रसूलुल्लाह (ﷺ) ने हजरत दिह्या कलबी (र.अ) के हाथ रूम के बादशाह हिरकल (Hercules) के नाम दावती खत भेजा, जिस का मजमून यह था –
“यह खत अल्लाह के रसूल मुहम्मद (ﷺ) की तरफ से रूम के बड़े बादशाह हिरक्ल के नाम है, जो हिदायत की इत्तेबा करे, उस पर सलामती हो, मैं तुम्हें दीने इस्लाम की तरफ बुलाता हूँ, इस्लाम कबूल कर लो, सलामत रहोगे, अल्लाह तआला तुम को दुगना अज्र अता फ़र्माएगा और अगर तुम ने नहीं माना तो तमाम रिआया के इस्लाम न लाने का गुनाह भी तुम पर होगा।
ऐ अहले किताब ! ऐक ऐसी बात की तरफ आओ, जो हमारे और तुम्हारे दर्मियान बराबर है, वह यह के हम अल्लाह के अलावा किसी की इबादत न करें और हम में से कोई अल्लाह के अलावा किसी को रब और माबूद न बनाए और अगर तुम नहीं मानते तो गवाह रहो के हम अल्लाह की ताबेदारी करते हैं।”
शाहे हिरक्ल ने आप (ﷺ) के मुबारक खत को अदब व एहतेराम के साथ सोने के कलमदान में रखा और अबू सुफियान की जबानी हालात सुन कर कहा मैं खूब जानता हूँ के आप सच्चे नबी हैं, लेकिन अगर मैंने ईमान क़बूल कर लिया तो मेरी हुकूमत जाती रहेगी और रूम के लोग मुझे कत्ल कर डालेंगे।
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