जब दुनिया में बसने वाले इंसान जहालत व गुमराही में भटकते हुए आखरी हद तक पहुँच गए।
अल्लाह तआला ने उनकी हिदायत व रहनुमाई का फैसला फ़रमाया और शिर्क व बुतपरस्ती से निकाल कर ईमान व तौहीद की दौलत से नवाजने का इरादा किया और जिस रौशनी की आमद का एक ज़माने से इन्तेजार हो रहा था, उसके ज़ाहिर होने का वक़्त आ गया।
और महरूम व बदनसीब दुनिया की किस्मत जाग उठी, रसूलुल्लाह (ﷺ) ग़ारे हिरा में अल्लाह की इबादत और जिक्र व फिक्र में मश्गूल थे के आप (ﷺ) पास हज़रत जिब्रईल (अ.) आए और उन्होंने कहा के पढ़िये ! आप (ﷺ) ने फ़र्माया: मैं पढ़ा हुआ नहीं हूँ। आप फर्माते हैं : उस के बाद उन्होंने मुझे पकड़ कर इतना दबाया के मेरी कुव्वत निचोड़ दी, फिर मझें छोड़ दिया और कहा पढ़िये ! मैं ने कहा मैं पढ़ा हुआ नहीं हूँ। उन्होंने दोबारा पकड़ कर दबाया, फिर। कहा पढ़िए ! मैं ने कहा : मैं पढ़ा हुआ नहीं हूँ। उन्होंने मुझे तीसरी मर्तबा पकड़ कर दबाया और छोड़ दिया फिर कहा पढ़िए, चुनान्चे मैं पढ़ने लगा।
और यह पाँच आयतें (सूरह इकरा की) नाज़िल हुई जो सबसे पहली वही थी। और नुबुव्वत का पहला दिन था यहीं से वह्यी का सिलसिला चला जो आखिरी वक्त तक जारी रहा।
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