Contents
- 1. इस्लामी तारीख
- हज्जतुल विदाअ
- 2. अल्लाह की कुदरत
- इन्सान का सर कुदरत का शाहकार
- 3. एक फर्ज के बारे में
- बीवी की विरासत में शौहर का हिस्सा
- 4. एक सुन्नत के बारे में
- सोने से पहले बिस्तर झाड़ लेना
- 5. एक अहेम अमल की फजीलत
- जन्नत में दाखिल करने वाली चीज़
- 6. एक गुनाह के बारे में
- इजार या पैन्ट टखने से नीचे पहनने का गुनाह
- 7. दुनिया के बारे में
- कामयाब कौन?
- 8. आख़िरत के बारे में
- मोमिन के साथ क़ब्र का सुलूक
- 9. तिब्बे नबवी से इलाज
- गाय के दूध में शिफा है
- 10. नबी (ﷺ) की नसीहत
- क्या ईमान वालों के लिये अभी तक ऐसा वक़्त नहीं आया?
17 Jamadi-ul-Akhir | Sirf Panch Minute ka Madarsa
1. इस्लामी तारीख
हज्जतुल विदाअ
फतहे मक्का के बाद जब पूरे अरब में मजहबे इस्लाम की खूबियाँ अच्छी तरह वाजेह हो गई और लोग फौज दर फ़ौज शिर्क व बुतपरस्ती को छोड़ कर इस्लाम कबूल करने लगे, तो अब वक़्त था के हुज़र (ﷺ) खुद अमली तौर पर फरीज़-ए-हज को अन्जाम देकर इस्लाम के इस अज़ीम रुक्न की शान व शौकत और इस की अदायगी के सही तरीकों को बयान फरमाए और शिरकिया बातों और जाहिली, रुसूम व आदात से उसे पाक कर दें।
चुनान्चे रसूलुल्लाह (ﷺ) ने हज का इरादा किया और २५ या २६ ज़िल क़ादा सन १० हिजरी को ज़ोहर की नमाज़ के बाद मदीना मुनव्वरा से रवाना हुए, तमाम अजवाजे मुतहहरात और सय्यदा फातिमतु जहरा आप के साथ थीं और सहाब-ए-किराम एक लाख से जाइद की तादाद में आप के साथ शरीक थे, मक़ामे जुलहुलैफा में गुस्ल फर्मा कर एहराम बाँधा।
४ जिलहिज्जा को इतवार के दिन मक्का मुकर्रमा पहुँचे, सब से पहले खान-ए-काबा का में तवाफ किया और सफा व मरवा की सई फ़रमाई और ८ ज़िलहिज्जा से हज के अरकान को अदा करना शुरू फ़र्माया।
यह आप की मुबारक ज़िन्दगी का आख़री हज था, इसी लिये इस को “हज्जतुल विदा” कहा जाता है।
To be Continued …
2. अल्लाह की कुदरत
इन्सान का सर कुदरत का शाहकार
इन्सान के सर को देखिये अल्लाह तआला ने कैसा मुदव्वर, गोल और खूबसूरत बनाया है और उसमें पूरे जिस्म के कीमती खजाने छुपा रखे हैं, इन्सान का सर पचपन हड्डियों से जुड़ा हुआ है, तमाम हड्डियों एक दूसरे से जुदा हैं, सब की शक्लें अलग अलग हैं, छ.हड्डियाँ खोपड़ी के हिस्से में हैं, चौबीस ऊपर के जबड़े में और दो नीचे के जबड़े में और बाकी दाँत में हैं, उन तमाम को हुस्ने तरतीब के साथ जोड़ कर एक खूबसूरत शक्ल बनाई।
गौर करो उस (अल्लाह) की कारीगरी कितनी ज़बरदस्त है।
3. एक फर्ज के बारे में
बीवी की विरासत में शौहर का हिस्सा
कुरआन में अल्लाह ताआला फ़र्माता है :
“तुम्हारे लिए तुम्हारी बीवियों के छोड़े हुए माल में से आधा हिस्सा है, जब के उन को कोई औलाद न हो और अगर उन की औलाद हो, तो तुम्हारी बीवियो के छोड़े हुए माल में चौथाई हिस्सा है (तुम्हें यह हिस्सा) उन की वसिय्यत और कर्ज अदा करने के बाद मिलेगा।”
4. एक सुन्नत के बारे में
सोने से पहले बिस्तर झाड़ लेना
हजरत अबू हुरैरा (र.अ) फर्माते हैं के,
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“जब तुम में से कोई बिस्तर पर आए तो उसे किसी कपडे से झाड़ ले, उसे नहीं मालूम के बिस्तर में क्या है।“
5. एक अहेम अमल की फजीलत
जन्नत में दाखिल करने वाली चीज़
रसूलुल्लाह (ﷺ) से पूछा गया के,
“लोगों को सब से ज़ियादा जन्नत में दाखिल करने वाली क्या चीज़ है?”
आप (ﷺ) ने फर्माया : “अल्लाह से डरना और अच्छे अख्लाक़“,
और सब से ज़ियादा आग में दाखिल करने वाली चीज़ के बारे में सवाल किया गया।
तो आप (ﷺ) ने फर्माया : मुंह और शर्मगाह।”
📕 तिर्मिज़ी : २००४, अन अबी हुरैरा (र.अ)
6. एक गुनाह के बारे में
इजार या पैन्ट टखने से नीचे पहनने का गुनाह
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया :
“जो शख्स तकब्बुर के तौर पर अपने इज़ार को टखने से नीचे लटकाएगा, अल्लाह तआला क़यामत के दिन उसकी तरफ रहमत की नजर से नहीं देखेगा।”
7. दुनिया के बारे में
कामयाब कौन?
कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है :
“जो कुछ भी तुम को दिया गया है, वह सिर्फ चंद रोज़ा ज़िन्दगी के लिये है और वह उस की रौनक है और जो कुछ अल्लाह तआला के पास है, वह इस से कहीं बेहतर और बाकी रहने वाला है। क्या तुम लोग इतनी बात भी नहीं समझते?”
8. आख़िरत के बारे में
मोमिन के साथ क़ब्र का सुलूक
रसलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“जब मोमिन बन्दे को दफन किया जाता है, तो कब्र उस से कहती है: तुम्हारा आना मुबारक हो, मेरी पुश्त पर चलने वालों में तुम मुझे सब से जियादा महबूब थे, जब तुम मेरे हवाले कर दिए गए और मेरे पास आ गए, तो तुम आज मेरा हुस्ने सुलूक देखोगे, तो जहाँ तक नजर जाती है क़ब्र कुशादा हो जाती है और उसके लिये जन्नत का दरवाजा खोल दिया जाता है।”
📕 तिरमिजी : २४६०, अन अबी सईद खुदरी (र.अ)
9. तिब्बे नबवी से इलाज
गाय के दूध में शिफा है
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया :
“गाय का दूध इस्तेमाल किया करो, क्योंकि वह हर किस्म के पौधों को चरती है (इस लिए) उसके दूध में हर बीमारी से शिफ़ा है।”
10. नबी (ﷺ) की नसीहत
क्या ईमान वालों के लिये अभी तक ऐसा वक़्त नहीं आया?
कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है :
“क्या ईमान वालों के लिये अभी तक ऐसा वक़्त नहीं आया, के उनके दिल अल्लाह की नसीहत और जो दीने हक़ नाज़िल हुआ है, उसके सामने झुक जाएँ। और वह उन लोगों की तरह न हो जाएँ जिन को उन से पहले किताब दी गई थी।”
यानी वह वक़्त आ चुका है के मुसलमानों के दिल कुरआन और अल्लाह की याद और उसके सच्चे दीन के सामने झुक जाएँ।”
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