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Seerat un Nabi (ﷺ) Series: Part 8
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समझौते की बात
ईमान लाने पर मुसलमानों पर बड़े से बड़ा जुल्म किया गया, इतना जुल्म किया गया कि आज हम में से कोई आदमी सोच भी नहीं सकता।
यह जुल्म गरीब, बेबस, गुलामों और लौंडियों पर ही नहीं हुआ, बल्कि अमीरों और रईसों, कबीले के सरदारों पर ऐसे ही जुल्म किये गये। हजरत उस्मान बिन अफ्फान, हजरत अबू हुजैफ़ा बिन उतबा, हजरत अब्दुल्लाह बिन मसऊद, हजरत अब्दुर्रहमान बिन औफ़, हजरत जुबैर बिन अवाम, कुरैश के मशहूर और ताकतवर कबीलों से ताल्लुक रखते थे, बहादुर थे, इज्जतदार थे, लेकिन मुसलमान होने पर उन्हें भी जुल्म का निशाना बनाया गया।
मुसलमानों ने निहायत सब्र व शुक्र से सख्तियां झेली, जुल्म सहे, पर एक मुसलमान भी इस्लाम से न फिरा। मुसलमानों के इस जमाव ने काफिरों को हैरत में डाल दिया।
चूंकि तबीयतें अलग-अलग होती हैं। कुछ लोग दिल के नर्म होते हैं और कुछ सख्त, कुछ कुफ्फार ऐसे भी थे, जिन के दिल जुल्म की इस इंतिहा पर पसीजे। उन्हों ने संगदिल जालिमों को समझाना शुरू किया।
वे भी मजबूर मुसलमानों पर इन्तेहाई जुल्म व सितम कर के थक चुके थे, कुछ नर्म पड़े। इस से मुसलमानों पर जो सख्तियां की जा रही थीं, उन में कुछ कमी हुई।
सहाबा का सब्र देखकर लोग इस्लाम अपनाने लगे
जब अक्सर लोगों ने देखा कि मुसलमान पिटते हैं, धूप में जलती रेत पर लिटाये जाते हैं, भारी और वजनी पत्थर उन के सीनों पर रख दिया जाता है, सारा-सारा दिन भूखे-प्यासे रहते हैं और फिर भी इस्लाम को नहीं छोड़ते, तो उन्हें खयाल हुआ कि ये इतने बेवकूफ नहीं हो सकते। जरूर ईस्लाम की तालीम ऐसी अच्छी है, जिसे छोड़ना उन्हें पसन्द नहीं।
इस ख्याल ने बहुत से लोगों को मुसलमान होने पर उकसाया, चुनांचे वे छिप कर अरकम के मकान में पहुंचे। हुजूर (ﷺ) की खिदमत में हाजिर हुए। मक्का के काफ़िर चाहते तो यह थे कि मुसलमान फिर काफ़िर हो जाएं, पर उलटा असर हो रहा था, कि काफ़िर आ कर मुसलमान होते जा रहे थे। हर रोज कुफ्फ़ार सुन लेते थे कि आज फला शख्स मूसलमान हो गया है और आज फला, तो बहुत बिगड़ते, गुस्सा होते और हर नये
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मुसलमान पर सख्तियां करते, पर ईमान लाने का जो सिलसिला शुरू हो गया था, वह न रुका, बल्कि बराबर जारी रहा।
यह देख कर कुफ्फार में बड़ी बेकरारी रही, खास तौर से अबू जहल, अबू लहब, उत्बा बलीद, अबू सुफ़ियान, आस बिन वाइल सहमी और इसी किस्म के बड़े लोगों की चिन्ता बढ़ गयी। बात यह भी थी कि ये लोग न सिर्फ़ इज्जतदार और मालदार थे, बल्कि इनमें से हर एक किसी न किसी ओहदे पर था, जैसे अबू सुफ़ियान कुरैश का अलमबरदार था, अब्बास हाजियों को पानी पिलाते थे, वलीद सवारों का अफ़सर था। हर्स बिन कैस खजाने का मालिक था और अबू जहल अपने कबीले का सरदार था। कुरैश की सरदारी इन्हीं लोगों के हाथ में थी।
अबू जहल और कुरैश के सरदारों को असली डर
इस्लाम उनकी झूठी सरदारी को चुनौती दे रहा था। वे देख रहे थे कि जो आदमी मुसलमान हो जाता है, चाहे किसी भी गिरोह और तब्के का हो, बराबरी का हक हासिल कर लेता है। एक मुसलमान को दूसरे पर कोई बरतरी नहीं रहती। गुलाम और आका एक ही लाइन में शामिल हो जाते हैं।
यह बात उन की मबाशरत के खिलाफ़ थी। उस का तरीका यह था कि गुलाम सिर्फ खिदमत करते-करते ही मर जाने के लिए पैदा हुआ है। वह न अच्छा खा सकता है, न अच्छा पहन सकता है, न आका के साथ उठ बैठ सकता है।
वे समझ रहे थे कि अगर गुलामों को आजादी मिल गयी, उन्हें बराबर के हक मिल गये तो उन की बरतरी मिट्टी में मिल जायेगी, इसलिए वे भी इस्लाम और मुसलमानों से दुश्मनी का बर्ताव करते थे, लेकिन जब उन्हों ने मुसलमानों की तायदाद बढ़ते देखी, तो घबरा गये।
अबू जहल ने फिर मज्लिसे शूरा बुलायी। जब सब आ गये, तो उस ने कहा कि बूत के परस्तारो ! अफ़सोस है, हम ने शुरू में जिस फ़ित्ने को मामूली समझा था, वह बढ़ कर हमारी सरदारी को चोट करने लगा है। अगर कुछ दिन और गाफिल रहे तो अजब नहीं तमाम मक्का और सारा अरब मुसलमान हो जाए और फिर हमें भागने का रास्ता ढूंढना पड़े, या जिन लोगों पर हम हकूमत करते रहे, उन के महकम बन कर रहें।
क्या यह बात हमारे लिए शर्म की बात न होगी? कम से कम मैं इस बात को किसी तरह सहन नहीं करूंगा। इस वक्त तुम लोग मौजूद हो, या तो मुहम्मद (ﷺ) के फ़ित्ने को दूर करने की तदबीर सोचो, वरना में साफ तौर पर कहता कि मैं यहां से कहीं और चला जाऊंगा।
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अबू जहल की पूरे मज्मे ने ताईद कर दी। अबू जहल ने कहा, मुझे हैरत है कि मुहम्मद (ﷺ) लोगों पर क्या जादू करता है (नऊबिल्लाह) कि वे हजार सितम सहने पर भी इस्लाम से नहीं फिरते।
वलीद ने कहा, असल में वह बड़ा जादूगर है। जो आदमी उस से एक बार बात करता है, उसी पर मोहित हो जाता है। उत्बा बहुत इल्म वाला था, उसे अपनी जबानदानी पर बड़ा नाज था। उस ने कहा, मेरे ख्याल में वह कुर्सी का भूखा है, इस लिए उस ने कौम में फ़ित्ना पैदा कर रखा है।
अबू लहब बोला, बगर वह कुर्सी चाहता है, या दौलत चाहता है, तो वह जो चाहे, उसे दे दो। अभी तो इस फ़ित्ने को किसी न किसी तरह दबा देना मुनासिब है।
आस ने मूंछों पर ताव दे कर कहा, हरगिज़ नहीं, उसे कुछ भी नहीं दिया जा सकता। अगर आज हम उस से रौब खा कर, जो मांगे, दे दें, तो कल कोई और उठ खड़ा होगा और परसों कोई और। सोचो, इस तरह से हम किस-किस को और क्या-क्या देते रहेंगे।
अबू सुफियान ने कहा, बेशक हम को उसे कुछ भी न देना चाहिए। हम उस की सरदारी नहीं मान सकते। माबूदों की कसम ! हरगिज नहीं। मर जाएंगे, पर उस की हुकूमत नहीं मानेंगे।
वलीद ने कहा, जो फितना हमारे सामने है, वह मामूली नहीं। हम देख रहे हैं कि दिन-ब-दिन उस के मानने वालों की तायदाद बढ़ रही है। हम ने उन पर सख्तियां कर के देख लिया, कुछ नतीजा नहीं निकला। बेहतर यही है कि जो वह मांगे, दे दिया जाए।
थोड़ी सी बहस-मुबाहसे के बाद यह तै हुआ कि उत्बा को हजरत मुहम्मद (ﷺ) की खिदमत में सफीर (दूत) बना कर भेजा जाए और उसे अख्तियार दिया जाए कि जिस तरह से मुम्किन हो, सुलह कर के हुजूर सल्ल. को हमवार करे। चुनांचे उत्बा रवाना हुआ और हुजुर सल्ल. की खिदमत में पहुंचा। हुजूर सल्ल. ने उस का स्वागत किया। उसे एहतराम से अपने पास बिठाया।
उत्बा ने कहा, ऐ मुहम्मद (ﷺ) ! मैं आज तमाम कुरैश की तरफ़ से सफ़ीर बन कर हाजिर हुआ हं, कुछ अर्ज करना चाहता हूं। हुजूर सल्ल. उसे गौर से देख कर मुस्कराये। आप (ﷺ) ने कहा, कहो उत्बा! तुम क्या कहना चाहते हो?
उत्बा ने कहा, आप ने अपनी कौम में ऐसा फ़ित्ना खड़ा कर दिया है, जो आज तक किसी ने नहीं किया। क्या आप इसे पसन्द करते हैं कि
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मुसलमानों पर रात व दिन सख्तियां की जाएं ? आप (ﷺ) ने थोड़ी सांस भर कर कहा, तुम नहीं जानते, मुसलमानों पर जो सख्तियां की जाती हैं, उन से मेरा दिल कितना दुखता है।
उत्बा ने कहा, फिर आप ऐसी तदबीर क्यों नहीं करते, जिस से वे सख्तियां बन्द हो जाएं ?
हुजूर (ﷺ) ने फ़रमाया, मैं क्या तबीर कर सकता हूं। अल्लाह की मस्लहत में कोई दम नहीं मार सकता।
उत्बा ने बुरा-सा मुंह बना कर कहा, खुदा का नाम न लो। सारा फ़ित्ना इस खुदा के नाम ही का है। आप को तद्बीर मैं बताता हूं।
हुजर (ﷺ) ने पूछा, तदबीर है ?
उत्बा ने कहा, आप को तमाम कुरैश अपना सरदार बनाने को तैयार हैं। आप मक्का के बादशाह बन जाएं। तमाम खजाना, सारी फ़ौज आप की मातहती में दे दी जाएगी। जिस औरत या जिस लड़की से आप कहेंगे, आप की शादी कर दी जाएगी। इस मंसब को कबूल कर लीजिए।
हजूर (ﷺ) ने कहा, उत्बा ! अगर कुरैश के सरदारों ने यह समझा है कि मंसब की लालच में और हुकमत मिलने के ख्याल से इस्लाम की तब्लीग कर रहा हूं, तो गलत समझा। खुदा की कसम ! मैं खिदमत ही करना चाहता हूं। मुझे मंसब की आरजू नहीं है। मैं हुकुमत नहीं चाहता। अगर कोई तमन्ना है, तो सिर्फ यह कि तुम सबं मुसलमान हो जाओ। पत्थर के बुतों को पूजना छोड़ दो। उत्बा ! मैं खुदा का रसूल हूं। मुझ पर खुदा का पैगाम नाजिल होता है।
हुजूर सल्ल० ने फिर आयत सुनायी, जिस का तर्जुमा इस तरह है –
“ऐ मुहम्मद! कह दो कि मैं तुझ जैसा आदमी हूं। मुझपर वह्य नाजिल होती है कि तुम्हारा खुदा बस एक खुदा है। पस सीधे उस की तरफ़ जाओ और उस से माफ़ी मांगो।”
इन आयतों को सुन कर उत्बा का चेहरा उतर गया। और वह हैरान हो कर हुजूर सल्ल. की तरफ़ देखने लगा। हुजूर सल्ल• ने कहा, उत्बा और सुनो, अल्लाह फ़रमाता है “(ऐ मुहम्मद ! ) कह दो कि क्या तुम लोग अल्लाह का इंकार करते हो ? जिस ने दो दिन में यह जमीन पैदा की और तुम खुदा का शरीक करार देते हो। वही सारी दुनिया का पालने वाला है।”
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उत्बा के चेहरे का रंग इन आयतों को सुनकर उड़ गया। वह कांपने लगा। उस ने हुजूर (ﷺ) के मुंह पर हाथ रख कर कहा, बस, वरना मेरा दिल उलट-पलट जाएगा और कलेजा फट जाएगा।
हुजूर (ﷺ) चुप हो गये।। उत्बा उठ कर सीधा कुरैश की मज्लिस में पहुंचा।
अबू लहब ने पूछा, उत्बा ! क्या रहा?
उत्बा ने कहा, अगर मेरी बात मानो तो यही बेहतर है कि मुहम्मद से कुछ न कहो।
अबू जहल ने हंस कर कहा, क्या तुम पर भी उस ने जादू कर दिया है ?
उत्बा ने कहा जो तुम चाहो कहो। मेरी राय तो यह है कि उन को उन के हाल पर छोड़ दो। अगर वह तमाम अरब पर गालिब आ गये, तो यह तुम्हारी इज्जत है, वरना अरब खुद उन को फ़ना कर देंगे।
अबू लहब ने कहा, यह नहीं हो सकता।
अबू सुफ़ियान ने जोश में भर कर कहा, हम को सिर्फ अबू तालिब का पास (लिहाज) है, वरना हम खुद उस का खात्मा कर देते।
अबू जहल ने कहा, बेहतर तो मालूम होता है कि एक वफ्द अबू तालिब की खिदमत में जाए और उन से साफ़-साफ़ कह दे कि या तो वह अपने भतीजे को समझा दें कि वह हमारे माबूदों की तौहीन न करें, वरना हम उसे जरूर कत्ल कर डालेंगे।
सब ने इस बात की ताईद की और बात हो गयी। इस कार्रवाई के बाद मज्लिसे शूरा बरख्वास्त कर दी गयी। लोग अपने-अपने घरों को चले गये।
कुरैश का वफ्द अबू तालिब की खिदमत में
अबू तालिब की खिदमत में वफ्द हाजिर हुआ। अबू तालिब ने उन का जोरदार स्वागत किया।
जब तमाम लोग बैठ गये, तो अबू तालिब ने पूछा, कहिए, आज आप लोगों ने कैसे कष्ट किया ?
अब जहल ने कहा, मोहतरम बुजुर्ग ! क्या आप को मालूम नहीं कि आप के भतीजे. मुहम्मद (ﷺ) ने कौम में एक नया फ़ित्ना खड़ा कर दिया है। वह कहता है कि खुदा एक है। इतनी बड़ी खुदाई का सिर्फ एक खुदा बताता है। फिर ऐसी हस्ती को खुदा कहता है, जिसे आज तक किसी ने नहीं देखा। हमारे माबूदों की तौहीन करता है। हम आप की खिदमत में इस लिए हाजिर हुए हैं कि आप से दरख्वास्त करें कि आप अपने भतीजे को समझा दें कि वह हमारे माबूदों की तौहीन न करे, हमारे बाप दादा के मजहब को बुरा न कहे और नये मजहब की तब्लीग़ न करे। आप हाशमी हैं, बुतों के परस्तार हैं। आप का फ़र्ज है कि आप दिल व जान से कोशिश कर के उसे समझाएं।
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आप का बहुत-बहुत शुक्रिया, जो आप मेरे पास आए। अबू तालिब बोले। मुझे खुद मालूम है कि आप ने मेरे भतीजे मुहम्मद (ﷺ) पर कितनी सख्तियां की हैं, तक्लीफें पहुंचायी हैं, उस का घर से निकलना बन्द किया हुआ है, उस के मानने वालों को खूब-खूब सताया है। सोचो, क्या तुम्हारे लिए यह मुनासिब है ? माबूदों की क़सम ! तुम ने ग़लती की है, बड़ी गलती जो तरीका तुम ने अपनाया है, वह ग़लत है।
जब सख्तियां बर्दाश्त के काबिल नहीं रह जातीं, तो कमजोर से कमजोर इंसान भी मुकाबले में आ जाता है। जिद बुरी चीज होती है। तुम को यह जिद है कि मुहम्मद (ﷺ) तुम्हारे बुतों को बुरा न कहें और उसे यह जिद है कि एक अल्लाह की तब्लीग़ करे। इस जिद ने काम बिगाड़ रखा है। तुम नरमी करो, वह खुद ही बाज आ जाएगा। मेरी इन बातों से यह न समझ लेना कि मैं ने अपने बाप-दादा का मजहब छोड़ रखा है, नहीं मैं मरते दम तक उस पर कायम रहूंगा। अपने माबूदों की तौहीन मैं भी गवारा नही कर सकता, लेकिन मेरा तरीक़ा अलग है। न किसी को मैं बुरा कहूँ, न सुनु। यही तरीका तुम भी अपनाओ।
हम सख्तिया न करें। अगर वह तब्लीग बन्द कर दे, वलीद ने कहा।
मैं आज अपने भतीजे को बुला कर समझाऊंगा, यकीन है कि वह मान जाएगा, तुम भी सख्तियां बन्द कर दो, अबू तालिब बोले। अबू बस्तरी ने कहा, बेशक यह मश्विरा माना जा सकता है। अगर मुहम्मद (ﷺ) तब्लीग से बाज आ जाएं, तो हमें मुसलमानों पर सख्तियां न करना चाहिए।
इस के बाद वफ्द के लोग उठे और चले गये।
वफ्द के लोग आने को तो आ गये, लेकिन अभी उन्हें इत्मीनान न हुआ था। उन्हों ने दूसरे दिन फिर अबू तालिब के पास जाना तै किया।
जब.यह तै हो गया, तो अबू लहब ने कहा, कल हम अबू तालिब से साफ़ तौर से कह देंगे कि अगर मुहम्मद (ﷺ) हमारे मजहब में दाखिल न हुए, है तो फिर हम उन को कत्ल कर डालेंगे।
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अबू सुफ़ियान तो चाहता ही यही था कि किसी तरह हजूर सल्ल. को कत्ल कर दिया जाए। उस ने कहा, जरूर यह कह देना चाहिए और अगर अबू तालिब के समझाने से भी बाज न आए और हमारे महब में दाखिल न हों तो हमें तुरंत उन्हें कत्ल कर देना चाहिए।
अबू लहब ने कहा, बेशक ऐसा ही होगा। हम अबू तालिब से आखिरी बात करेंगे।
दूसरा दिन आया। वफ्द ने तैयारी शुरू की। सब जमा हुए और अबू तालिब की खिदमत में हाजिरी दी।
अबू तालिब ने आदत के मुताबिक उन की आवभगत की। जब इत्मीनान के साथ बैठ गये, तो अबू तालिब ने पूछा, आज कैसे तशरीफ़ ले आए, क्या कोई नयी बात हो गयी ?
अबू लहब ने कहा, नयी कोई बात नहीं। आज हम इस लिए हाजिर हुए हैं कि आप से कहें कि आप अपने भतीजे को हमारे सामने बुलाएं। आप भी समझाएं, हम भी समझाएं। हो सकता है, हम सब के समझाने से वह समझ जाएं।
मुनासिब है, अबू तालिब ने कहा, लेकिन उस के सामने सख्ती से बातें न करें, क्योंकि यह मेरी तौहीन होगी और मैं इसे किसी तरह न सह सकूँगा।
इत्मीनान रखिए, ऐसा न होगा अबू जहल ने कहा। हम सब आप का एहतिराम करते हैं।
अब तालिब ने अपने गुलाम को हुजूर (ﷺ) की खिदमत में भेजा।
ज्यादा देर न गुजरी थी कि हुजूर (ﷺ) इस शान से तश्रीफ़ लाये कि सफ़ेद कपड़े पहने हुए थे। कंधे पर काली कमली पड़ी थी, हाथ में छड़ी थी। आप (ﷺ) ने आते ही अस्सलामु अलैकुम कहा।
अरब में सलाम करने का यह तरीका न था। सब हैरान हुए। अबू तालिब ने कहा, मेरे चश्म व चिराग ! आओ, मेरे पास गैठो। हुजूर (ﷺ) अपने मोहतरम चचा अबू तालिब के पास गैठ गये। बातें शुरू हुई।
अबू लहब ने कहा, तुम जानते हो, हम सब मंसब और इज्जत के मालिक हैं। कुरैश के बड़े लोग हैं। जो बात हम तै कर देते हैं, सारे अरब वाले बगैर कुछ कहे सुने उसे मान लेते हैं।
हुजूर (ﷺ) ने कहा, मैं जानता हं, आप ऐसे ही हैं।
अबू लहब फिर बोला, हमें कुरैश और मक्का के नुमायां कबीलों ने तुम्हारे पास भेजा है, ताकि हम तुम से कोई समझौता कर लें।
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प्यारे भतीजे ! जो फ़ित्ना तुम ने अपनी कौम में पैदा किया है, उस फ़ित्ने से तमाम कौम मुश्किलों में फंस गयी है, तुम समझदार हो और कौम की मुश्किलों को खूब समझते हो। अपनी कौम पर एहसान करो और उस की मुश्किलों को ना बढ़ाओ।
मैं ने कौम को मुश्किल में तो नहीं डाला बल्कि मेरी कोम ने खुद मेरे ऊपर सख्तियां की हैं। मुझे कठिनाई में डाल दिया है, मगर मुझे इस की परवाह नहीं की मुझपर सख्तियां की जाये, हाँ ! मलाल है तो इसका की जो लोग इस्लाम कबुल कर चुके हैं, उन पर हर किस्म का जुल्म किया जाता है। हुजूर सल्ल० ने जवाब दिया।
अबू लहब ने कहा, बेशक ! यह हम से गलती हुई, लेकिन अब हम समझौते के लिए आए हैं। प्यारे भतीजे ! अगर तुम को दौलत की जरूरत है तो हम सब मिलकर तुम्हारे लिए इतनी दौलत जमा कर दे की तुम सबसे मालदार बन जाओ।
हुजूर (ﷺ) बोले, चचा! अगरचे मैं ग़रीब हैं, लेकिन खुदा की कसम ! मुझे दौलत की जरूरत नहीं, न मुझे सोना-चांदी चाहिए।
दौलत नहीं चाहिए, तो क्या किसी सुन्दरी से मोहब्बत हो गयी है ? अबू लहब ने पूछा। बताओ वह कौन परी है, जिस से तुम ब्याह करना चाहते हो मैं तुम को विश्वास दिलाता हूँ कि वह सुन्दरी कोई भी हो, हम उस से तुम्हारी शादी करा के रहेंगे।
आप (ﷺ) बोले, ऐ चचा ! यह बात भी नहीं है । मुझे किसी सुन्दरी से प्रेम नहीं है।
अब लहब ने फिर पूछा, अच्छा तो किसी जाह व मंसब की जरूरत है ? अगर यह बात है, तो कुरैश तुम को अपना सरदार जरूर मुकर्रर कर देंगे।
आप (ﷺ) बोले, मुझे जाह व मंसब की भी ख्वाहिश नहीं।
अबू लहब ने कहा, तो बस, तुम शायद हुकूमत चाहते हो। अगर यह बात है तो हम तुम को पूरे अरब का बादशाह बनाये देते हैं। सारे अरब में आप की हुकूमत कायम हो जाएगी।
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हुजूर (ﷺ) ने फ़रमाया, नहीं चचा ! मैं हुकूमत नहीं चाहता।
अबू लहब बोला, बस तो तुम कुछ बीमार हो। अगर यह बात है, तो हम तुम्हारे इलाज के लिए मशहूर हकीमों को बुला कर इलाज कराते हैं।
आप (ﷺ) ने फ़रमाया, अल्लाह के करम से मैं बीमार भी नहीं हूं। अबू लहब ने कहा, तो क्या किसी जिन्न या आसेब का असर है?
इस असर को काहिन दूर कर सकते हैं। .
आप (ﷺ) ने कहा, किसी जिन्न या आसेब का भी असर नहीं।
फिर आखिर क्या बात है, तुम क्या चाहते हो?
मैं चाहता हूं कि तुम बुतों की पूजा छोड़ दो और उस खुदा की इबादत करो जो पूरी दुनिया का पैदा करने वाला है और जिस के हाथ में इज्जत व दौलत है, मौत और जिंदगी का निजाम है और जो हर चीज़ की कुदरत रखता है, जो बुजुर्ग व बरतर है और पूरी कायनात का बादशाह है। इस के बाद आप (ﷺ) ने कुरआन की आयतें तिलावत की।
वफ्द के तमाम मेम्बर आयतों को सुन कर हैरान रह गये।
कुछ देर की खामोशी के बाद अबू जहल ने कहा, तो गोया तुम सुलह करने से इंकार करते हो?
आप (ﷺ) ने फ़रमाया, इंकार मैं नहीं करता, बल्कि तुम करते हो। क्यों नहीं तुम खुदा के सामने झुक जाते हो? और क्यों झूठे खुदाओं को नहीं छोड़ देते ?
अबू लहब ने बिगड़ कर कहा, इस लिए कि हम और हमारे बाप दादा इन्हें पूजते रहे हैं। हम ख्याली खुदा की पूजा मरते दम तक नहीं करेंगे। अब तुम होशियार हो जाओ। हम न सिर्फ तुम्हारा मक्का में रहना मुश्किल कर देंगे, बल्कि तुम को कत्ल कर डालेंगे। अबू लहब को जोश आ गया था।
उस ने गुस्से में भर कर अबू तालिब को खिताब किया और कहा, सुनो अबू तालिब ! या तो तुम मुहम्मद (ﷺ) का साथ छोड़ो, वरना मुकाबले में आ जाओ। अब हम तुम्हारा भी ख्याल न करेंगे। यह कौम का मामला है, मजहब का मामला है, इस में किसी का लिहाज न किया जाएगा। हम आप को सोचने और गौर करने की मोहलत देते हैं।
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अगर तुम अपने भतीजे का साथ देने से बाज आ गये, तो हम तुमको अपना सरदार माने रहेंगे। और अगर बाज न आए तो तुम पर भी सख्तियां करेंगे। अगर तुम ने कल तक यह न कहला भेजा है कि तुम मुहम्मद (ﷺ) के साथ से हट गये हो, तो फिर तुम्हारे खिलाफ भी कार्रवाई शुरू कर दी जाएगी।
अबू लहब खड़ा हो गया, उस ने जंग का एलान कर दिया था। साथ के दूसरे सरदार भी खड़े हो गये और बिगड़ते हए रवाना गये।
सब के चले जाने के बाद अबू तालिब ने कहा, प्यारे भतीजे ! तुम ने देख लिया कि सारी कौम भड़क उठी है। मैं कमजोर हूं। मैं सारी कौम का मुकाबला नहीं कर सकता। तुम इन की बातें मान लो। मैं अकेला किस-किस का मुकाबला कर सकूँगा।
हुजूर (ﷺ) अबू तालिब की इस बात से थोड़ा परेशान हुए। फिर आखों में आंसू लाकर बोले, चचा! खुदा की कसम ! खुदा की कसम ! अगर ये लोग मेरे एक हाथ पर सूरज और एक हाथ पर चांद रख दें, तब भी मैं अपने फ़र्ज़ से बाज न पाऊंगा, यहां तक कि या तो खुदा इस काम को पूरा कर देगा या मैं इस पर काम था जाउंगा।
आप की असर भरी आवाज ने अबू तालिब पर बड़ा असर डाला।
उन्हों ने हुजूर (ﷺ) से कहा, मेरी जान। फ़िक्र न करो। मेरी जिंदगी में तेरा कोई बाल टेढ़ा न कर सकेगा।
यह सुन कर हुजूर (ﷺ) की परेशानी दूर हुई। आप उठे, चचा को सलाम किया और अपने मकान की ओर रवाना हो गये।
To be continued …
इंशा अल्लाह सीरीज का अगला हिस्सा कल पोस्ट किया जायेगा ….
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