हज़रत याहया (अलैहि सलाम) हज़रत ज़करिया (अ.स) के फ़रज़न्द और अल्लाह तआला के नबी थे। वह नेक लोगों के सरदार और जुहद व तक़वा में बेमिसाल थे।
अल्लाह तआलाने बचपन से ही इल्म हिकमत से नवाज़ा था। उन्होंने शादी नहीं की थी, मगर उसके बावजूद उनके दिल में गुनाह का ख़्याल भी पैदा नहीं हुआ, वह अल्लाह तआला के ख़ौफ़ से बहुत रोया करते थे। अल्लाह तआला ने उन को और उनकी क़ौम को सिर्फ अपनी इबादत व परस्तिश, नमाज व रोज़े की पाबंदी और सदक़ा ख़ैरात करने और कसरत से ज़िक्र करने का हुक्म दिया था।
चुनांचे उन्होंने अपनी क़ौम को बैतुल मुक़द्दस में जमा कर के अल्लाह के इस पैग़ाम को सुनाया। उन की ज़िन्दगी का अहम काम हज़रत ईसा (अ.स) की आमद की बशारत देना और रुश्द व हिदायत के लिये राह हमवार करना था, जब उन्होंने दावत व तब्लीग़ का काम शुरू किया और अपने बाद हज़रत ईसा (अ.स) के आने की ख़ुशख़बरी सुनाई, तो उन की बढ़ती हुई मकबूलियत यहूदी क़ौम को बरदाश्त न हो सकी और हुज्जत बाज़ी कर के इस अज़ीम पैग़म्बर को शहीद कर डाला और अपने ही हाथों अपनी दुनिया व आख़िरत को बरबाद कर लिया।
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