Seerat un Nabi (ﷺ) Series: Part 21
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जब तमाम लोग बैअत कर चुके, तो राफेअ बिन मालिक (र.अ) ने कहा, ऐ अल्लाह के रसूल (ﷺ) ! हम चाहते हैं कि आप कोई ऐसा आदमी हमारे साथ करें, जो कारी हो, मुबल्लिग़ हो, शरीअत को खूब जानता हो, अच्छी तकरीर कर सकता हो, दुश्मनों की ज्यादतियों से न घबराए, न डरे।
इस्लाम के पहले दायी : मुसअब बिन उमैर (र.अ)
हुजूर (ﷺ) ने फ़रमाया, ठीक है मैं कल सुबह तुम्हारे पास मुसबब बिन उमैर को भेजंगा, जो तुम्हारे साथ यसरब जा कर तब्लीग करेंगे।
राफेअ ने कहा, बहुत खूब ! अब दुआ फरमाइए कि अल्लाह यसरब वालों को मुसलमान होने की तौफीक अता फरमाए।
हुजूर (ﷺ) ने दुआ मांगी और यह मज्लिस बर्खास्त हुई।
मुसअब बिन उमेर (र.अ) यसरब के बारह मुसलमानों के साथ रवाना हुए। एक हफ्ता के बाद यह काफ़िला यसरब यानी मदीने में दाखिल हआ। मुसअब (र.अ) साद बिन जरारा के मकान पर ठहरे।
उन्हों ने एक दिन के लिए भी आराम न किया और दूसरे दिन ही से इस्लाम की तब्लीग शुरू कर दी।
मदीने में इस्लाम की तब्लीग
यसरब यानी मदीने की आबादी कबीला वार थी। मुसअब बे-धड़क हर मुहल्ले जा-जा कर कबीले के लोगों में तब्लीगे इस्लाम करने लगे।
कुछ ही दिनों में कबीले के कबीले मुसलमान हो गये।
कबीला औस की शाखों में कबीला बनुल अहमश और क़बीला बनु जफ़र बहुत मशहूर और ताक़तवर कबीले थे।
कबीला बनू जफ़र के सरदार उसैद बिन हुजैर और कबीला बनुल अहमश के सरदार साद बिन मुआज को यसरब के तमाम कबीलों ने अपना सरदार मान लिया था।
यसरब के वही हाकिम थे। उसैद बिनं हुजैर और साद बिन मुआज को मुसअब के मक्का से मदीना में आने और तब्लीगे इस्लाम करने की इत्तिला थी, साथ ही उन को यह भी पता चल गया था कि मुसअब की कोशिश से नया मजहब बहुत तरक्की कर रहा है और लोग झुंड के झुंड मुसलमान हो रहे हैं।
इन दोनों को यह बात बहुत नागवर गुजरी और हुक्म दे दिया कि हमारे मुहल्ले में मुसअब या कोई और मुसलमान न आने पाये और अगर कोई आया, तो उसे गिरफ्तार कर के कत्ल कर दिया जाएगा।
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उसैद बिन हुजैर का ईमान लाना
एक दिन मुसअब और असद बिन जुरारा साद बिन मुबाज के मुहल्ले में जा पहुंचे। उस मुहल्ले में एक बड़ा कुंआं था, दोनों वहीं जा कर बैठे और मुसअब लोगों को तब्लीग करने लगे।
साद बिन मुआज को जब यह मालूम हुआ, तो उन्हें सख्त नागवर गुजरा। उन्हों ने उसैद को बुला कर कहा –
देखो उसैद! मुसअब व असद की दलेरी बहुत बढ़ गयी है। उन्हों ने यसरब (मदीने) के तमाम लोगों को बहका कर अपने मजहब में दाखिल कर लिया है, अब हमारे मुहल्ले वालों को बहकाने आये हैं। ये दोनों ऐसे हैं कि मेरे इम्तिनाई हुक्म की भी परवाह नहीं थी। क्या हमें इस जिल्लत और इन दोनों की इस दलेरी को बर्दाश्त कर लेना चाहिए?
कभी न करना चाहिए, उसैद ने कहा, यह तो बड़ी जिल्लत की बात है।
तुम सच कहते हो उसद ! देखो, असद मेरा खलेरा भाई है, इसलिए मैं उस का लिहाज करता हूं। तुम जाओ और दोनों को कुंएं पर से उठा दो और कह दो कि हमारे मुहल्ले में कभी न आयें। अगर फिरसे आयेंगे, तो हम उन लोगों को कत्ल कर डालेंगे।
उसैद अच्छा कह कर उठे और तलवार लेकर कुएं के पास पहुंचे। वहां बहुत से लोग खड़े थे, मुसअब कुछ तकरीर कर रहे थे और लोग खामोशी से सुन रहे थे। ये लोग उसी मुहल्ले के थे।
उसैद उन पर बहुत बिगड़े।
देखते-देखते सब अपने-अपने घरों को चले गये, एक आदमी भी वहां खड़ा न रहा। सिर्फ़ मुसमब और असद ही वहां रह गये।
उसद बढ कर दोनों के पास पहुंचे। चूंकि वह गुस्से में थे, इसलिए करीब पहुंचते ही कड़क कर बोले –
मूसअब ! तुम ने यसरब में आ कर एक भारी फ़ित्ना खड़ा कर दिया है। सारे मुहल्ले में तो बहकाते ही रहते हो, अब हमारे मुहल्ले में भी आ गये हो और यहां भी फ़ित्ना पैदा कर रहे हो। क्या तुम्हें मालूम नहीं कि हमारे सरदार साद बिन मुआज ने इस मुहल्ले में तुम्हारे दाखिले पर रोक लगा दी है? मुसबब ! इस बार तो हम माफ़ करते हैं, लेकिन आइंदा इधर का रुख न करना। अगर अब आया, तो समझ ले तेरा सर उड़ा दिया जाएगा।
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मुसमान बड़े इत्मीनान से उसैद की बातें सुनते रहे। जब वह खामोश हुए, तो उन्होंने फरमाया कि आप हमारी किस बात पर नाखुश हो कर हमें मुहल्ले से निकाल देना चाहते हैं, उसैद!
उसैद का गुस्सा और बढ़ गया, बोला, किस बात पर? नामाकूल आदमी! क्या तुझे खबर नहीं है? नहीं जानता तो सुन कि तू लोगों को बहका कर मुसलमान कर लेता है, इस लिए उठ और हमारे मुहल्ले से फ़ौरन निकल जा और असद! तुम्हारे लिए भी यही हुक्म है।
मुसअब ने कहा, हमें तुम्हारी बात मानने में कोई उज्र नहीं है? लेकिन क्या आप हम दोनों के पास बैठकर इत्मीनान से दो बातें सुन लेंगे?
उसैद ने कहा, कैसी दो बातें?
कोई लम्बी-चौड़ी बात नहीं, जो औरों से कहता हूं, वही आप से भी कहूंगा। बस ठंडे दिल व दिमाग से उसे सुन भर लीजिए, मुसअब ने कहा।
उसैद कुछ नर्म पड़े और तलवार का सहारा लेकर मुसअब के पास बैठ गये। बोले, सुनाओ क्या सुनाना चाहते हो!
मुसअब की तो मांगी मुराद भर आयी थी। उन्होंने नर्म लेहजे में कहना शुरू किया –
ऐ कबीला बनु जफ़र के सरदार! मक्का में अल्लाह की ओर से एक नबी भेजे गये हैं। उन्हें मुहम्मद (ﷺ) कहते हैं। उन पर अल्लाह ने एक किताब नाजिल फ़रमायी है, जिस का नाम कुरआन है। ऐ मेरे भाई! मैं और सारे मक्का वाले तुम्हारी तरह बुत पूजा करते थे, उसी को माबूद मानते थे, पर मुहम्मद (ﷺ) ने फ़रमाया और समझाया कि अपने हाथों से तराशे हुए बुत खुदा नहीं हो सकते। ये तो बोल नहीं सकते, हरकत भी नहीं कर सकते। खुदा तो वही हो सकता है, जिस ने कायनात के जरें-जरे को पैदा किया हो, जो सब कुछ जानता हो, देखता हो, सब को रोजी देता हो, जिस के हाथ में जिंदगी और मौत हो।
फिर मुसअब (र.अ) ने कुरआन की आयतें पढ़ीं।
उसैद चुप-चाप बैठे सुनते रहे। आयतों का असर उन के दिल पर होता रहा, यहां तक कि वह कांप उठे।
मुसअब के खामोश होते ही बोले, मुसअब ! कसम है उन माबूदों की जिन्हें मैं पूजता हूँ! यह कलाम इंसान का कलाम नहीं है। मैं उस खुदा पर जिस का यह कलाम है, ईमान लाया। मुसअब ! अब मुझे भी मुसलमान कर लीजिए।
मुसअब ने उसे फ़ौरन कलिमा पढ़ा कर मुसलमान कर लिया।
फिर उसैद (र.अ) बोले, एक आदमी और है। अगर वह किसी तरह से भी इमांन ले आये, तो सारा यसरब मुसलमान हो जाए।
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मुसअब ने पूछा, वह कौन है?
उसैद ने कहा, साद बिन मुआज , यसरब का मालिक।
अगर मैं उन के पास पहुंच जाऊं या किसी तरह से वह मेरे पास आ जायें, तो मुम्किन है कि वह भी मुसलमान हो जाएं, मुसबब ने कहा।
मुझे भी यही उम्मीद है कि कलामे इलाही की एक आयत सुनने के बाद वह जरूर इस्लाम कबूल कर लेंगे। मैं जा कर अभी उन्हें आप के पास भेजता हूं।
तुम जिस तरह भी मुम्किन हो, उन्हें कलामे पाक सुना देना। यकीन है कि वह भी मुसलमान हो जाएंगे।
मुनासिब है, आप उन्हें यहां भेज दीजिए, मुसअब ने कहा।
साद बिन मुआज और पूरा कबीला के इस्लाम की आगोश में
उसैद (र.अ) साद के पास पहुंचे, देखते ही उन्हों ने पूछा, क्यों उसैद! मुसअब और असद को निकाल आए?
नहीं, उसैद (र.अ) ने कहा, वे नहीं गये।
साद को गुस्सा आ गया, तलवार हाथ में ली और यह कहते हुए चले कि उन की इतनी हिम्मत ? कुएं के पास पहुंचते ही मुसअब और असद को मुखातब कर के सख्त लेहजे में कहा, तुम दोनों को इतनी जुर्रात हो गयी है कि मेरे मुहल्ले में आ कर मेरे कबीले के लोगों को बहकाना शुरू कर दिया। देखो, अभी तुम सब को इस घमंड की सजा देता हूं।
यह कहते ही बह मुसअब और असद पर झपटे। दोनों बड़े इत्मीनान से बैठे रहे, जैसे कुछ सुन ही न रहे हों।
साद को और गुस्सा आ गया, तलवार म्यान से खींच ली और चीखे, जिसे मौत आ गयी हो, उसे कौन बचा सकता है? होशियार हो जाओ।
मुसंअब ने बड़ी नर्मी से कहा, ऐ यसरब के मालिक ! आप हम दोनों पर इतने खफ़ा क्यों हो रहे हैं ?
उस ने गजबनाक हो कर कहा, क्यों खफा हो रहा हूं ? अभी मालूम हो जाएगा। बदबख्त इंसान ! मेरे क़बीले वालों को मुसलमान बना रहा है और कहता है, मैं खफ़ा क्यों हो रहा हूं ? तुम दोनों फ़ौरन यहां से निकल जाओ, नहीं तो अभी तलवार से सर कलम कर दूंगा।
मूसअब बोले, ऐ कौम के सरदार ! आप खफ़ा न हों, हम दोनों खुद ही चले जाएंगे। हम आप को नाराज नहीं करना चाहते, मगर एक बात कहना चाहता हूं।
क्या कहना चाहते हो? साद ने पूछा।
आप जरा मेरे पास बैठ तो जाएं, फिर जो मैं कहूं, ठंडे दिल से सुनें। मुसअब ने कहा।
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साद मुसअब (र.अ) के पास बैठ गये।
मुसअब ने बड़े नर्म अन्दाज में कहा,
मेरे भाई! आप मुझ से और भाई असद से इसलिए नाराज हैं कि हम सब मुसलमान हो गये हैं और दूसरे लोगों को भी इस्लाम की दावत दे रहे हैं। कभी आप ने सुना कि हम क्या कहते हैं और किस बात की तब्लीग करते हैं? मेरे, आपके और तमाम अरबों के बाप-दादा बुतपरस्त थे, हम उन्हें माबूद मानते थे, लेकिन ऐ बुजुर्ग और अक्लमन्द इंसान ! मक्का में मुहम्मद (ﷺ) ने एलान किया कि खुदा वह जात है, जिस ने दुनिया-जहान को पैदा किया है, इंसान को मिट्टी से बनाया है, सभी इन्सान उसके बन्दे हैं, इबादत के काबिल खुदा है, वह खुदा जो मुर्दो को जिंदा और जिदों को मुर्दा करता है। जो कलाम रसूलुल्लाह (ﷺ) पर नाजिल हुआ, वह उसी खुदा का है। फिर उस के बाद मुसअब (र.अ) ने अल्लाह का कलाम सुनाया।
साद बड़े ध्यान से अल्लाह का कलाम सुनते रहे। उन का बदन कांपने लगा था, आंखों से खौफ़ व हरास जाहिर हो रहा था, चेहरे पर रौब छा गया था। उन्हों ने जल्दी से कहा।
उफ़ ! कितना असरदार कलाम है, इस ने तो मेरा दिल खींच लिया, मेरा कल्ब रोशन हो गया। आंखों से गुमराही के तारीक परदे उठ गये। मुसअब ! मेरे मेहरबान मुसअब ! मुझे माफ़ कर दो। मैं ने तुम्हारी शान में गुस्ताखी की है।
यह कहते ही साद हाथ जोड़कर खड़े हो गये।
मुसअब ने उठ कर हाथ पकड़ कर अपने पास बिठा लिया।
फिर साद के कहने पर मुसअब ने साद को कलिमा पढ़ाया। साद मुसलमान हो गये।
साद (र.अ) ने मुसअब को खिताब करते हुए कहा, मुसअब ! अब तुम मेरे गरीबखाने पर चलो। वहीं चल कर मैं अब अपने पूरे कबीले को इस्लाम की तालीम दूंगा और मुझे यकीन है कि मेरा क़बीला पूरे का पूरा इस्लाम
कुबूल कर लेगा।
मुसअब ने साद (र.अ) का शुक्रिया अदा किया और उन के साथ उन के मकान पर आ गये।
पूरा कबीला जमा कर लिया गया।
साद ने बुलन्द आवाज से लोगों से पूछा, ऐ क़बीले वालो!
तुम मेरे बारे में क्या ख्याल रखते हो?
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हर तरफ़ से आवाजें आयीं, आप हमारे सरदार हैं।
साद ने कहा, ऐ मेरे कबीले के लोगो! तुम जानते हो कि मैं बुतपरस्त था, मुझे इस्लाम और मुसलमानों से नफरत थी। मैं ने एलान कर दिया था कि मेरे कबीले का जो आदमी मुसलमान बनेगा, उसे सस्त सजा दूंगा। अब सुनो और गौर से सुनो ! मैं मुसलमान हो गया हूं। मैं ने इस्लाम को खूब अच्छी तरह समझ लिया है, उस से अच्छा कोई मजहब नहीं है। मैं चाहता हूं कि तुम सब भी मुसलमान हो जाओ।
लेकिन हम तो इस्लाम के बारे में कुछ नहीं जानते, हम कैसे इस्लाम कुबूल करें? कुछ आवाजें आयीं।
साद (र.अ) ने कहा, तुम ने यह अक्लमंदी की बात की है। तुम्हें मुसअब (ﷺ) बताएंगे कि इस्लाम क्या है ? खामोशी से तकरीर सुनो।
तमाम मज्मा खामोश हो गया।
मुसअब (र.अ) ने ऊंची आवाज से तकरीर की। इस्लाम के बारे में तफ्सील बतायी। लोग खामोशी से सुनते रहे।
जब मुसअब चुप रहे, तो साद ने पूछा, अब बताओ, तुम इस्लाम कुबूल करने पर तैयार हो?
सब ने कहा, बिल्कुल तैयार हैं, इस तरह सब मुसलमान हो गए।
मुसअब (र.अ) यसरब में सन १२ नबवी में आये थे। दस महीने की थोड़ी सी मुद्दत में बड़ी आबादी को मुसलमान कर लिया था।
अब जब हज का जमाना आया, तो हजरत मुसअब (र.अ) के साथ हज के लिए बहुत से लोग मक्का चलने को तैयार हो गए। इन की कुल तायदाद ७४ थी, जिन में दो औरतें भी शामिल थीं।
To be continued …
इंशा अल्लाह सीरीज का अगला हिस्सा कल पोस्ट किया जायेगा ….
आप हज़रात से इल्तेजा है इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करे और अपनी राय भी दे …
Mash Allah Hindi main poora waqia parhker iman taaza hogaya.Allah iska aapko bahot barha badla Ata farmaye.