जब मुसलमान अपने दीन व ईमान की हिफाज़त के लिये हिजरत कर के मदीना चले गए और खुश्शवार माहौल में लोगों को इस्लाम की दावत देनी शुरू की, लोग इस्लाम में दाखिल होने लगे, चुनान्चे मुसलमानों की बढ़ती हुई तादाद को देख कर कुफ्फारे मक्का अपने लिये खतरा महसूस करने लगे तो मुश्रिक़ीने मक्का ने मदीना पर हमला करने के लिये जंग की तैयारियाँ शुरू कर दी।
इधर मुसलमान मदीना में अमन व सुकून से रहना चाहते थे, लेकिन मुश्रिकिने मक्का जंग करने के लिये अहले मदीना से छेड़ख्वानी करते रहते थे, चुनान्चे कुरैशी सरदार कुर्ज़ बिन जाबिर फहरी मदीना की चरागाह पर हमला कर के सौ ऊँट ले भागा और जंग की तय्यारी के लिये मक्का के तमाम लोगों ने सरमाया लगा कर एक तिजारती काफला मुल्के शाम रवाना किया, ताके उस के नफे से जंगी साज व सामान खरीद कर मुसलमानों से फैसला कुन जंग लड़ सकें, बिल आखिर हज़र (ﷺ) ने मुश्रिक़ीने मक्का के जुल्म व सितम को रोकने के लिये सहाबा ऐ किराम को उनके मुकाबले की इजाजत दे दी।
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