ईद उल अजहा / क़ुरबानी ईद मुबारक
(Taqabalallahu Minna wa Minkum)
तक़ब्बल अल्लाहु मिन्न वा मिनकुम
“May Allah accept it from you and us”
Ameen ! Allahumma Ameen .
ईद उल अजहा (क़ुरबानी ईद) हर मुसलमान के लिए एक अहम मौका होता है।
कुछ लोगो की गलतफहमी है कि इस्लाम की स्थापना मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने की, ये बात वो बिना लेखक की फालतु किताब वाले बोलेंगे जिन्हे इस्लाम के नाम से हमेशा डराया जाता रहा हो, जबकि वो लोग असली इतिहास से काफी दूर हैं।
हमारे आका मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से पहले बहुत से नबी आये जिनमे एक नबी थे जिनका नाम इब्राहीम (अलैहि सलाम) था,… उनको लगातार सपना आता था कि कोई महबूब चीज की कुर्बानी दी जाए।
हजरत इब्राहीम (अलैहि सलाम) लगातार अपनी सोच के मुताबिक कुर्बानी करते रहे, मगर ये ख्वाब उन्हे लगातार आता रहा, आखिर मे उन्होने सोचा कि इस दुनिया मे उन्हे सबसे प्यारी चीज है उनकी औलाद हजरत इस्माईल (अलैहि सलाम)।
अब ये अपनी औलाद इस्माईल (अलैहि सलाम) को लेकर अल्लाह के हुक्म पर कुर्बान करने चल दिए, इब्राहीम (अलैहि सलाम) ने इस्माईल को उल्टा लिटा दिया और खुद की आँख पर पट्टी बांध ली, जब इब्राहीम (अलैहि सलाम) बेटे की गर्दन पर छुरी चलाने लगे तो अल्लाह के हुक्म से एक दुम्बा बीच मे आ गया जो जिबह हो गया। और हजरत इब्राहीम की कुर्बानी को इतना कुबूल किया गया कि कयामत तक आने वालो पर हलाल जानवर की कुर्बानी का हुक्म दिया गया।
अल्लाह रब्बुल इज्ज़त कभी भी किसी का नुकसान नही चाहता मगर आजमाता जरुर है, इसी कुर्बानी के अमल को हम आज भी करते हैं, और इसे रिश्तेदारों में , गरीबो में , जरुरतमंदो में भी बांटा जाता है।
कुर्बानी का जानवर ज़िबह करते वक्त ये दुआ पढते है – “बिस्मिल्लाहे वल्लाहुअकबर“
★ Ummat-e-Nabi.com के पूरी टीम की तरफ से तमाम उम्मते मुस्लिमा को ईद-उल-अजहा की बेशुमार नेअमते मुबारक हो।
- दुआ की दरख्वास्त (मोहम्मद सलीम)
Eid-Ul-Azha, Qurbani, Bakra Eid, Ibrahim (Alaihay Salam), Ismail (Alaihay Salam)