काश ये इत्तेहाद हम’में पहले से होता ?

“काश ये इत्तेहाद हम’में पहले से होता ,..
तो शाने-नबी में गुस्ताखी, किसी मरदूद की जुर्रत ना होती ..

*ना करता अहानते रसूल की हिम्मत कोई ,..
गर मेरे नबी के अहसानों का इन्हें इल्म होता .. ”
* * * * *

*मेरे अज़ीज़ भाइयो ,.
– ये वक्त की जरुरत है – ” जहालत का जवाब इल्म से देने की ”
– तो हमे बताइए – क्या ये वक्त नहीं के हम इमाम-उल-अम्बिया रसूल-ऐ-करीम
(सलल्लाहो अलैहि वसल्लम) की सिरते-मुबारक लोगो में आम करे ?

*अगर हां ! तो हमे जरुरत है के –
– फिरकापरस्ती के तास्सुब से बाहार निकलकर सिर्फ एक ही नबी के उम्मती होकर
इस दींन की दावत अपने गैरमुस्लिम भाइयो को दे ,..
– उनके शको-शुभात और उनकी गलतफेमियो को दूर करना है ,.
– और मोहब्बत भरे इस दींन की दावत लोगों में आम करना है …

♥ इंशाल्लाह-उल-अज़ीज़!! हम बोहोत जल्द इस साईट पर
अपने गैरमुस्लिम भाइयो के लिए हिंदी में दावती पोस्ट करने वाले है ..

*क्या हम जान सकते है आप में से कितने हजरात
हमारे पोस्ट आगे पोहोचाने में हमारी मदद करेंगे ?

Leave a Reply