जुमे की अहमियत, जुमे की फ़ज़ीलत और जुमे के दिन करनेवाले आमाल
Jumme ki Ahmiyat , Jumme ki Fazilat aur Jumme ke Aamal
۞ बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम ۞
अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान बहुत रहमवाला है।
सब तारीफें अल्लाह तआला के लिए हैं जो सारे जहान का पालनहार है। हम उसी से मदद व माफी चाहते हैं,
अल्लाह की ला’तादाद सलामती, रहमते व बरकतें नाज़िल हों मुहम्मद सल्ल. पर, आप की आल व औलाद और असहाब रजि. पर। व बअद –
जुमे के दिन की अहमियत
यूं तो सब दिन अल्लाह तआला के बनाए हुए हैं। मगर जुमे के दिन की अहमियत को बयान करते हुए अल्लाह के रसूल सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया :
“अल्लाह तआला ने हम से पहले के लोगों को जुमे से मेहरूम रखा। चुनांचे यहूदियों के लिए सनीचर और ईसाईयों के लिए इतवार का दिन था। फिर अल्लाह हमें ले आया और उसने हमारी जुमे के दिन की तरफ रहनुमाई की। उसने (दिनों की तरतीब इस तरह बनाई कि) पहले जुमा, फिर सनीचर और उसके बाद इतवार। इसी तरह वह कयामत के दिन भी हमसे पीछे होंगे। हम दुनिया में आए तो आखिर में हैं लेकिन कयामत के रोज हम पहले होंगे और तमाम उम्मतों में सबसे पहले हमारा फैसला किया जाएगा।” (मुस्लिम-856)
जुम्मा सबसे बेहतर दिन
🌷 “सबसे बेहतर दिन जिसका सूरज तुलूअ हुआ, जुमे का दिन है। इसमें आदम अलैहि. को पैदा किया गया। इसी में उन्हें जमीन पर उतारा गया। इसी दिन उनकी तौबा कुबूल की गई। इसी दिन उनकी वफात हुई और इसी दिन कयामत कायम होगी। हर जानदार जुमे के दिन सुबह से लेकर सूरज निकलने तक कयामत से डरते हुए उसके इन्तेजार में रहता है सिवाए जिन्न व इन्स के और जुमे के दिन एक वक्त ऐसा भी आता है कि ठीक उसी वक्त में जो बन्दा ए मुस्लिम नमाज़ पढ़ रहा हो और वह अल्लाह से जिस चीज़ का सवाल करे तो अल्लाह उसे वह चीज अता करता है। (अबुदाऊद-1046-सही)
🌷 “तुम्हारे दिनों में सबसे अफजल जुमे का दिन है। इसी में आदम अलैहि. को पैदा किया गया इसी में उन पर मौत आई। इसी में सूर फूंका आएगा और इसी में जोरदार चीख की आवाज़ आएगी।” (अबुदाऊद-1046-सही)
🌷 “बेशक यह ईद का दिन है। जिसे अल्लाह ने सिर्फ मुसलमानों के लिए (ईद का दिन) बनाया है। लिहाजा जो शख्स नमाजे जुमा के लिए आए तो वह गुसल करे, खुश्बु हो तो जरूर लगाएं और तुम पर मिस्वाक करना लाजिम है।” (इब्ने माजा-1098-सही)
जुमे के दिन की फजीलत
“बेशक! जुमे का दिन तमाम दिनों का सरदार है और अल्लाह के नजदीक सबसे ज़्यादा अजमत वाला है। यह दिन अल्लाह के यहां ईदुल फितर और ईदुलजुहां से भी ज़्यादा फजीलत रखता है।
इस दिन की पांच खुसूसियात है।
👉 1. अल्लाह तआला ने इसी दिन आदम अलैहि. को पैदा किया।
👉 2. इसी दिन उन्हें जमीन की तरफ उतारा।
👉 3. इसी दिन उनकी वफात हुई।
👉 4. इसमें एक घड़ी ऐसी है कि उसमें बन्दा अल्लाह से जिस चीज का सवाल करता है, अल्लाह उसे वह अता करता है बशर्ते कि वह हराम का सवाल न करें।
👉 5. इसी दिन कयामत कायम होगी और मुकर्रिब फरिश्ते, आसमान, जमीन, हवाएं, पहाड़ और समन्दर सब के सब जुमे के दिन से डरते है।” (इब्ने माजा-1084-सही)
नमाजे जुमा
जुमा की नमाज़ किस पर फ़र्ज़ है ?
जुमे के दिन सबसे अहम इबादत नमाजे जुमा है। यह हर मुकल्लिफ पर फर्ज है।
इस बारे में इर्शादे बारी तआला है-
🌷 “ऐ ईमान वालों! जुमे के दिन जब नमाजे जुमा के लिए अजान कही जाए तो ज़िक्रे इलाही (नमाज) की तरफ दौड़कर आओ और खरीद व फरोख्त छोड़ दो। अगर तुम जानो तो यही तुम्हारे लिए बेहतर है।” (सूरह जुमा-आयत-9)
और अल्लाह के रसूल सल्ल. ने फरमाया :
🌷 “नमाजे जुमा अदा करना हर मुकल्लिफ मुसलमान पर हक व वाजिब है। सिवाए चार अफराद के 1. गुलाम 2. औरत 3. बच्चा और 4. मरीज ।” (अबुदाऊद-1067-सही)
इसी तरह मुसाफिर पर भी जुमा फर्ज नहीं हे और इस पर उम्मत का इज्माअ है।
जुमा की नमाज़ जमात से पढ़ना फ़र्ज़ है
नमाजे जुमा बा जमाअत अदा करना फर्ज है। इसे अकेला पढ़ना सही नहीं और जिस शख्स की नमाजे जुमा फौत हो जाए, वह जुहर की चार रकअत अदा करे। नमाजे जुमा बगैर किसी शरई उज्र के नहीं छोड़ना चाहिये । इसलिए कि :
🌷 “जो आदमी गफलत की वजह से तीन जुमे छोड़ दें, अल्लाह उसके दिल पर मुहर लगा देता है।” (अबुदाऊद-1052-सही)
🌷 और यह कि “लोग नमाजे जुमा छोड़ने से बाज आ जाएं। वरना अल्लाह तआला उनके दिलों पर मुहर लगा देगा। फिर वह गाफ़िलों में हो जाएंगे।” (मुस्लिम-865)
🌷 आप सल्ल. ने यह भी फरमाया कि “मेरा दिल चाहता है कि मैं एक आदमी को हुक्म दूँ कि वह लोगों को नमाज पढ़ाए। फिर मैं उन लोगों को उनके घरों समेत आग लगा दूं जो नमाजे जुमा से पीछे रहते है। (मुस्लिम-852)
आदाबे जुमा
1. गुस्ले जुमा –
यह गुसल अल्लाह के रसूल सल्ल. ने हर बालिग पर वाजिब करार दिया है। लिहाजा इस दिन गुसल, सफाई, खुश्बू और अच्छे लिबास का एहतेमाम करना चाहिये।
अल्लाह के रसूल सल्ल. ने फरमाया :
🌷 “तुम में से कोई शख़्स जब जुमे के लिए आने का इरादा करे तो वह गुसल कर लें। (बुख़ारी-877, मुस्लिम-844)
🌷 ” जुमे के दिन का गुसल हर बालिग पर वाजिब है। (बुख़ारी-879 मुस्लिम-846)
2. खुश्बू लगाना (3.) गर्दनें न फलांगना
🌷 “जो आदमी जुमे के दिन गुसल करें। अपनी ताकत भर पूरी तहारत करें तेल लगाए या अपने घर वालों की खुश्बू लगाए। फिर (मस्जिद में पहुंच कर) दो आदमियों को अलग-अलग न करे (यानि जहां जगह पाए वहीं बैठ जाए) फिर वह नमाज़ अदा करे जितनी उसके (मुकद्दर में) लिखी गई है। फिर जब इमाम खुत्बा दे तो वह खामोशी से सुने तो दूसरे जुमे तक उसके गुनाह माफ कर दिये जाते है।” (बुखारी-883)
🌷 “जो शख़्स गुसल करें, फिर जुमे की नमाज़ के लिए आए और नमाज़ (नफिल) अदा करें जितनी उसके लिए मुकद्दर की गई है। फिर वह खतीब का खुत्बा खामोशी से सुनता रहे। फिर उसके साथ नमाजे जुमा अदा करे तो दूसरे जुमे तक उसके गुनाह माफ कर दिये जाते हैं और मजीद तीन दिन के भी।” (मुस्लिम-857)
🌷 और यह कि “जिस शख्स ने जुमें के दिन गुसल कराया और खुद गुसल किया। नमाज के लिए अव्वल वक्त में आया और जुमे का खुत्बा शुरू से सुना। चलकर आया, सवार नहीं हुआ। इमाम के करीब बैठकर खुत्बा सुना और कोई फालतू (लगू) हरकत नहीं की तो उसे हर कदम पर एक साल के रोजों और एक साल के कयाम सवाब मिलेगा। (अबुदाऊद-345, इब्ने माजा-1087-सही)
जुमे के लिए जल्दी आने की फजीलत
अहादीस का मफ़हूम है के :
👉 “जिस शख्स ने जुमे के दिन गुसले जिनाबत की तरह गुसल किया,
फिर वह जुमे की नमाज के लिए मस्जिद में चला गया तो उसने गोया एक ऊंट की कुर्बानी की,
👉 जो शख़्स दूसरी घड़ी में मस्जिद पंहुचा गोया उसने गाय की कुर्बानी की,
👉 और जो तीसरी घड़ी में पहुंचा, उसने गोया सींगोवाले एक मैंढ़े की कुर्बानी की,
👉 जो चौथी घड़ी में मस्जिद गया गोया उसने एक मुर्गी की कुर्बानी की
👉 और जो पांचवी घड़ी में गया गोया उसके एक अन्डे की कुर्बानी की।
फिर जब इमाम मिम्बर की तरफ चल निकले तो
फरिश्ते (मस्जिद में) हाज़िर हो कर जिक्र (खुत्बा) सुनते है।
(बुखारी-881 , मुस्लिम-850)
🌷 ” जब जुमे का दिन आता है तो मस्जिद के हर दरवाजे पर फ़रिश्ते पहुंच जाते है जो आने वालों के नाम बारी-बारी लिखते हैं फिर जब इमाम मिम्बर पर बैठ जाता है तो अपने सहीफो को लपेट कर मस्जिद में आ जाते हैं और खुत्बा सुनते हैं।” (बुखारी-929)
अगर हम यह चाहतें हैं कि जुमे के दिन फरिश्ते अपने सहीफों में हमारा भी नाम लिखें तो हमें चाहिये कि इमाम के मिम्बर पर पहुंचने से पहले हम मस्जिद पहुंचे। तभी हमें कुर्बानी का भी सवाब मिलेगा।
तहयतुल मस्जिद का हुक्म
जुमे की नमाज के लिए मस्जिद में पहुंचने के बाद सबसे पहला काम तहयतुल मस्जिद की अदायगी है। चाहे वह खुत्बा शुरू होने से पहले मस्जिद में आए या इमाम के खुत्बा शुरू करने के बाद।
🌷 इसलिए कि आप सल्ल. का फरमान है “तुम में से कोई शख्स जब जुमे के दिन उस वक्त आए जब कि इमाम खुत्बा दे रहा हो तो वह दो रकअत नमाज अदा करे और उन्हें हल्का फुल्का पढ़े।” (मुस्लिम-875)
🌷 एक आदमी (सहाबी) जुमे के दिन उस वक्त मस्जिद में घुसा जब आप सल्ल. खुत्बा दे रहे थे। आप सल्ल. ने पूछा-क्या तुमने नमाज (तहयतुल मस्जिद) पढ़ी है? उस ने कहा-नहीं। तब आप सल्ल. ने फरमाया- “उठो! दो रकअत नमाज़ पढ़ो।” (बुखारी-931)
🌷 खत्बे के दौरान खामोश रहें: “जब तुमने जुमे के दिन इमाम के खुत्बे के दौरान अपने साथ बैठे हुए शख्स से यूं कहा कि खामोश रहो तो तुमने लगू हरकत की। (बुख़ारी-934, मुस्लिम-851)
🌷 “जिस शख्स ने जुमे के दिन गुसल किया और खुत्बे के दौरान कोई लगू हरकत नहीं कि तो उसका यह जुमा अगले जुमे तक उसके गुनाहों का कफ्फारा होगा। जिस शख्स ने बेहूदा हरकत की और लोगों की गर्दनों को फलांगा तो उसका यह जुमा नमाजे जुहर शुमार होगा।” (अबुदाऊद-347-सही)
🌷 “जुमे की नमाज के लिए आने वाले लोग तीन तरह के होते हैं। एक वह शख्स है जो जुमे की नमाज के लिए आता है और इस दौरान वह बेहूदा बात या काम करता है तो उसे सिर्फ बेहूदगी ही मिलती है।
दूसरा वह शख़्स है जो जुमे के लिए आता है और उसका मकसद सिर्फ दुआ करना होता है तो अल्लाह चाहे तो उसकी दुआ कुबूल करले और चाहे तो उसे रद्द कर दें।
तीसरा वह आदमी है जो जुमे के लिए हाज़िर हो कर पुरसुकून रहता है। खामोशी और तवज्जोह के साथ खुत्बा सुनता है। किसी की गर्दन को नहीं फलांगता और न ही किसी को तकलीफ पहुंचाता है तो इसी शख्स का जुमा आने वाले जुमे तक बल्कि और तीन दिन उसके लिए कफ्फारा बनता है।” (अबुदाऊद-11 1 3-सही)
जुमे के दिन एक मुबारक घड़ी
🌷 “जुमे के दिन एक घड़ी ऐसी आती है कि उसमें कोई मुसलमान बन्दा नमाज पढ़ रहा हो और अल्लाह से दुआ मांगे तो अल्लाह उसकी वह दुआ कुबुल करता है। (बुखारी-935, मुस्लिम-852)
🌷 “वह (मुबारक घड़ी) इमाम के मिम्बर पर बैठने से नमाज़ खत्म होने के बीच रहती है। (मुस्लिम-853)
🌷 “तुम उसे अस्र की नमाज के बाद आखिरी घड़ी में तलाश करो।” (अबुदाऊद-1048-सही)
इमाम इब्ने हजर अस्कलानी रह. ने फत्हुल बारी में इस बाबत उलैमा के 40 अकवाल दर्ज किये हैं। लेकिन ज़्यादार उलैमा इन्हीं दो तरफ गये हैं।
इमाम इब्ने कय्यिम रह. ने इन्हीं दोनों अकवाल को राजेह करार दिया है क्योंकि यह दोनों सही अहादीस पर मब्नी हैं। अलबत्त्ता दूसरे कौल (असर के बाद) को ज़्यादा राजेह करार दिया है। (जादुल मआद-जिल्द। सफा-382)
नमाज़े जुमा के बाद सुन्नत नमाज़े
🌷 “जो शख्स नमाजे जुमा के बाद नमाज पढ़ना चाहे तो चार रकअत पढ़े। अगर तुम जल्दी में हो तो दो रकअत मस्जिद में और दो रकअत घर लौटकर पढ़ लो।” (मुस्लिम-881)
🌷 “इब्ने उमर रजि. जुमे की नमाज़ पढ़कर घर चले जाते थे और घर पर दो रकअत पढ़ते थे और कहते थे आप सल्ल. भी ऐसा ही किया करते थे।” (मुस्लिम-882)
जुमा के मख़सूस आमाल
1. जुमे के दिन को रोजे के लिए और उसकी रात को कयाम के लिए खास करना कैसा है ?
हफ्ते भर के दिनों में सिर्फ जुमे के दिन को रोजे के लिए और सिर्फ जुमे की रात को तहज्जुद के लिए खास कर लेना सही नहीं है क्योंकि ऐसा करने से आप सल्ल. ने मना किया है।
🌷 “बाकी रातो को छोड़कर सिर्फ जुमे की रात को कयाम के लिए खास न करो। हां अगर कोई शख्स रोजा रखने का आदी हो और वह जुमे के दिन आ जाए तो (कोई हरज नहीं)” (मुस्लिम-1 144)
🌷 “तुम में से कोई शख्स सिर्फ जुमे के दिन का रोजा न रखे। हां अगर उससे एक रोज पहले या उसके एक दिन बाद का भी रोजा रखे तो (कोई हरज नहीं) (मुस्लिम-1144, बुखारी-1985)
2. सूरह कहफ की तिलावत
🌷 जिस शख्स ने जुमे की रात सूरह कहफ की तिलावत की तो उसके सामने उसके और खाना-ए-काबा के बीच दूरी के बराबर नूर आ जाता है।” (सही अल जामेअ-लिलबानी-6471)
🌷 “जो शख़्स जुमे के दिन सूरह कहफ पढ़ता है तो उसके लिए अगले जुमे तक नूर ही नूर हो जाता है।” (सही अली जामेअ-6470)
3. नबी सल्ल. पर कसरत से दुरूद
अक्सर हजरात इसी कश्मकश में रहते है के जुम्मे के दिन क्या पढ़ना चाहिए? तो बहरहाल आपको बता दे :
🌷 इस दिन व रात में अल्लाह के रसूल सल्ल. पर ज्यादा से ज्यादा दुरूद पढ़ना चाहिये।
क्योंकि आप सल्ल. ने फरमाया “तुम इस दिन मुझ पर कसरत से दुरूद पढ़ा करो। तुम्हारा दुरूद मुझ पर पेश किया जाता है।” सहाबा किराम रजि. ने कहा हमारा दुरूद आप पर कैसे पेश किया जाएगा? जबकि (कब्र में आपका जस्दे अतहर) तो बोसीदा हो जाएगा। आप सल्ल. ने जवाब दिया “बेशक! अल्लाह तआला ने जमीन पर अम्बिया के जिस्मों को खाना हराम कर दिया है।” (अबुदाऊद-104-सही)
🌷 “मेरी उम्मत का दुरूद मुझ पर हर जुमे को पेश किया जाता है। पस जो शख़्स मुझ पर ज़्यादा दुरूद पढ़ेगा, वह सबसे ज़्यादा मेरे करीब होगा।” (बैहकी-6089)
🌷 “जो मुझ पर एक दफा दुरूद भेजता है, अल्लाह उस पर दस रहमतें नाजिल करता हैं।” (मुस्लिम-409)
🌷 “जो शख़्स मुझ पर एक दफा दुरूद भेजता है तो अल्लाह उस पर दस रहमतें नाज़िल करता है, उसके दस गुनाह मिटा देता है और उसके दस दर्जात बुलन्द करता है।” (सही अल जामेअ-6359)
🌷 “जो शख्स सुबह के वक्त दस दफा और शाम के वक्त दस दफा मुझ पर दुरूद भेजता है, उसे कयामत के दिन मेरी शफाअत नसीब होगी।” (सही अल जामेअ-6357)
नमाजे जुमा कैसे पाई जा सकती है?
नमाजे जुमा को पाने के लिए जरूरी है कि नमाजी इमाम के साथ कम से कम आखिरी रकअत पा ले।
अगर वह आख़िरी रकअत नहीं पाता या वह इमाम के साथ दूसरी रकअत के रूकूअ के बाद शरीक होता है तो उसे इमाम के सलाम फेरने के बाद खड़े होकर सिर्फ दो रकअत नहीं बल्कि जुहर की चार रकअत पढ़नी होगी इसलिए के आप सल्ल. ने फरमाया :
🌷 “जो शख्स नमाजे जुमा की एक रकअत पा ले, वह उसके साथ एक रकअत को और मिलाए। (इब्ने माजा-1 1 21-सही)
🌷 “जो शख़्स नमाजे जुमा या किसी और नमाज की एक रकअत पा ले तो उसने नमाज (बा जमाअत) का सवाब पा लिया।” (नसाई-557, इब्नेमाजा-1 1 23-सही)
🌷 “जब तुम जुमे की एक रकअत को पा लो तो उसके साथ एक रकअत को और मिला लेना और जब तुम से (दूसरी रकअत का) रूकूअ भी छुट जाए तो तुम चार रकआत पढ़ना।” (इब्ने अबिशैबा, तबरानी, बैहकी-सही)
🌷 “जब तुम्हें जुमे की एक रकअत मिल जाए तो तुम उसके साथ एक और रकअत मिला लेना। जब तुम इमाम के साथ तश्हुद में मिलो तो तुम चार रकआत पढ़ लेना।” (बैहकी)
अल्लाह तआला से दुआ है कि वह हमें जुमे के दिन की बरकात से फायेदा हासिल करने की तौफीक दे । हमें अपने दीन की सीधी राह पर चलाए और हमें दुनिया व आख़िरत में कामयाबी नसीब फरमाए। आमीन्
आपका दीनी भाई जादुल खतीब
✒️ मुहम्मद सईद अज़-
✒️ डा. मुहम्मद इसहाक जाहिद
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Juma, Jumma, Jume ka Din, Namaz, Ahmiyat, Fazilat, Masail in Hindi
Mashallah. Aaj jumah ka din hai.
Mene pura padha main bhot pareshan tha lekin pura padhne ke bad ab dil ko sukoon mill raha hai
Allah ta aala apko or deen se nawaze.
Ameen, JazakAllahu khairan kaseera