हजरत अबू ज़र गिफ़ारी (र.अ) का पूरा नाम जुंदुब बिन जुनादा था, हजरत अबू ज़र पहले शख्स हैं जिन्होंने हुजूर (ﷺ) की पहली मुलाकात के वक़्त अस्सलामु अलैकूम कहा था; हुजूर (ﷺ) ने जवाब में वालेकुमस्सालाम व रहमतुल्लाहि व बरकातुह फ़रमाया। इस तरह सलाम करने का रिवाज शूरू हुआ।
हज़रत अबू जर गिफ़ारी (र.अ) मक्का में मुसलमान हुए और वापस आकर अपने गाँव में दावत देना शुरू किया, सबसे पहले उनके भाई अनीस गिफ़ारी (र.अ) मुसलमान हुए, इन दोनों की चंद महीनों की मेहनत से क़बील-ए-गिफ़ार के अक्सर लोग मुसलमान हो गए और जो रह गए वह हुजूर (ﷺ) की मदीना हिजरत के बाद मुसलमान हो गए।
गज़व-ए-खंदक के बाद हज़रत अबू ज़र के मदीना आकर हुजूर (ﷺ) की ख़िदमत में रहने लगे, आप (ﷺ) के इन्तेकाल के बाद शाम के इलाके में चले गए, हज़रत उमर (र.अ) के जमाने तक वहीं रहे, वहां के लोगों का दुनिया की तरफ़ मैलान देख कर उन्हें दुनियादारी से रोकने में सख्ती करने लगे, हज़रत उस्मान (र.अ) ने अपने ज़मान-ए-खिलाफ़त में उन्हें मदीना बुला लिया।
लेकिन अबू जर (र.अ) यहाँ भी ज़ियादा दिन नहीं रह सके, हज़रत उस्मान (र.अ) के मशवरे से वह रब्जह नामी वफ़ात में चले गए और वहीं सन ३२ हिजरी में आपका इन्तेकाल हुआ।
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