और थोड़ी देर में यह पूरा काफ़िला यसरब की तरफ रवा-दवा हो गया।
To be continued …
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