हज़रत नूह (अ.) साढ़े नौ सौ साल तक अपनी कौम को दावत देते रहे और कौम के अफराद बार बार अजाब का मुतालबा करते रहे, साथ ही अल्लाह तआला ने हजरत नूह (अ.) को खबर दी के मौजूदा ईमान वालों के अलावा कोई और ईमान नहीं लाएगा।
तो उन्होंने दुआ की: ऐ अल्लाह! अब इन बदबख्तों पर ऐसा अज़ाब नाजिल फर्मा के एक भी काफिर व मुशरिक जमीन पर जिन्दा न बचे
अल्लाह तआला ने उन की दुआ कुबूल फ़र्मा ली और हुक्म दिया के तुम हमारी निगरानी और हुक्म के तहत एक कश्ती तय्यार करो, चुनान्चे एक कश्ती तय्यार की गई.
फिर अल्लाह तआला के हुक्म से जमीन व आस्मान से पानी के दहाने खुल गए और देखते ही देखते जमीन पर पानी ही पानी जमा हो गया, उस वक़्त हज़रत नूह (अ.) ब हुक्मे खुदावन्दी मोमिनीन और जान्दारों में से एक एक जोड़े को लेकर कश्ती में सवार हो गए, बाक़ी तामाम काफिर व मुशरिक पानी के इस तूफान में हलाक हो गए, तक़रीबन छ: महीने के बाद कश्ती १० मुहर्रमुलहराम को जूदी पहाड़ पर ठहरी तो हज़रत नूह अहले ईमान को लेकर अमन व सलामती के साथ जमीन पर उतरे और फिर अल्लाह तआला ने उन्हीं से दुनिया की आबादी का दोबारा सिलसिला शुरू फ़रमाया, इसीलिये आपको “आदमे सानी” कहा जाता है।
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