इस्लाम की मुल आस्थाये ३ है , जिन्हें मानना सम्पूर्ण मानवजाति के लिए अनिर्वाय (Compulsory) है |
- तौहिद – एकेश्वरवाद (एक इश्वर में आस्था रखना)
- रिसालत – प्रेशित्वाद (इशदुत, नबी, Messengers)
- आखिरत – परलोकवाद (मृत्यु के बाद का जीवन)
पहली अनिर्वाय आस्था – तौहीद
इस्लाम की सबसे पहली जो आस्था है तौहिद इसको हम आपके सामने रखते है जो मानवता को बताने के लिए इश्वर (अल्लाह) ने हर समय, हर समुदाय, हर जाती के अंदर प्रेषित (नबी, इश्दुत) भेजे ताकि मानवों को बता दे और उनका रिश्ता श्रुष्टि के रचियेता एक इश्वर से जोड़ दे।
तो तौहिद का अर्थ होता है के – “अल्लाह को एक सत्य इश्वर माने , उसके बारे में ज्ञान प्राप्त करे और उसी की आराधना, उपासना और पूजा करे,.. क्युंकी वो निराकार एक सत्य इश्वर अल्लाह ही है जिसने सारे जगत का निर्माण किया, वही उसका रचियेता , मालिक और उसका रब है।”
– और क्यूंकि उसने इन सबकी रचना की तो ये जरुरी है हम पर के उसी इश्वर की आराधना उपासना और पूजा करे जिसने ये सब मानवों के लिए बनाया है।
*और इसी सन्देश को लेकर इशदूत आये और यही बात एक सत्य इश्वर अल्लाह की बड़े-बड़े ऋषियों ने मुनियों ने, ज्ञानियों ने और जो कोई धर्म का ज्ञान रखता है वो इसके बारे में आपको बताएँगे के इस आस्था की क्या अहमियत है और ऐसे कई प्रेषित आये जिन्होंने ये बाते लोगों को बताई !! और इश्वर के अंतिम प्रेषित मोहम्मद (सलाल्लाहो अलैहि वसल्लम) इनकी पूरी ज़िन्दगी का सन्देश भी तौहीद (एकेश्वरवाद) ही था।
एक बार प्रेषित मोहम्मद (सलाल्लाहो अलैहि वसल्लम) के पास कुछ लोग आये और कहा के –
“हे प्रेषित ! तुम जिस अल्लाह की तरफ लोगों को बुलाते हो; हमे थोडा बताओ तो सही वो कैसा है ?” तो प्रेषित मोहम्मद(स०) अपने दिल से कोई बात ना कहते उनपर एक इशवाणी(श्लोक/Verse) आई और वो यह थी जो के कुरआन का अध्याय ११२ और उसके श्लोक १ से ४ अवतरण हुए और उसमे कहा:
२. वो निरपेक्ष है (उसने पुरे विश्व का निर्माण किया लेकिन उसे किसी भी चीज़ की गरज नहीं है) ,
३. उसको कोइ संतान नहीं है और ना ही वो किसी की संतान है,
४. और उस सत्य इश्वर अल्लाह जैसा दूसरा कोई नहीं है।
यानी इस्लाम की पहली आस्था ये है के इश्वर को एक जानना और मानना, उसके साथ किसी को भी साझी नहीं ठहराना।
दूसरी अनिर्वाय आस्था – रिसालत
रिसालत का अर्थ होता है के जब अल्लाह ने पृथ्वी पर मानवो को भेजा तो मानव क्या करे और क्या ना करे , कैसे जीवन व्यक्त करे इसके मार्गदर्शन के लिए इश्वर(अल्लाह) मानवो में से एक मानव को चुन लेता था फिर वो अपनी वाणी उस तक भेजता था और फिर उन्हें मार्गदर्शन बताता के उचित जीवन और मृत्यु के बाद की सफलता के लिए मानवो ने कैसे जीवन व्यत्क्त करना है।
*और ये बाते इश्वर के चुने हुए प्रेषित (messenger) लोगों को बताते थे के तुम्हारा इश्वर तुमसे क्या चाहता है। और ऐसे कई प्रेषित आये, इनमें से अंतिम प्रेषित मोहम्मद (सलाल्लाहो अलैहि वसल्लम) ने इसके संधर्भ में अपने वचनों(हदीस) में कहा के
“इस संसार(विश्व) में इश्वर(अल्लाह) ने १ लाख २४ हज़ार से ज्यादा प्रेषित भेजे और हर समुदाय हर जाती और जहा मानव बसते थे वह ये आते थे और एक सत्य इश्वर अल्लाह का पैगाम लोगो को बताते थे।”
और इसी के संधर्भ में कुरान के एक श्लोक में इश्वर(अल्लाह) केहता है:
एक और अध्याय में अल्लाह ने कहा –
और क्यों ना हो ?
– अगर एक इन्सान को माँ-बाप है और वो उन्हें छोड़कर दुसरो को माँ-बाप कहे तो उसके माँ-बाप को बोहोत तकलीफ होती है ना ,..
– तो वैसे ही जिस इश्वर ने बनाया उसको छोड़कर लोग अगर दुसरो की उपासना करे तो उसको भी बुरा लगता है।
के “मैंने इनका निर्माण किया और ये दुसरो के सामने नतमस्तक होते है”
इसी तरह एक और अध्याय में इश्वर(अल्लाह) केहता है –
– तो हर जगह जहाँ-जहाँ मानवता रही है वह इश्वर की तरफ से प्रेषित/संदेष्ठा(Messenger) आते थे | और वो लोगों को बताते थे के विश्व के निर्माता उनसे क्या चाहता है और ऐसे कई प्रेषित(Messenger) आये जो पिछले प्रेषित थे इनका जो सन्देश था वो एक समुदाय और मर्यादित समय के लिए होता था लेकिन इश्वर के अंतिम प्रेषित मोहम्मद(स.) के बारे में कुरआन ये कहता है:
“यह प्रेषित सिर्फ अरबो के या मुसलमानों के ही नहीं बल्कि सारे मानवजाति के लिए मार्गदर्शक है और इनका सन्देश भी सारी मानवजाति के लिए है” .. जिसके संधर्भ में इश्वर(अल्लाह) ने कुरआन में कहा –
– तो प्रेषित मोहम्मद (स.) सारी मानवजाति के लिए रेहमत (करुणा/दया/मार्गदर्शक) थे ,.. और वो ऐसी रहमत थे के उन्होंने आकर वो सन्देश जो इश्वर(अल्लाह) का था वो पूरी मानवजाती तक पोहचा दिया ,… अगर ऐसा ना होता तो हमे कैसे पता चलता के इश्वर हमसे क्या चाहता है …. तो वो दया और करुणा थे पूरी मानवजाति के लिए।
कुरआन के एक अध्याय में अल्लाह केहता है –
– तो प्रेषित मोहम्मद (स.) ना ही सिर्फ अरबो के , ना ही सिर्फ मुसलमानों के , और ना ही किसी सिमिति समुदाय के लिए बल्कि पूरी इंसानियत के लिए संदेष्ठा बनाकर भेजे गए है।
इसी तरहा कुरआन में एक और अध्याय में अल्लाह ने कहा –
अर्थात: हे प्रेषित हमने तुम्हे पूरी मानवजाति के लिए मार्गदर्शक बनाकर भेजा है और तुम अच्छे कर्म करनेवालों को शुभ-सुचना देते हो और बुरे कर्म करनेवालों को सावधान करते हो।
लेकिन एक अजीब बात है अक्सर मानव तुम्हारे बारे में जानते नहीं के तुम सबके लिए हो और कितनी सच बात कही है कुरआन में अल्लाह ने।
*तो प्रेषित मोहम्मद(स.) सारे मानवजाति के लिए आदर्श है और जब भी कोइ प्रेषित आता तो प्रेषित के साथ इशवानी (इशग्रंथ) आते , और ऐसे कुछ ग्रंथो के नाम कुरआन ने लिए।
जैसे पृथ्वी पर जितने प्रेषित आये उनमे से सिर्फ २५ प्रेषितो के नाम कुरआन में लिए है ,.
जैसे के – आदम! जिनकी हम सब संतान है तो आदमी कहते है हम अपने-आपको ,..
इसी तरह नूह ,. या नोहा जिसको कहते है ,.. इब्राहीम (अब्राहम) , मूसा (मोसेस) , इसा(यशु) और प्रेषित मोहम्मद इन सबपर इश्वर की शांति और कृपा हो ,.. ये भेजे थे | उनके साथ कुछ ग्रंथ भेजे और कुरआन ने ३ ग्रंथो के नाम अपने अलावा अर्थात कुल ४ ग्रंथो के नाम लिए है ,.
१) तौरेत (तौरह) – ये वो ग्रंथ था जो प्रेषित मूसा(अलैहि सलाम) इनपर अवतरण हुआ था ,..
२) जुबुर – ये ग्रंथ प्रेषित दावूद (अलैहि सलाम) पर अवतरण हुआ था जिन्हें डेविड कहते है,..
३) इंजील (बाइबिल) – प्रेषित इसा मसी(अलैहि सलाम) पर अवतरित हुआ था ,..
४) कुरआन – ये ग्रंथ इश्वर के अंतिम संदेष्ठा प्रेषित मोहम्मद (सलाल्लाहो अलैहि वसल्लम) पर इसका अवतरण हुआ था।
– और इसका एक नाम फुरकान भी है , अर्थात कसौटी (Criteria) , फर्क करने वाली किताब ,.. अच्छे और बुरे को अलग करनेवाली किताब है ये।
तो अल्लाह ने इन ४ किताबो के नाम लिए, और जो पहले ग्रंथ(इशवानी) आते थे वो मर्यादित जाती और समुदाय के लिए हुआ करते थे ,.. लेकिन जैसे प्रेषित मोहम्मद (स.) सबके लिए है वैसे ही ये कुरआन भी ऐसा ग्रंथ है जो अंतिम प्रलय तक, जबतक मानवता दुनिया में रहेगी तब तक सबके लिए है और ये दुनिया का एक ही ऐसा ग्रंथ है जो कहता है जोर-जोर से – “हे मानवों मै तुम सबके लिए हु।”
जिसके संधर्भ में कुरआन में अल्लाह ने कहा –
तीसरी अनिर्वाय आस्था – आखिरत
आखिरत का अर्थ होता है – परलोकवाद (अंतिम प्रलय या मृत्यु के पच्छात जीवन पर विश्वास):
*जैसे के: हम इस जीवन से पहले मृत्य थे, इश्वर(अल्लाह) ने हमे पृथ्वी पर भेजा (जीवन दिया).. तो एक मृत्यु और उसके बाद ये जीवन एक हुआ ,. इस जीवन के बाद फिर एक मृत्यु है और उस मृत्यु के बाद फिर एक जीवन है यानी फिर दोबारा हम उठाये जाने वाले है ,..
– और उठने के बाद मुझे और आपको हिसाब (अकाउन्ट्स) देना है,.. क्या कर्म कर के आये है? सुकर्म , कुकर्म और उसके हिसाब से हमे जन्नत(स्वर्ग) और जहन्नुम(नर्क) मिलने वाली है।
– तो हमे अच्छे कर्म करना है क्यूंकि हम जवाब देना (Accountable) है इश्वर के सामने , मरने के बाद हमे जवाब देना है ,..
और इसी बात को कुरआन ने कहा –
*तो वही कार्य करो जो इश्वर केहता है, उसी एक सत्य इश्वर (अल्लाह) पर इमान लाओ, उसके भेजे हुए मार्गदर्शक इश्दुत(नबी,रसूल) पर इमान लाओ और सत्य पर चलते हुए सत्कर्म करो।
*और जो लोग उस सत्य के मार्ग पर चलेंगे उनके संधर्भ में कुरआन कहता है –
(जब शैतान ने आदम और उसकी पत्नी हव्वा को बहका दिया और वो स्वर्ग से निकाले गए और जब पृथ्वी पर भेजा जा रहा था तब इश्वर ने उनको ये नसीहत की)
और वो लोग जो अल्लाह के इनकारी बनेंगे उनके बारे में अल्लाह ने अगले श्लोक में कहा:
तो इस्लाम की ३ मुख्य आस्थाये (तौहीद , रिसालत, आखिरत) जिनको मानना सम्पूर्ण मानवजाति के लिए अनिर्वाय है।
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