कुफ्फार व मुशरिकीन मुसलमानों पर बहुत ज्यादा जुल्म व सितम ढाते थे और दीने हक कबूल करने की वजह से उन के साथ इन्तेहाई बे रहमाना सुलूक करते थे। चुनान्चे उमय्या बिन खल्फ अपने गुलाम हज़रत बिलाल हबशी (र.अ) को तपती हुई रेत पर कभी पीठ के बल लिटा कर तो कभी पेट के बल लिटा कर भारी पत्थर रख देता और उन्हें मारते हुए इस्लाम छोड़ने को कहता, मगर इस हालत में भी हज़रत बिलाल (र.अ) “अहद अहद” कहते रहते यानी एक ही ख़ुदा(अल्लाह) को पुकारते।
इसी तरह हज़रत अम्मार बिन यासिर (र.अ) और उनके वालिदैन जब मुसलमान हए तो कूफ्फार उन्हें बेपनाह तकलीफें पहुंचाते थे। जब हुजूर (ﷺ) , उन के पास से गुजरते, तो उनकी हालते ज़ार को देख कर फरमाते :
“यासिर के खानदान वालो! सब्र करो, तुम्हारा ठिकाना जन्नत है।”
हजरत अम्मार बिन यासिर के वालिद और वालिदा को मुशरिकीन ने तकलीफ पहुँचाते हुए शहीद कर डाला था। अलग़र्ज़ कुफ्फार ने मुसलमानों को तकलीफ पहुंचाने में कोई कमी नहीं छोड़ी, गुलामों से ले कर मुअज़्ज़ज़ लोगों तक को सताया गया, दरख्तों पर लटकाया गया, पैरों में रस्सियाँ बांधकर घसीटा गया, पेट और पीठ पर पत्थर की तपती हुई सिलें भी रखी गई। ग़र्ज़ हर तरह मुसलमानों को ज़ुल्म व सितम का निशाना बनाया गया। मगर सहाबा-ए-किराम को ईमान से नहीं हटा सके। सहाबा ने तमाम मुसीबतों को बर्दाश्त करके दीने हक़ को सीने से लगाए रखा।