3. जिल हिज्जा | सिर्फ़ 5 मिनट का मदरसा
3. Zil Hijjah | Sirf Paanch Minute ka Madarsa
1. इस्लामी तारीख
इमाम बुखारी (रहमतुल्लाहि अलैहि)
आप का नाम मुहम्मद और वालिद का नाम इस्माईल, आप बुखारा के रहने वाले थे, आप की पैदाइश इसी शहर में १३ शाबान सन १९४ हिजरी में हुई।
बचपन ही में आप के वालिदे मोहतरम का साया सरसे उठ गया और तालीम व तरबियत के लिये सिर्फ़ वालिदा का सहारा रह गया, बचपन ही में उनकी बीनाई चली गई थी, वालिदा को बहुत सदमा था और बारगाहे इलाही में आह व जारी करती थीं, एक रात हज़रत इब्राहीम को ख्वाब में देखा, फरमा रहे थे के तेरी दुआ कबूल हुई, सुबह देखा तो बेटे की आँखों में रोश्नी लौट आई थी, आप बड़े जहीन व फ़तीन थे, बचपन ही से हदीस सुनने का बेइन्तेहा शौक था।
इस के लिये बहुत सारे ममालिक का सफ़र किया, कोई हदीस सुनते तो फ़ौरन याद कर लेते। चुनान्चे खुद फ़र्माते थे के मुझे एक लाख सही अहादीस और दो लाख इसके अलावा याद हैं। इसी शौक व जज्बे की बिना पर अल्लाह तआला ने आपको वह दिन दिखाया के लोग आपको अमीरुल मोमिनीन फ़िलहदीस के लकब से याद करने लगे।
आपने तकरीबन २३ किताबें लिखीं हैं, जिनमें सबसे बुलन्द पाया तसनीफ़ “सही बुखारी” है। आप ने इस किताब को लिखने में तकवा व तहारत का बेइन्तेहा एहतमाम किया के जब एक हदीस लिखने का इरादा फरमाते तो पहले गुस्ल करते, दो रकात नमाज पढ़ते फिर उसके बाद एक हदीस तहरीर फ़र्माते, इसी तरह सोला साल की मुदत में यह किताब मुकम्मल हुई, जिसको असहहुल कुतुब बाद किताबिल्लाह का दर्जा हासिल हुआ, और यह अहादीस के जखीरों में सब से ज़ियादा सही तरीन किताब मानी गई है।
इमाम बुखारी ने १० शव्वाल सन २५६ हिजरी में बाद नमाजे इशा इन्तेकाल फर्माया।
2. अल्लाह की कुदरत
हीरा और कोयला
अल्लाह तआला की कुदरत देखिए उसने ज़मीन के अंदर बहुत सी धातू पैदा कर दी है, उनमें से पत्थर की शक्ल में हीरा और कोयला भी निकलता है।
साइंसदानों का कहना है के हीरा और कोयला एक ही जिन्स की दो अलग अलग शक्लें हैं, मगर वह हकीकत में कार्बन हैं।
सुभानअल्लाह ! वह कौनसी ज़ात है जो कार्बन जैसी चीज़ को कभी हीरे की शक्ल दे कर रौशन और चमकदार बना देती है और कभी कोयला की शक्ल दे कर उसे सियाह और बदसूरत बना देती है।
यकीनन वह अल्लाह ही की जात है जो एक जिन्स की चीज़ों को मुख्तलिफ़ शक्लों में तब्दील कर देती है।
📕 इब्ने हिबान : १४९०, अन नौफल बिन मुआविया (र.अ)
3. एक फर्ज के बारे में
शौहर के भाइयों से पर्दा करना
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया :
“ना महरम” औरतों के पास आने जाने से बचो ! एक अन्सारी सहाबी ने अर्ज़ किया : देवर के बारे में आप क्या फ़र्माते हैं? तो आप (ﷺ) ने फ़रमाया : “देवर तो (तुम्हारे लिए) मौत है” (यानी जिस तरह मौत से डरा जाता है, उसी तरह शौहर के भाइयों से डरना चाहिए और पर्दे का एहतमाम करना चाहिए)।
📕 बूखारी : ५२३२
4. एक सुन्नत के बारे में
रुकू में हाथों को गुठनों पर रखना
रसूलुल्लाह (ﷺ) रूकू फ़र्माते, तो अपने हाथों को घुठनों पर रखते ऐसा लगता था जैसे उन को पकड़ा रखा हो और दोनों हाथों को मोड़ कर पहलुओं से अलग रखते थे।
📕 तिर्मिजी: १६०
5. एक अहेम अमल की फजीलत
खाना-ए-काबा को देख कर दुआ मांगना
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
“चार मौकों पर आसमान के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं और दुआ कबूल होती है, उनमें से एक काबा शरीफ़ पर नजर पड़ते वक्त (दुआ करना) है।”
📕 बैहक़ी फिस्सुननिल कुबरा : ३/३६०
फायदा : सबसे पहले काबा पर जहां से नज़र पड़ जाए, हाथ उठाए फ़िर दुआ मांगे, क्यों कि यह दुआ की कबूलियत का खास वक्त है।
6. एक गुनाह के बारे में
जमीन नाहक लेने का अज़ाब
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया :
“जिस ने किसी दूसरे की ज़रा सी ज़मीन भी नाहक लेली, उस को कयामत के रोज सातवीं जमीन तक धंसा दिया जाएगा।”
📕 बुखारी : २४५४, इब्ने उमर (र.अ)
7. दुनिया के बारे में
सब से ज़ियादा खौफ़ की चीज़
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया :
“मुझे तुम पर सब से ज़ियादा खौफ़ इस बात का है के कहीं अल्लाह तआला तुमपर ज़मीन की बरकात को ज़ाहिर न कर दे”, पूछा गया के जमीन की बरकात से क्या मुराद है? रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया: “दुनिया की रंगीनी, इस की खूबसूरती और जेब व ज़ीनत।”
📕 बुखारी : ६४२७, अन अबी सईद अल खुदरी (र.अ)
8. आख़िरत के बारे में
अल्लाह और रसूल की इताअत का बदला
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है:
“जो शख्स अल्लाह और उस के रसूल के हुक्म पर चलेगा, तो अल्लाह तआला उस को ऐसे बागों में दाखिल करेगा, जिन के नीचे नहरें बहती होंगी। वह हमेशा उन बागों में रहेंगे और यही बहुत बड़ी कामयाबी है।”
9. कुरआन की नसीहत
अल्लाह की जानिब मनसब चीजों की बेहुर्मती न करो
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है:
“ऐ ईमान वालो! अल्लाह की जानिब मनसब चीजों की बेहुर्मती न करो और न अदब वाले महीने की और न उन कुर्बानियों की जिन के गले में कलादा (यानी कुर्बानी की अलामत के पट्टे पडे हों) और उन लोगों की भी बेअदबी न करना जो अल्लाह का फ़ज़्ल और उसकी रज़ामंदी तलब करने बैतुल्लाह जा रहे हों।”
to be continued …