हमारे मन में यह प्रश्न बार बार उभरता है कि अल्लाह कौन है ? वह कैसा है ? उस के गुण क्या हैं ? वह कहाँ है? जानिए इन सवालो के जवाब इस पोस्ट के माध्यम से।
अल्लाह कौन है? अल्लाह का परिचय
अल्लाह का शब्द मन में आते ही एक महान महिमा की कल्पना मन में पैदा होती है जो हर वस्तु का स्वामी और रब हो।
उसने हर वस्तु को एकेले उत्पन्न किया हो, पूरे संसार को चलाने वाला वही हो।
धरती और आकाश की हर चीज़ उसके आज्ञा का पालन करती हो। अपनी सम्पूर्ण विशेषताओं और गूणों में पूर्ण हो।
जिसे खाने पीने की आवशक्ता न हो, विवाह और वंश तथा संतान की ज़रूरत न हो, केवल वही महिमा उपासना के योग्य होगी।
अल्लाह ही केवल है जो सब गूणों और विशेषताओं में पूर्ण है।
अल्लाह तआला की कुछ महत्वपूर्ण विशेषता पवित्र क़ुरआन की इन आयतों में बयान की गई हैं।
अर्थातः ऐ नबी कहो, वह अल्लाह यकता है, अल्लाह सब से निरपेक्ष है और सब उसके मुहताज हैं।न उस की कोई संतान है और न वह किसी की संतान। और कोई उसका समकक्ष नहीं है।
सूरः112 अल-इख्लास
और क़ुरआन के दुसरे स्थान पर अल्लाह ने अपनी यह विशेषता बयान की है:
अर्थातःऔर निः संदेह अल्लाह ही उच्च और महान है।
सूरः अल- हजः 62
अल्लाह अपनी विशेषताओं और गुणों में सम्पूर्ण है
और वह हर कमी और नक्स से पवित्र है।
अल्लाह तआला की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताओं का बयान इन आयतों में किया गया हैः
अर्थातः
अल्लाह वह जीवन्त शाश्वत सत्ता, जो सम्पूर्ण जगत् को सँभाले हुए है,
उस के सिवा कोई पुज्य नही हैं।
वह न सोता और न उसे ऊँघ लगती है। ज़मीन और आसमानों में जो कुछ है, उसी का है।
कौन है जो उस के सामने उसकी अनुमति के बिना सिफारिश कर सके?
जो कुछ बन्दों के सामने है, उसे भी वह जानता है
और जो कुछ उस से ओझल है, उसे भी वह जानता है
और उसके ज्ञान में से कोई चीज़ उनके ज्ञान की पकड़ में नहीं आ सकती,
यह और बात है कि किसी चीज़ का ज्ञान वह खुद ही उनको देना चाहे।
उसका राज्य आसमानों और ज़मीन पर छाया हुआ है
और उनकी देख रेख उसके लिए थका देने वाला काम नहीं है।
बस वही एक महान और सर्वोपरि सत्ता है।
सूरः अल- बकराः 255
अल्लाह अकेला संसार का पालनहार है
अल्लाह तआला ही अकेला संसार और उसकी हर वस्तु का मालिक और स्वामी है,
उसी ने सम्पूर्ण वस्तु की रचना की है, वही सब को जीविका देता है, वही सब को मृत्यु देता है,
वही सब को जीवित करता है। इसी उपकार को याद दिलाते हुए अल्लाह तआला फरमाया हैः
अर्थातः
वह आकाशों और धर्ती का रब और हर उस चीज़ का रब है जो आकाशों और धर्ती के बीच हैं।यदि तुम लोग वास्तव में विश्वास रखने वाले हो, कोई माबूद उसके सिवा नही है। वही जीवन प्रदान करता है और वही मृत्यु देता है।वह तुम्हारा रब है और तुम्हारे उन पुर्वजों का रब है जो तुम से पहले गुज़र चुके हैं।
दुखानः7-8
अल्लाह की विशेषता में कोई भागीदार / साझी नहीं
उसी तरह अल्लाह तआला को उनके नामों और विशेषताओं में एक माना जाऐ,
अल्लाह के गुणों और विशेषताओं तथा नामों में कोई उसका भागीदार नहीं है।
इन विशेषताओं और गुणों को वैसे ही माना जाऐ जैसे अल्लाह ने उसको अपने लिए बताया है।
या अल्लाह के नबी (अलैहिस्सलातु वस्सलाम) ने उस विशेषता के बारे में खबर दी है
और ऐसी विशेषतायें और गुण अल्लाह के लिए न सिद्ध किये जाएं जो अल्लाह और उसके रसूल ने नहीं बयान किए।
पवित्र क़ुरआन में अल्लाह तआला का कथन हैः
अर्थातःअल्लाह के जैसा कोई नही है और अल्लाह तआला सुनता और देखता है।”
सूरः शूराः 42
इस लिए अल्लाह के सिफात (विशेषताये) और गुणों को वैसे ही माना जाऐ जैसा कि अल्लाह ने खबर दी है,
या उसके संदेष्ठा / नबी (अलैहिस्सलातु वस्सलाम) ने खबर दी है।
न उनके अर्थ को बदला जाए और न उसके अर्थ का इनकार किया जाए,
न ही उन की कैफियत (आकार) बयान की जाए और न ही दुसरी किसी वस्तु से उसका उदाहरण दिया जाए।
बल्कि यह कहा जाए कि अल्लाह तआला सुनता है, देखता है, जानता है, शक्ति शाली है,
जैसा कि अल्लाह की शान के योग्य है, वह अपनी विशेषता में पूर्ण है।
उस में किसी प्रकार की कमी नहीं है।
कोई उस जैसा नहीं हो सकता और न ही उस की विशेषता में भागीदार हो सकता है।
उसी तरह उन सर्व विशेषताओं और गुणों का अल्लाह से इन्कार किया जाए जिनका इन्कार अल्लाह ने किया है
या अल्लाह के नबी (अलैहिस्सलातु वस्सलाम) ने उस सिफत का इन्कार अल्लाह से किया है।
जैसा कि अल्लाह तआला का फंरमान हैः
अर्थातः अल्लाह अच्छे नामों का अधिकारी है। उसको अच्छे ही नामों से पुकारो और उन लोगों को छोड़ दो जो उसके नाम रखने में सच्चाई से हट जाते हैं, जो कुछ वह करते हैं वह उसका बदला पा कर रहेंगे।
सूरः आराफ़ 180
अल्लाह की विशेषताये
अल्लाह की विशेषता दो तरह की हैः
1. अल्लाह तआला की व्यक्तिगत विशेषताः
अल्लाह तआला इस विशेषता से हमेशा से परिपूर्ण है और हमेशा परिपूर्ण रहेगा,
उदाहरण के तौर पर, अल्लाह का ज्ञान, अल्लाह का सुनना, देखना, अल्लाह की शक्ति, अल्लाह का हाथ, अल्लाह का चेहरा,
आदि और इन विशेषता को वैसे ही माना जाए जैसा कि अल्लाह तआला के योग्य है,
न ही इन विशेषताओं के अर्थ को परिवर्तन किया जाए और न इन विशेषताओं के अर्थ का इन्कार किया जाए
और न इन विशेषताओं की दुसरी किसी वस्तु से तशबीह दी जाए,
और न ही इन विशेषताओं की अवस्था या हालत बयान की जाए,
और न ही उस की किसी विशेषता का आकार बयान किया जाए,
बल्कि कहा जाए कि अल्लाह तआला का हाथ है जैसा कि उस की शान के योग्य है।
2. अल्लाह की इख्तियारी विशेषताः
यह वह विशेषता है जो अल्लाह की इच्छा और इरादा पर निर्भर करती है।
यदि अल्लाह चाहता है तो करता और नहीं चाहता तो नहीं करता,
उदाहरण के तौर पर यदि अल्लाह तआला किसी दास के अच्छे काम पर प्रसन्न होता है
तो किसी दास के बुरे काम पर अप्रसन्न होता है,
किसी दास के अच्छे काम से खुश को कर उसे ज़्यादा रोज़ी देता है
तो किसी के बदले को पारलौकिक जीवन के लिए सुरक्षित कर देता है,
जैसा वह चाहता है करता है आदि।
इसी लिए केवल उसी की पूजा और उपासना की जाए।
उसकी पूजा तथा इबादत में किसी को भागीदार न बनाया जाए।
अल्लाह तआला ने लोगों को अपनी यह नेमतें याद दिलाते हुए आदेश दिया है कि
जब सारे उपकार हमारे हैं तो पूजा अन्य की क्यों करते होः
अर्थात्ः लोगो! पूजा करो अपने उस रब (मालिक) की जो तुम्हारा
और तुम से पहले जो लोग हूऐ हैं उन सब का पैदा करने वाला है।
तुम्हारे बचने की आशा इसी प्रकार हो सकती है।
वही है जिसने तुम्हारे लिए धरती को बिछौना बनाया,
आकाश को छत बनाया, ऊपर से पानी बरसाया
और उसके द्वारा हर प्रकार की पैदावार निकाल कर तुम्हारे लिए रोजी जुटाई,
अतः जब तुम यह जानते हो तो दुसरों को अल्लाह का समक्ष न ठहराऔ।
सूरः अल-बक़रा 22
जो लोग आकाश एवं धरती के मालिक को छोड़ कर मृतक मानव, पैड़, पौधे, पत्थरों
और कमजोर वस्तुओं को अपना पूज्य बना लेते हैं,
ऐसे लोगों को सम्बोधित करते हुए अल्लाह ने उन्हें एक उदाहरण के माध्यम से समझाया हैः
अर्थात्ः हे लोगो! एक मिसाल दी जा रही है, ज़रा ध्यान से सुनो,
अल्लाह के सिवा तुम जिन जिन को पुकारते रहे हो वे एक मक्खी पैदा नहीं कर सकते,
अगर मक्खी उन से कोई चीज़ ले भागे तो यह उसे भी उस से छीन नहीं सकते।
बड़ा कमज़ोर है माँगने वाला और बहुत कमज़ोर है जिस से माँगा जा रहा है।
सूरः अल-हज 73
धरती और आकाश की हर चीज़ को अल्लाह तआला ही ने उत्पन्न किया है।
इन सम्पूर्ण संसार को वही रोज़ी देता है, सम्पूर्ण जगत में उसी का एख़तियार चलता है।
तो यह बिल्कुल बुद्धि के खिलाफ है कि कुछ लोग अपने ही जैसों या अपने से कमतर की पुजा
और उपासना करें, जब कि वह भी उन्हीं की तरह मुहताज हैं।
जब मख्लूक में से कोई भी इबादत सही हकदार नहीं है तो
वही इबादत का हकदार हुआ जिस ने इन सारी चीज़ों को पैदा किया है
और वह केवल अल्लाह तआला की ज़ात है जो हर कमी और दोष से पवित्र है।
अल्लाह कहाँ है ?
अल्लाह तआला आकाश के ऊपर अपने अर्श (सिंहासन) पर है। जैसा कि अल्लाह तआला का कथन हैः
वह करूणामय स्वामी (जगत के) राज्य सिंहासन पर विराजमान है।
सूरहः ताहाः 5
यही कारण है कि प्रत्येक मानव जब कठिनाई तथा संकट में होते हैं,
तो उनकी आँखें आकाश की ओर उठती हैं कि हे ईश्वर तू मुझे इस संकट से निकाल दे।
किन्तु जब वह खुशहाली में होते हैं तो उसे छोड़ कर विभिन्न दरवाज़ों का चक्कर काटते हैं।
इस प्रकार स्वयं को ज़लील और अपमाणित करते हैं।
ज्ञात यह हुआ कि हर मानव का हृदय कहता है कि ईश्वर ऊपर है,
परन्तु पूर्वजों की देखा देखी अपने वास्तविक पालनहार को छोड़ कर बेजान वस्तुओं की भक्ति में ग्रस्त रहता है जिनसे उसे न कोई लाभ मिलता है न नुक्सान होता है।
अन्त में हम अल्लाह से दुआ करते हैं कि वह हम सब को अपने सम्बन्ध में सही ज्ञान प्रदान करे।