सिरतून नबी (ﷺ) सीरीज | Part 38

Seerat un Nabi (ﷺ) Series: Part 38

Seerat un Nabi (ﷺ) Series: Part 38

पेज: 324

दगाबाज़ कासिद

यह बात तो सब पर अयां थी कि मक्का वाले मुसलमानों के जबरदस्त दुश्मन हैं। बद्र और उहद की लड़ाइयों में उन के सरदार मारे जा चुके थे, जिस की वजह से नफ़रत व अदावत के जज्बात और गहरे हो गये थे।

किसी मुसलमान की जान और माल मक्का में बचा रह सकता है। हर कदम पर अंदेशा था, हर मुश्रिक से डर था, गोया मक्के का चप्पा- चप्पा और घर व दीवार मुसलमानों पर तंग और वहां के लोग मुसलमानों के दुश्मन थे, लेकिन इन अहम बातों को जानते हुए और समझे हुए भी इस्लाम के दस फ़िदाकार मुबल्लिग बिला खौफ़ व अंदेशे के जान हथेली पर रख कर तब्लीगे इस्लाम के लिए दुश्मनों के शहर की तरफ़ रवाना हो गये थे।

सारे दिन तेज धूप और झुलसा देने वाली हवा में सफ़र करते रहे। रात को रेत के टीले पर आराम किया, खाना खाया, नमाज पढ़ी और सो रहे।

सुबह सवेरे उठे, नमाज पढ़ी और फिर सफ़र की तैयारी शुरू हो गयी। दूसरे दिन सफ़र पर रवाना होने से पहले अपने साथियों की गिनती की गयी, तो वफ्द वालों में से एक आदमी कम था

सब हैरत में पड़ गये। 

सोचा, शायद किसी जरूरत से गया हो, इसलिए वापसी का इंतिज़ार करने लगे।

दोपहर हो गयी, लेकिन साथी अब तक नहीं लोटा।

सब बैठे इन्तिजार करते रहे, यहां तक कि शाम हो गयी।

सब चिन्ता में डूब गये।

ताज्जुब की बात यह थी कि गुमशुदा आदमी का ऊंट भी गुम था। रात को उन लोगों ने उसी जगह कियाम किया और दूसरे दिन उसकी खोज में निकले।

थक कर फिर उसी जगह आ गये, जहां से चले थे।

जब थक हार गये और खोज भी बेकार हो गयी, तो मजबूरन ये लोग तीसरे दिन मक्का की तरफ़ रवाना हुए।

यह छोटा सा क़ाफ़िला दिन भर सफ़र करता और रात को किसी टीले पर ठहर कर आराम करता। कई दिन सफ़र करता हुआ एक दिन उस जगह पहुंचा, जहां क़बीला हुजैल आबाद था।

पेज: 325

जब ये लोग उस जगह पहुंचे, तो उन्हों ने उस आदमी को सामने से आते देखा, जो गुम हो गया था।

आसिम उसे देख कर खिल उठे और खुश हो कर बोले –

ऐ भाई ! तुम कहाँ चले गये थे ? हम सब तुम्हारी गुमशुदगी से परेशान हो गये थे।

उस अरब की आंखों से मक्कारी झलक रही थी, उस ने कहा, मैं आप से आगे ही चला आया था इसलिए कि एक जरूरी काम अंजाम देना था।

अगर आना ही था, तो कम से कम हम को बता कर आते, आसिम ने कहा, हम परेशान तो न होते।

अरब हंसा और हंस कर बोला, अब आप की परेशानी दूर हो जाएगी।

आसिम इस बात से चौंके।

उन्हों ने उसे गौर से देखा, उस के चेहरे से खबास झलक रही थी। वह कुछ कहना ही चाहते थे कि सामने से लगभग दो सौ नवजवान तलवारें हाथों में लिए उन की तरफ बढ़ते नज़र आए।

उनके साथ एक औरत भी थी, जो तेजी से दौड़ी चली आ रही थी। आसिम ने और तमाम मुसलमानों ने एक साथ आने वालों को देखा।

हवीब बिन अदी ने आसिम को खिताब करते हुए कहा – आसिम ! तुम्हारे मेहमानों ने दग़ा दी।

बेशक दग़ा दी, आसिम ने कहा। मुसलमानो ! आओ, इस क़रीब की पहाड़ी पर चढ़ चलो।

यह कहते ही आसिम पहाड़ी की तरफ़ चले। तमाम मुसलमान उन के साथ हो लिए।

अभी ये लोग कुछ क़दम ही चले होंगे कि अहले वफ्द ने तलवारें म्यान से खींच कर उन पर हमला कर दिया।

कहां जाते हो ? अमीरे वफ्द ने कहा, तुम्हारी मौत तुम को इस जगह खींच कर लायी है।

मुसलमानों ने भी तलवारें सौंत लीं।

आसिम ने कहा –

दगाबाजो! आज तक किसी अरब ने अपनी हिमायत को नहीं तोड़ा था, लोग जान दे देते थे, लेकिन अपनी पनाह में लेने वालों पर आंच न आने देते थे। लेकिन आज तुमने अरबों की क़ौम पर बट्टा लगा दिया। नामर्द  बुजदिलो ! संभलो मौत तुम्हारी आयी है।

यह कहते ही आसिम, फिर दूसरे मुसलमान अहले वफ्द पर टूट पड़े। तलवारें चलने लगीं।

पेज: 326

लड़ाई शुरू हो गयी ।

मुसलमानों ने जल्द-जल्द हमला कर के दो काफ़िरों को मार डाला। बाक़ी मुशरिक जख्मी हो कर पीछे हटे।

मुसलमान लपक कर पहाड़ी पर चढ़ गये।

काफ़िरों ने समझ लिया कि मुसलमान आसानी से उन के क़ाबू में न आएंगे, लड़ेंगे और आखिरी दम तक लड़ेंगे। इसलिए उन्हों ने धोखे से काम लेना चाहा।

उन में से एक आदमी ने कहा –

मुसलमानो ! हमारा क़स्द तुम पर हमला करने का नहीं है, बल्कि हम तुम को आजमा रहे थे कि अगर मक्का वालों ने तुम पर हमला किया, तो तुम उन के मुक़ाबले में ठहर सकोगे या नहीं? तुम्हारी जुति ने बता दिया कि तुम डरने वाले नहीं हो, आओ, पहाड़ी से नीचे उतर आओ, हमारे साथ चलो, हम तुम्हारे हामी व मददगार हैं। 

कमीनो ! दगाबाज़ो ! आसिम ने कहा, तुम हम को फ़रेब देना चाहते हो, हम तुम्हारे घोखे में आने वाले नही। 

अब वह औरत, जो दो सौ नवजवानों के साथ भागती आ रही थी, आगे बढ़ी और बुलन्द आवाज से बोली –

मुसलमानो ! सुनो, हम तुम्हें गिरफ्तार करना या मारना नहीं चाहते, मैं सिर्फ़ आसिम की दुश्मन हूं। तुम से सिर्फ़ आसिम को चाहती हूं। आसिम को मेरे हवाले कर दो और तुम सब चले जाओ।

ओ खूबसूरत डाइन ! खुबैब ने पूछा, आसिम के साथ तेरी दुश्मनी की वजह क्या है ?

मैं उस से अपने दो बेटों के मारे जाने का इन्तक़ाम लेना चाहती हूं, औरत ने कहा, उस ने मेरे दो बेटों को उहद के मैदान में मार डाला था। 

खुबैब ने कुछ कहना चाहा।

औरत ने उन्हें रोक कर कहा, अभी मेरी बात सुन लो इस वफ्द को मक्के से मैं ने भेजा था ओर ताकीद की थी कि आसिम को अपने साथ जरूर लाना।

उस ने आगे बताया, मैं ने आसिम के सर के लिए एक सौ ऊंट इनाम भी रखा है। आसिम आ गया है, इसलिए तुम उसे मेरे हवाले कर दो।

आसिम ने मुसलमानों से ख़िताब करते हुए फ़रमाया, मुसलमानो ! औरत असल में मुझे चाहती है और मेरे खून की प्यासी है। मुझे उस के हवाले कर के अपनी जान बचा लो।

पेज: 327

तमाम मुसलमानों ने ऐसा करने से इन्कार कर दिया और उस औरत से खुल कर कह दिया, हम आसिम को तेरे हवाले हरगिज नहीं कर सकते। फिर क्या था, कुफ़्फ़ार ने धावा बोल दिया।

लड़ाई शुरू हो गई।

तलवारें चमकी और इन्सानी संर कट कट कर जमीन पर ढेर होने लगे।

दस मुसलमान और दो सौ कुफ़्फ़ार, बेचारे कब तक मुक़ाबला करते। आठ शहीद हो गये और दो गिरफ़्तार कर लिए गये।

गिरफ्तार होने वालों में से हज़रत खुबैब और दूसरे हजरत जैद थे। 

इन दो कैदी मुसलमानों के साथ औरत के बचे-खुचे जवानों का क़ाफ़िला पहाड़ी से उतर कर अपने रास्ते पर चल पड़ा।


वहशियाना संगदिली

जिस वक़्त अबू बर्रा सत्तर सहाबियों को लेकर नज्द रवाना हुए थे, उसी वक़्त हुजूर (ﷺ) ने अबू बरा के मश्विरे से उस के भतीजे आमिर बिन तुफ़ैल को एक ख़त लिखकर हरम बिन मलजान (र.अ) के हाथ रवाना किया था। इस खत को भेजने का मक्सद यह था कि आमिर को मालूम हो जाए कि जो मुसलमान आ रहे हैं, वे बरा, उस के चचा की हिमायत व असान में हैं।

आमिर को इस्लाम और मुसलमानों से बड़ी नफ़रत और दुश्मनी थी। आमिर में इतनी ताकत तो न थी कि वह मुसलमानों से लड़ाई छेड़ता, अलबत्ता वह यह बराबर सोचता रहता था कि किस तरह ज्यादा से ज्यादा नुक्सान पहुंचाया जा सके।

एक दिन वह बीरे मऊना पर खड़ा था। साथ में उस के दस-बारह साथी भी खड़े थे।

बीरे मऊना बनू आमिर और बनू सलीम क़बीलों के बीच में वाक़ेअ था। 

आमिर ने एक अरब को एक ऊंट पर सवार आते देखा। उस ने अपने साथियों को खिताब करते हुए कहा –

तुम इस ऊंट सवार अरब को देख रहे हो ?

तमाम लोगों ने उस ऊंट सवार को देख लिया था। 

सब ने कहा, हां ! देख रहे हैं, शायद वह मदीने से आ रहा है।

मेरा भी यही ख्याल है, आमिर ने कहा, अजब नहीं, “यह मुसलमान हो और मेरे पास कोई पैग्राम ला रहा हो।”

पेज: 328

मान लो वह मुसलमान ही है, तो ? एक आदमी ने उस से पूछा। 

हुबल की क़सम ! आमिर ने बात काटते हुए कहा, अगर वह मुसलमान हुआ, तो बग़ैर कुछ कलाम किये उसे कत्ल कर डालूंगा। जिस वक़्त मैं इशारा करूं, तुम सब उस से लिपट जाना। सुना है कि ये मुसलमान बहादुर होते हैं, इसलिए उसे लड़ने का मौक़ा ही न देना, वरना दो एक को जरूर क़त्ल कर डालेगा।

इस बीच ऊंट सवार क़रीब आ गया।

यह हरम बिन मलजान (र.अ) थे, जो हुजूर (ﷺ) का खत लेकर आये थे। वह आमिर को जानते थे, उन्हों ने उसे पहचान लिया। आमिर उन को न जानता था।

या सय्यदी ! हरम (र.अ) ने आमिर के पास पहुँच कर कहा मैं आप के पास आया हूं।

मेरे पास? आमिर ने कहा।

आप ने हजरत मुहम्मद (ﷺ) का नाम सुना होगा ? हरम ने कहा। 

हां, सुना है ! आमिर ने बुरा सा मुंह बना कर कहा, वही, जिसे उस के वतन वालों ने निकाल दिया है और जो मदीना वालों को साथ ले कर अपने खानदान और अपने क़बीले वालों से लड़ रहा है।

शायद आप भी जानते ये लड़ाइयां क्यों हुईं ? ज्यादती किस ने की, हरम ने कहा। 

मुझे इन बातों से कोई ग़रज नहीं, आमिर ने बेरुखी से कहा, मैं तो यह समझता हूं कि हजरत मुहम्मद ने एक नया मजहब जारी कर के क़ौम व मुल्क के अन्दर फ़ितना पैदा कर दिया है।

आप को ग़लत इतिला पहुंची, हरम ने कहा, हुजूर (ﷺ) जिस मजहब की तब्लीग़ कर रहे हैं, वह नया मजहब नहीं है। वह वही मजहब है, जो हमारे, आप के और सारी दुनिया के बाबा आदम का मजहब था, जो हज़रत नूह का मजहब था, हजरत इब्राहीम, हज़रत मूसा, हज़रत ईसा, सभी उसी मजहब का प्रचार करते थे हज़रत इब्राहीम ने इसका नाम इस्लाम रखा था और इस्लाम में दाखिल होने वाले का नाम मुसलमान था।

उन्हों ने आगे कहा, इस्लाम खुदापरस्ती की तालीम देता है, बुतों की पूजा से मना करता है। हुजूर (ﷺ) अल्लाह के रसूल और आखिरी पैग़म्बर हैं। अब कोई पैग़म्बर आने वाला नहीं है।

यह तुम हुजूर (ﷺ) किसे कहते हो ? आमिर ने पूछा।

पेज: 329

मुसलमान हजरत मुहम्मद (ﷺ) को इज्जत की वजह से हुजूर (ﷺ) कहते हैं, हरम ने बताया।

क्या तुम मुसलमान हो ? आमिर ने पूछा।

हां, मैं मुसलमान हूं, हरम ने कहा और हुजूर (ﷺ) का खत तुम्हारे पास लाया हूं।

आमिर ने अपने साथियों को इशारा किया। वे अचानक बढ़े।

इस से पहले कि हरम मामला समझ सकें, कई आदमियों ने बढ़ कर उन्हें अपने काबू में कर लिया।

ओ कुत्ते मुसलमान ! तुम्हारा नाम क्या है ? आमिर ने उनसे कहा। 

बुजदिल, कमीने! मेरा नाम हरम है, मैं मलजान का बेटा हूं, हरम ने फ़रमाया, दगाबाज जलील ! अगर दावा बहादुरी का है, तो मुक़ाबला कर।

आमिर ने खिसयाना हो कर क़हक़हा लगाया।

मलजान के बेटे ! आमिर बोला, तुम्हें भी बहादुरी पर नाज है। खैर, में मान लेता हूं कि तुम बहादुर हो, मगर हरम ! यह कितनी हिमाक़त है तुम अपने मजहब को छोड़ कर मुसलमान हो गये।

हरम ने कुछ कहना चाहा।

आमिर ने हाथ बढ़ा कर इशारे से उन्हें खामोश रहने को कहा। 

सुनो हरम ! मुझे मालूम है कि मुसलमान बेबाक और गुस्ताख होते है। मैं नहीं चाहता कि तुम कोई ऐसी बात कहो, जो मेरे दिल को चोट लगाये, आमिर ने समझाया, मेरी तो यह आरजू है कि तुम इस्लाम छोड़ दो और अपने पुराने मजहब पर आ जाओ। अगर तुम्हें यह डर है कि मुसलमान तुम्हारे इस्लाम छोड़ने की वजह से तुम्हारे दुश्मन हो जाएंगे और तुम को नुक्सान पहुंचाएंगे, तो मैं तुम को अपनी हिमायत में लेता हूँ। दुनिया की कोई ताक़त मेरी अमान में होते हुए तुम को किसी क़िस्म का नुक्सान नहीं पहुंचा सकती। मैं तुम को दो सौ ऊंट और पांच सौ बकरियां दूंगा, दो गुलाम तुम्हारी खिदमत के लिए, सोना-चांदी खर्च करने के लिए और एक अच्छी चरागाह तुम्हारे मवेशियों के चरने के लिए तुम्हें दूंगा। साथ ही तुम को अख्तियार दिया जाएगा कि तुम मेरे क़बीले की जिस औरत या लड़की को पसन्द करोगे, उस से तुम्हारी शादी कर दूंगा। तुम्हारी जिन्दगी अमीराना तौर पर बसर होगी। बोलो, तुम को ये तमाम शर्तें मंजूर हैं ?

आमिर ! हरम ने फ़रमाया, अगर तुम्हारा यह ख्याल है कि मैं यां कोई मुसलमान किसी लालच या मुसीबत में आ कर इस्लाम छोड़ देगा, तो तुम ने ग़लत समझा है। कोई मुसलमान कभी ऐसा न करेगा। 

पेज: 330

उन्होंने आगे कहा, दुनिया कुछ दिनों की है, यहां का ऐश व आराम भी कुछ दिनों का है। हमेशा वाली जिन्दगी तो मौत के बाद शुरू होती हैं। मरने के बाद जिसे आराम व सुकून हो, उस ने सब कुछ पा लिया। लेकिन जिसे मरने के बाद तक्लीफ़ हुई, उस ने सब कुछ खो दिया।

ग़ौर कीजिए, अगर आप की ग़ुलाम आप की नाफरमानी करे, तो क्या आप उस गुलाम से खुश होंगे ? मैं समझता हूं कि आप उस से ‘नाखुश हो कर उसे सजा जरूर देंगे। इस तरह खुदा उन बन्दों से कैसे खुश हो सकता है, जो उसे छोड़ कर बुतों या दूसरी चीजों को पूजते हैं, उस की नाफ़रमानी करते हैं।

आमिर बीच ही में बोल पड़ा, मैं वाज व नसीहत सुनना नहीं चाहता। मैं तो सिर्फ़ यह जानना चाहता हूं कि तुम इस्लाम के लिए तैयार हो या नहीं।

मैं इस्लाम नहीं छोड़ सकता, हरम ने निडर हो कर कहा।

अगर तुम ने इस्लाम न छोड़ा, तो तुम्हारा सर गरदन से उड़ा दिया जाएगा, आमिर ने बिगड़ कर कहा।

कोई परवाह नहीं, हरम ने बेनीयाजी दिखाते हुए कहा। 

आमिर ने ग़ज़बनाक हो कर तलवार खींच ली।

हरम इस्लाम छोड़ दे, वरना इस तलवार से तेरा सर उड़ा दिया जाएगा, वह गुस्से से लाल हो रहा था।

आमिर ! मैं पहले ही कह चुका हूं कि कोई मुसलमान किसी लालच, किसी डर, या किसी तकलीफ़ का असर क़ुबूल करके इस्लाम कभी नहीं छोड़ सकता, हरम ने समझाया।

तो क्या इंकार है ? आमिर अब भी गुस्से में भरा हुआ था।

हां, इंकार है, हरम (र.अ) ने कहा, आखिरी सांस तक इंकार ही रहेगा। 

आमिर ने तलवार से वार कर दिया। तलवार गरदन पर पड़ी, हरम शहीद हो कर गिर पड़े।

आमिर ने फिर अपने साथियों को खिताब कर के कहा –

इस बद-बख्त की लाश सामने मैदान में डाल दो, ताकि यह कौवों, चीलों और गिद्धों की खूराक बन जाए।

एक बदबख़्त मे उन की लाश घसीट कर मैदान में डाल दी।

आमिर ने तलवार साफ़ कर के म्यान में रखी, हरम के अमामे को खोला, उस में खत बंधा हुआ था। आमिर ने खत खोल कर पड़ा –

पेज: 331

आमिर बिन तुफ़ैल के नाम रसूलल्लाह (ﷺ) का खत 

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

यह खत मुहम्मद रसूलुल्लाह (ﷺ) की तरफ से आमिर बिन तुफ़ैल के नाम

बाद सलाम के मालूम हो कि मैं उस खुदा का भेजा हुआ नबी और रसूल हूं, जो सब का पैदा करने वाला और पालने वाला है, जो बदले के दिन का मालिक है, शुक्र और तारीफ़ उसी की होनी चाहिए, उसी की इबादत भी होनी चाहिए। 

मैं तुमको और तुम्हारे क़बीले को इस्लाम की दावत देता हूं। मुसलमान हो कर हमारे भाई बन जाओ। खुदा की बंदगी शुरू कर दो। शराबखोरी, जुआ, जिना, और दूसरे तमाम गुनाह के कामों को छोड़ दो।

तुम्हारे मोहतरम चचा अबू बर्रा यहां आये थे। मैं उन के साथ सत्तर सहाबा भेज रहा हूं। जो शक व ग़लतफ़हमी तुम को या तुम्हारे क़बीले को हो, उन्हें बातें कर के दूर कर लेना। अगर इस से तसल्ली न हो, तो मदीना आ जाओ। यहां तुम्हारे हर शक को दूर कर दिया जाएंगे।

आमिर ने खत पढ़ कर कहा –

कितना गुस्ताखाना खत है। क़सम है हुबल की ! मैं उन तमाम मुसलमानों को हलाक कर डालूंगा, जो मेरे चचा के साथ आ रहे है, फिर अपने साथियों से पूछा, क्या तुम लोग मेरी मदद करोगे ?

उनमें से एक आदमी ने किसी क़दर संजीदगी से कहा-

आप जानते हैं कि आप के क़बीला बनू आमिर पर आप के चचा अबू बुरा का ज्यादा असर व रुसूख है और वह मुसलमानों को अपनी अमान में ले कर आ रहे हैं, इसलिए मुनासिब यह है कि आप अपने क़बीले के सरदारों को जोश दिला कर इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ़ उभार दें। 

निहायत मुनासिब है, आमिर ने कहा, सरदारों को मुसलमानों के क़त्ल पर तैयार किया जाए।

ये सब लोग चले और अपने क़बीले के सरदारों के पास पहुंच गये। 

आमिर को देखते ही वे सब इज्जत करने के तौर पर खड़े हो गये। 

आमिर सलाम व दुआ के बाद बैठ गया और अपनी बात खोल कर कह दी।

सरदारों में से एक आदमी ने कहा, आमिर ! तुम कहते हो कि मुसलमान तुम्हारे चचा की अमान व हिमायत में हैं, तो हम तुम्हारे चचा की हिमायत को नहीं तोड़ सकते।

पेज: 332

आमिर ! यह बुरी बात है, तुम को भी इस की कोशिश नहीं करना चाहिए। अबू बरा तुम्हारे बुजुर्ग हैं। इस के अलावा हम अरबों का यह सोशल क़ानून है कि जब हम किसी को अपनी हिमायत में लेते हैं तो जिंदगी की आखिरी सांस तक उस की हिमायत से हाथ नहीं उठाते। यह बड़े ऐब की बात है कि हम अपनी हिमायत को तोड़ डालें। तुम हमारे क़बीले को ऐसा कर के बदनाम न करो।

आमिर समझ गया कि उस की क़ौम के लोग उस का साथ न देंगे। 

वह खफ़ा हो कर उठ खड़ा हुआ और बनू सलीम के खेमे पर पहुंचा। 

कबीला बनू सलीम में जग़ल, जकवान और अस्वा सरदारों में से थे। इत्तिफ़ाक़ से वे तीनों एक ही जगह बैठे थे।

जब आमिर ने उन से पूरी बात बता कर मदद की दरख्वास्त की, तो जग़ल ने कहा –

यह बुरी बात है कि हम अबू बरा की हिमायत में रुकावट डालें, मगर हम तुम्हारा एहतिराम भी करते हैं। तुम ने हमारे खेमों पर आ कर हम से मदद की दरख्वास्त की है, हम तुम्हारी दरख्वास्त को रद्द कर के तुम्हें मायूस न करेंगे ।

बेशक हम तुम्हारी मदद करेंगे, जकवान ने कहा, लेकिन हम मुसलमानों से लड़े तो फ़साद के बढ़ने का अंदेशा भी है।

उसने आगे कहा, एक तो मुसलमान बड़े बहादुर होते हैं फिर वे जोशीले भी होते हैं उनका क़ाबू में आना मुश्किल है। दूसरे मुम्किन नहीं कि अबू बरा की वजह से तुम्हारा क़बीला उन की हिमायत पर तैयार हो जाएगा। इस लिए मुनासिब यही है कि मुसलमानों को फ़रेब दे कर क़त्ल कर दिया जाए।

बेशक यही हमारे लिए मुनासिब है, अस्बा ने कहा । मेरी राय में तो उन्हें एक दिन दावत दी जाए और मौक़ा पा कर क़त्ल कर दिया जाए। 

उपाय तो जो आप मुनासिब समझें, अपनायें, आमिर ने कहा, मगर मेरी ख्वाहिश है कि कोई भी मुसलमान जिन्दा न रहे।

ऐसा ही होगा, जग़ल ने कहा, आप इत्मीनान रखें। जब मुसलमान आ जाएं, तो आप का फ़र्ज़ है कि हमें मुत्तला कर दें।

न सिर्फ़ इत्तिला दी जाए, बल्कि उन की मेहमानी के लिए कुछ ऊंट और कुछ जौ का आटा भेजा जाए, जकवान ने कहा।

मैं सब इन्तिजाम कर दूंगा, आमिर ने कहा।

इस बात-चीत के बाद आमिर उठ कर चला गया।

To be continued …

इंशा अल्लाह सीरीज का अगला हिस्सा कल पोस्ट किया जायेगा …
आप हज़रात से इल्तेजा है इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करे और अपनी राय भी दे … 


Discover more from उम्मते नबी ﷺ हिंदी

Subscribe to get the latest posts sent to your email.




WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now

Comment

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *