Contents
- 1. इस्लामी तारीख
- मस्जिदे नबवी की तामीर
- 2. अल्लाह की कुदरत
- गूलर के फल में अल्लाह की कुदरत
- 3. एक फर्ज के बारे में
- शौहर के भाइयों से परदा
- 4. एक सुन्नत के बारे में
- इशा के बाद दो रकात नमाज पढना
- 5. एक अहेम अमल की फजीलत
- इंसाफ करने की फ़ज़ीलत
- 6. एक गुनाह के बारे में
- चाँदी के बरतन में पीने का गुनाह
- 7. दुनिया के बारे में
- दो चीज़ों की ख्वाहिश
- 8. आख़िरत के बारे में
- दोज़खियों का खाना
- 9. तिब्बे नबवी से इलाज
- बिमारियों का इलाज
- 10. क़ुरान की नसीहत
- अल्लाह तआला के साथ किसी को शरीक न करो
3 Jumada-al-Awwal | Sirf Panch Minute ka Madarsa
1. इस्लामी तारीख
मस्जिदे नबवी की तामीर
हिजरत के बाद रसूलुल्लाह (ﷺ) ने सब से पहले एक मस्जिद की तामीर फ़रमाई, जिस को आज “मस्जिदे नब्वी” के नाम से जाना जाता है। उस के लिये वही जगह मुन्तखब की गई थी, जहाँ हुजूर (ﷺ) की ऊँटनी बैठी थी, यह जमीन बनू नज्जार के दो यतीम बच्चों की थी, जिस को आप (ﷺ) ने कीमत दे कर खरीद लिया था। उसकी तामीर में सहाब-ए-किराम (र.अ) के साथ आप भी पत्थर उठाते थे, सहाब-ए-किराम जोश में यह अश्आर पढ़ते थे और आप भी उनके साथ आवाज़ मिलाते और पढ़ते:
तर्जुमा: “ऐ अल्लाह ! अस्ल उजरत तो आखिरत की उजरत है, ऐ अल्लाह ! अन्सार व मुहाजिरीन पर रहम फ़र्मा।”
यह मस्जिद इस्लाम की सादगी की सच्ची तसवीर थी, इस मस्जिद के तीन दरवाजे बनाए गए थे, दरवाजे के दोनों पाए पत्थर के और दीवारें कच्ची ईंट और गारे की बनाई गई थीं। सुतून खजूर के तनों से और छत खजूर की शाखों और पत्तों से तय्यार की गई थी। किले की दीवार से पिछली दीवार तक सौ हाथ की लम्बाई थी।
यह मस्जिद सिर्फ नमाज अदा करने के लिये ही नहीं बल्के इस्लामी तालीम के लिये एक दर्सगाह और दावत व तब्लीग़ और दुनिया के सारे मसाइल को हल करने के लिये एक मरकज़ भी थी। इस के इमाम अल्लाह के नबी (ﷺ) और इस के नमाज़ी सहाब-ए-किराम (र.अ) जैसी मुक़द्दस हस्तियाँ थीं।
To be Continued ….
2. अल्लाह की कुदरत
गूलर के फल में अल्लाह की कुदरत
अल्लाह तआला ने दुनिया में हजारों किस्म के फल पैदा किये लेकिन गूलर के फल में अल्लाह तआला ने अपनी कुदरत का इस तरह इजहार फ़र्माया के जब गूलर का फल पक जाता है तो उसकी तोड़ने पर बोहोत से कीडे निकलते हैं, जो अपने परों के जरिये उड कर गायब हो जाते हैं।
आखिर इस गूलर के फल में यह उड़ने वाले कीड़े कहाँ से आ गए? जब के उस में दाखिल होने का कोई रास्ता भी नहीं है…
यकीनन अल्लाह ही ने अपनी कुदरत से गूलर के फल में च्यूटी नुमा कीड़े पैदा फरमाए हैं।
3. एक फर्ज के बारे में
शौहर के भाइयों से परदा
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“ना महरम) औरतों के पास आने जाने से बचो!
एक अन्सारी सहाबी ने अर्ज किया : देवर के बारे में आप क्या फ़र्माते हैं ?
तो आप (ﷺ) ने फर्माया: देवर तो मौत है।”
वजाहत: शौहर के भाई वगैरह से परदा करना इन्तेहाई जरूरी है
और उस से इस तरह बचना चाहिये। जिस तरह मौत से बचा जाता है।
4. एक सुन्नत के बारे में
इशा के बाद दो रकात नमाज पढना
हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर (र.अ) बयान फ़र्माते हैं के,
“मैंने रसूलुल्लाह (ﷺ) के साथ ईशा की फर्ज नमाज़ के बाद दो रकात (सुन्नत) पढ़ी है।”
फायदा: इशा की नमाज के बाद वित्र से पहले दो रकात पढ़ना सुन्नते मोअक्कदा है।
5. एक अहेम अमल की फजीलत
इंसाफ करने की फ़ज़ीलत
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
“थोड़ी देर का इन्साफ साठ साल की शब बेदारी और रोजा रखने की इबादत से बेहतर है।
ऐ अबू हुरैरा (र.अ) ! किसी मामले में थोड़ी सी देर का जुल्म, अल्लाह के नजदीक साठ साल की नाफ़रमानी से जियादा सख्त और बड़ा गुनाह है।”
6. एक गुनाह के बारे में
चाँदी के बरतन में पीने का गुनाह
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया:
“जो चाँदी के बर्तन में पानी वगैरा पीते हैं वह अपने पेट में जहन्नम की आग भर रहे हैं।”
7. दुनिया के बारे में
दो चीज़ों की ख्वाहिश
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया :
“बूढ़े आदमी का दिल दो चीजों के बारे में हमेशा जवान रहता है, एक दुनिया की मुहब्बत और दूसरी लम्बी लम्बी उम्मीदें।”
8. आख़िरत के बारे में
दोज़खियों का खाना
“जहन्नम वालों का आज न कोई दोस्त होगा और न कोई खाने की चीज़ नसीब होगी, सिवाए जख्मों के धोवन के जिस को बड़े गुनहगारों के सिवा कोई न खाएगा।
9. तिब्बे नबवी से इलाज
बिमारियों का इलाज
हज़रत अनस (र.अ) के पास दो शख्स आए, जिन में से एक ने कहा: ऐ अबू हम्जा (यह हजरत अनस (र.अ) की कुन्नियत है) मुझे तकलीफ है, यानी मैं बीमार हूँ, तो हजरत अनस (र.अ) ने फ़रमाया: क्या मैं ! तुम को उस दुआ से दम न कर दूं जिस से रसूलुल्लाह (ﷺ) दम किया करते थे? उस ने कहा :जी हाँ जरूर , तो उन्होंने यह दुआ पढ़ी:
तर्जुमा: ऐ अल्लाह! लोगों के रब! तकलीफ को दूर कर देने वाले, शिफा अता फरमा, तू ही शिफा देने वाला है तेरे सिवा कोई शिफा देने वाला नहीं, ऐसी शिफा अता फरमा के बीमारी बिलकुल बाकी ना रहे।
10. क़ुरान की नसीहत
अल्लाह तआला के साथ किसी को शरीक न करो
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है:
“अल्लाह तआला के साथ किसी को शरीक न करो, माँ, बाप के साथ अच्छा सुलूक करो, और तंगदस्ती के खौफ से अपनी औलाद को कत्ल न करो, हम तुम, को भी रिज्क देते हैं और उन को भी; खुले और छुपे बेहयाई के कामों के करीब न जाओ।”