- इस्लामी तारीख: ज़मज़म का चश्मा
- हुजूर (ﷺ) का मुअजीजा: आप (ﷺ) की दुआ से सर्दी खत्म हो गई
- एक फर्ज के बारे में: सफा और मरवाह की सई करना
- एक सुन्नत के बारे में: एहराम बांधने की दुआ
- एक अहेम अमल की फजीलत: बैतुल्लाह का तवाफ करना
- एक गुनाह के बारे में: किसी को तकलीफ देना
- दुनिया के बारे में : दुनियावी ज़िंदगी धोका है
- आख़िरत के बारे में: क़यामत के दिन खुश नसीब इन्सान
- तिब्बे नबवी से इलाज: आबे जम ज़म से इलाज
- नबी (ﷺ) की नसीहत: दुनिया अमल की जगह है
1. इस्लामी तारीख:
ज़मज़म का चश्मा
. हज़रत इब्राहीम (अलैहि सलाम) अल्लाह के हुक्म से अपनी बीवी हाजरा (ऱ.अ) और लख्ते जिगर इस्माईल (अलैहि सलाम) का बेआब व गयाह और चटियल मैदान में छोड़ कर चले गए, जब इन के थैले की खजूर और मशकीजे का पानी खत्म हो गया और भूक व प्यास की वजह से हज़रत हाजरा (ऱ.अ) का दूध खुश्क हो गया तो बच्चा भूक के मारे बिलबिलाने लगा, इधर हाजरा (ऱ.अ) बेचैन हो कर पानी की तलाश में सफ़ा व मरवाह पहाड़ी पर चक्कर लगाने लगी, जब सातवें चक्कर में मरवाह पहाड़ी पर पहूँची, तो गैबी आवाज़ सुनाई दी, तो समझ गई के अल्लाह की तरफ से कोई खास बात ज़ाहिर होने वाली है।
. वापस आई तो देखा के जिब्रईले अमीन तशरीफ़ फ़र्मा हैं और उन्हों ने जमीन पर अपनी एड़ी मार कर पानी का चश्मा जारी कर दिया। बहते पानी को देख कर हज़रत हाजरा (ऱ.अ) ने ज़मज़म (रुक जा) कहा। उसी दिन से इस का नाम ज़मज़म हो गया। अगर हज़रत हाजरा (ऱ.अ) इस पानी को न रोकती तो वहां पानी की नहेर जारी हो जाती।
. यह चश्मा हज़ारों साल तक बंद पड़ा रहा, नबी (ﷺ) के दादा अब्दुल मुत्तलिब ने ख्वाब की रहनुमाई से इस कुवें की खुदाई की, तो साफ़ सुथरा पानी निकल आया, उस दिन से आज तक इस का पानी खत्म नहीं हुआ, जबके हर वक्त मशीनों से पानी निकालने का काम जारी है।
2. हुजूर (ﷺ) का मुअजीजा
आप (ﷺ) की दुआ से सर्दी खत्म हो गई
हज़रत बिलाल (ऱ.अ) बयान करते हैं के एक मरतबा सर्दी के मौसम में मैं ने सुबह की अजान दी, आप (ﷺ) अज़ान के बाद हुजर-ए-मुबारक से बाहर तशीफ़ लाये मगर मस्जिद में आप को कोई शख्स नज़र न आया। आप (ﷺ) ने पुछा : लोग कहां हैं ? मैं ने अर्ज़ किया : लोग सर्दी की वजह से नहीं आए।
आप (ﷺ) ने उसी वक्त दुआ फ़रमाई के ऐ अल्लाह ! इन से सर्दी की तकलीफ़ को दूर कर दे। हज़रत बिलाल (ऱ.अ) कहते हैं के उस के बाद मैंने एक एक कर के लोगों को नमाज़ के लिए आते देखा।
[बैहक़ी फी दलाइलिनुबाह : २४८३, अन बिलाल (ऱ.अ)]
3. एक फर्ज के बारे में:
सफा और मरवाह की सई करना
रसूलुल्लाह (ﷺ) (सफ़ा और मरवाह) की सई करते हुए सहाबा से फर्मा रहे थे के सई करो, क्योंकि अल्लाह तआला ने सई को तुम पर लाज़िम करार दिया है।
[मुस्नदे अहमद : २६८२१, अन हबीबा बिन्ते तजज़ा (ऱ.अ)]
6. एक गुनाह के बारे में:
किसी को तकलीफ देना
रसूलुल्लाह (ﷺ)ने फर्माया :
“मुर्दो को बुरा भला मत कहो, इस लिए के तुम इस से जिन्दों को तकलीफ दोगे। मुर्दो को बुरा भला कहना मना है, क्योंकि इस से उन के वह रिश्तेदार जो जिन्दा हैं। उन्हें तकलीफ होगी। और किसी को तकलीफ़ देना जाइज नहीं है।
[तिर्मिज़ी : १९८२, अन मुगीरह बिन शोअबा (ऱ.अ)]
7. दुनिया के बारे में :
दुनियावी ज़िंदगी धोका है
कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है :
“दुनियवी जिन्दगी तो कुछ भी नहीं, सिर्फ धोके का सौदा है।”
फायदा : जिस तरह माल के जाहिर को देख कर खरीदार फंस जाता है, इसी तरह दुनिया की चमक दमक से धोका खा कर आखिरत से गाफिल हो जाता है, इसी लिए इन्सानों को दुनिया की चमक दमक से होशियार रहना चाहिए।
8. आख़िरत के बारे में:
क़यामत के दिन खुश नसीब इन्सान
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“कयामत के दिन लोगों में से वह खुश नसीब मेरी शफाअत का मुसतहिक होगा, जिस ने सच्चे दिल से कलिम-ए-तय्यबा “ला इलाहा इलल्लाह” पढ़ा होगा।”
[बुखारी: १९, अन अबू हुरैरह (ऱ.अ)]
9. तिब्बे नबवी से इलाज:
आबे जम ज़म से इलाज
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“ज़मीन पर सब से बेहतरीन पानी आबे जम ज़म है, यह खाने वाले के लिए खाना और बीमार के लिए शिफ़ा है।”
[मुअजमुल औसत लित्तबरानी : ४०५९, अन अब्बास (ऱ.अ)]
10. नबी (ﷺ) की नसीहत:
दुनिया अमल की जगह है
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“दुनिया लम्हा ब लम्हा गुज़रती जा रही है और आखिरत सामने आती जा रही है और (इस दुनिया में) दोनों के चाहने वाले मौजूद हैं, तुम को दुनिया के मुकाबले में आखिरत इख्तियार करनी चाहिए, क्योंकि दुनिया अमल की जगह है, यहां हिसाब व किताब नहीं है। और आखिरत हिसाब व किताब की जगह है, वहां अमल करने का मौका नहीं है।”
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