Contents
- 1. इस्लामी तारीख
- पहली बैते अक़बा
- 2. अल्लाह की कुदरत
- आँखों की हिफाजत
- 3. एक फर्ज के बारे में
- नमाज़ में खामोश रहना
- 4. एक सुन्नत के बारे में
- रुकू व सज्दे में उंगलियों को रखने का तरीका
- 5. एक अहेम अमल की फजीलत
- कुंवां खुदवाने का सवाब
- 6. एक गुनाह के बारे में
- हँसाने के लिये झूट बोलने का गुनाह
- 7. दुनिया के बारे में
- ज़रूरत से ज्यादा सामान शैतान के लिये
- 8. आख़िरत के बारे में
- कयामत का हौलनाक मंजर
- 9. तिब्बे नबवी से इलाज
- बीमार को परहेज़ का हुक्म
- 10. क़ुरान की नसीहत
- अल्लाह तआला से जो वादा करो उस को पूरा किया करो
21 Rabi-ul-Akhir | Sirf Panch Minute ka Madarsa
1. इस्लामी तारीख
पहली बैते अक़बा
अकबा, मिना के करीब एक घाटी का नाम है, जहाँ सन ११ नबवी में मदीना से 6 अफराद ने आकर दीने इस्लाम कबूल किया था, इस के दूसरे साल सन १२ नबवी में 12 अफ़राद रसूलुल्लाह (ﷺ) से मुलाकात करने और बैत होने के लिये आए और आप (ﷺ) के मुबारक हाथ पर चोरी, जिना और कल्ले औलाद से बचने, अच्छी बातों में आप (ﷺ) की इताअत व पैरवी करने और एक अल्लाह की इबादत करने पर बैत की। इस को “बैते अकबा-ए-ऊला” कहा जाता है।
जब उन लोगों ने वापसी का इरादा किया, तो रसूलुल्लाह (ﷺ) ने मुसअब बिन उमेर को कुरआने मजीद पढाने, इस्लाम की तालीम देने और दीनी मसाइल बताने के लिये उन लोगों के साथ रवाना किया। मदीना पहुँच कर उन्होंने असअद बिन जुरारा के मकान पर कयाम किया।
वह लोगों को इस्लाम की दावत देते और मुसलमानों को नमाज़ भी पढ़ाते थे।उनको मदीना वाले “अलमुकरी” (पढ़ाने वाला उस्ताद) कहा करते थे, उन्हीं की दावत व तब्लीग से सअद बिन मआज और उसद बिन हुर जैसे सरदारों ने इस्लाम कबूल किया था।
2. अल्लाह की कुदरत
आँखों की हिफाजत
अल्लाह तआला ने दुनिया के हसीन तरीन मनाजिर देखने के लिये हमें जिस तरह आँख जैसी नेअमत अता फ़रमाई है, इसी तरह उन की हिफाजत के लिये ख़ुद बखुद मशीन की तरह उन पर ऐसे परदे लगा दिये हैं के जब कोई नुकसान पहुंचाने वाली चीज़ आँखों के सामने आती है, तो वह खुद बख़ुद बंद होने लगती हैं, उन की हरकत से जहाँ बाहर की चीज़ों के हमले से हमारी आँखें महफूज़ हो जाती हैं, वहीं उन के खुलने और बंद होने से आँख का मैल कुचैल साफ होता रहता है।
अल्लाह तआला ने अपनी हिकमत व कुदरत से आँखों की हिफाजत का कैसा अजीब व गरीब इंतजाम कर दिया है।
3. एक फर्ज के बारे में
नमाज़ में खामोश रहना
हज़रत जैद बिन अरकम (र.अ) फर्माते हैं :
(शुरू इस्लाम में) हम में से बाज़ अपने बाज़ में खड़े शख्स से नमाज की हालत में बात कर लिया करता था,
फिर यह आयत नाजिल हुई:
तर्जमाः अल्लाह के लिये खामोशी के साथ खड़े रहो (यानी बातें न करो)।
फिर हमें खामोश रहने का हुक्म दे दिया गया और बात करने से रोक दिया गया।
फायदा: नमाज़ में बातचीत न करना और खामोश रहना जरूरी है।
4. एक सुन्नत के बारे में
रुकू व सज्दे में उंगलियों को रखने का तरीका
रसूलुल्लाह (ﷺ) जब रुकू फ़र्माते तो
(हाथों की) उंगलियों को खुली रखते और जब सज्दा फरमाते, तो उंगलियाँ मिला लेते।
5. एक अहेम अमल की फजीलत
कुंवां खुदवाने का सवाब
रसूलल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“जिस ने पानी का कुंवा खुदवाया और उस से किसी प्यासे परिन्दे, जिन या इन्सान ने पानी पिया, तो कयामत के दिन अल्लाह तआला उसको अज्र अता फ़रमाएगा।”
6. एक गुनाह के बारे में
हँसाने के लिये झूट बोलने का गुनाह
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया:
“उस शख्स के लिये हलाकत है, जो लोगों को हँसाने के लिये कोई बात कहे और उसमें झूट बोले, उसके लिये हलाकत है, हलाकत है।”
7. दुनिया के बारे में
ज़रूरत से ज्यादा सामान शैतान के लिये
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने हजरत जाबिर बिन अब्दुल्लाह (र.अ) से फ़र्माया :
“एक बिस्तर आदमी के लिये और एक उसकी बीवी के लिये और तीसरा मेहमान के लिये और चौथा शैतान के लिये होता है।”
8. आख़िरत के बारे में
कयामत का हौलनाक मंजर
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है:
“(क़यामत का मुन्किर) पूछता है के कयामत का दिन कब आएगा?
जिस दिन आँखें पथरा जाएँगी और चाँद बेनूर हो जाएगा और सूरज व चाँद (दोनों बेनूर हो कर) एक हालत पर कर दिये जाएँगे,
उस दिन इंसान कहेगा : (क्या) आज कहीं भागने की जगह है? जवाब मिलेगा : हरगिज नहीं (आज) कहीं पनाह की जगह नहीं है, उस दिन सिर्फ आप के रब के पास ठिकाना होगा।“
9. तिब्बे नबवी से इलाज
बीमार को परहेज़ का हुक्म
एक मर्तबा उम्मे मुन्जिर (र.अ) के घर पर रसूलुल्लाह (ﷺ) के साथ साथ हजरत अली (र.अ) भी खजूर खा रहे थे, तो आप (ﷺ) ने फ़रमाया: “ऐ अली! बस करो, क्योंकि तुम अभी कमजोर हो।”
फायदाः बीमारी की वजह से चूंकि सारे ही आज़ा कमज़ोर हो जाते हैं, जिन में मेअदा भी है, इस लिए ऐसे मौके पर खाने पीने में एहतियात करना चाहिए और मेअदे में हल्की और कम ग़िज़ा पहुँचनी चाहिए ताके सही तरीके से हज़्म हो सके।
10. क़ुरान की नसीहत
अल्लाह तआला से जो वादा करो उस को पूरा किया करो
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है :
“जब तुम बात किया करो, तो इन्साफ का ख्याल रखा करो, अगरचे वह शख्स तुम्हारा रिश्तेदार ही हो और अल्लाह तआला से जो अहद करो उस को पूरा किया करो, अल्लाह तआला ने तुम्हें इस का ताकीदी हुक्म दिया है। ताके तुम याद रखो (और अमल करो)।
Discover more from उम्मते नबी ﷺ हिंदी
Subscribe to get the latest posts sent to your email.