Contents
- 1. रोज़ा कुरआने मजीद की रोशनी में
- 2. रोजे की फजीलत
- 3. रमज़ान की अहमियत
- 4. चांद देखने के मसाइल
- 5. रोज़े की नीयत के मसाइल
- 6. सहरी व इफ्तारी के मसाइल
- 7. रोजे की रुख्सत (छूट) के मसाइल
- 8. कज़ा रोज़ों के मसाइल
- 9. वह बाते जिन से रोज़ा मकरूह नहीं होता
- 10. वह बातें जो रोजे की हालत में मना हैं।
- 11. रोज़े को खराब करने या तोड़ने वाली बातें।
- 12. नफली रोजे
- 13. ममनूअ और मकरूह रोजे
۞ बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम ۞
“अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान बहुत रहम वाला है।”
सब तआरीफे अल्लाह तअला के लिए हैं जो सारे जहांनो का पालने वाला है, हम उसी की ताअरीफ करते है और उसी से मदद चाहते हैं।
अल्लाह की बेशुमार रहमतें, बरकतें और सलामती नाज़िल हो मुहम्मद सल्लललाहु अलैहि वसल्लम पर और आप की आल व औलाद व असहाब रजि. पर। अम्मा बअद!
इस्लाम की पांच बुनियादों में से एक रोजा है। शरई इस्तेलाह में “रोजा सुबह सादिक से सूरज के गुरूब होने तक खाने पीने, बीवी से जमाअ करने और गुनाहों से बाज रहने का नाम है।”
1. रोज़ा कुरआने मजीद की रोशनी में
- “ऐ लोगों! जो ईमान लाये हो । तुम पर रोजे फर्ज कर दिये गये। जिस तरह तुम से पहले लोगों पर फर्ज किये गये थे। ताकि तुम परहेज़ गार बन जाओं” (सुरह बकरा-आयत-183)
- रमजान वह महीना है जिसमें कुरआन नाजिल किया गया । तुम में से जो शख्स इस महीने को पाये तो उसे चाहिये कि रोजा रखें । हां अगर कोई बीमार हो या मुसाफिर तो उसे दूसरे दिनों में यह गिनती पूरी करना चाहिये । (सुरह बकरा-आयत-185)
2. रोजे की फजीलत
- जब रमजान आता हे तो आसमान के दरवाजे खोल दिये जाते है, जहन्नम के दरवाजे बन्द कर दिये जाते है ओर शयातीन जन्जीरो से जकड़ दिये जाते है। (लुलु वर मरजान-65 2, अबु हुरैरा रजि.)
- रमजान मे उमरा करने से हज का सवाब मिलता है। (मुस्लिम-225 5-56 इब्ने अब्बास रजि.)
- रमज़ान में सवाब की नीयत से रोजा रखने ओर कयाम करने वाले के गुजरे सब गुनाह माफ कर दिये जाते है। (बुखारी-1901, इब्ने माजा-1641 अबु हुरेरा रजि.)
- रोज़ा कयामत के दिन रोजेदार की सिफारिश करेगा । (मुसनद अहमद, तबरानी, इबने अम्र बिन आस रजि.)
- (क) रोजे का अज्र (बदला) बे हिसाब है।
(ख) रोजेदार की मुंह की बू कयामत के दिन अल्लाह तआला को मुश्क की खुशबू से भी ज्यादा पसंद होगी। (बुखारी-1894 मुस्लिम-1997-98 अबु हुरैरा रजि.)
- ‘जन्नत में रयान‘ नाम का एक दरवाज़ा है। कयामत के दिन उस दरवाजे से सिर्फ रोजेदार जन्नत में दाखिल होगे। (मुस्लिम, बुखारी-1896, इब्ने माजा-1640, सहल बिन सअद रजि.)
- रमजान का पूरा महीना अल्लाह तआला हर रात में लोगों को जहन्नम से आजाद करता है। (इब्ने माजा-1642 अबु हुरेरा रजि.)
- अल्लाह तआला हर रोज़ इफ्तार के वक्त लोगों को जहन्नम से आजाद करता है। (इब्ने माजा-1643 जाबिर रजि.)
3. रमज़ान की अहमियत
- रमजान के महीने में एक रात ऐसी हे जो हजार महीनों से बेहतर है। जो शख्स इस (कि सआदत हासिल करने) से मेहरूम रहा, वह हर भलाई से मेहरूम रहा। (इब्ने माजा-1644 अनस रजि.)
- उस शख्स के लिए हलाकत है जिसने रमजान का महीना पाया ओर अपने गुनाहों की बख्शिश ओर माफी ना पा सका। (मुसतदरक हाकिम-काअब बिन उजरा रजि.)
- कोई शख्स अगर बगैर शरई उज्र के रमजान का रोज़ा छोड़ दे या तोड़ दे तो जिन्दगी भर के रोजे भी उसकी भरपाई नहीं कर सकते। (अबु दाऊद-2396 जईफ, तिर्मिज़ी-621, अबु हुरैरा रजि.)
4. चांद देखने के मसाइल
- चांद देखे बिना रमजान के रोजे शुरू ना करो ओर चांद देखे बगैर रमजान खत्म ना करो। अगर मतला अब आलूद हो तो महीने के 30 दिन पूरे कर लो। (मुस्लिम 1842, बुखारी 1906, इब्ने माजा-1654 इब्ने उमर रजि.)
- एक मुसलमान की गवाही पर रोजे शुरू किये जा सकते है। (अबु दाऊद-2342 इब्ने उमर रजि., इब्ने माजा 165 2 इब्ने अब्बास रजि.)
- शव्वाल (ईद) का चांद देखने में दो आदमियों की गवाही होना चाहिये। (अबु दाऊद 2339 रबीअ बिन हिराश रजि.)
- रमजान की पहली तारीख के चांद के बजाहिर छोटा या बड़ा दिखने से शक में नहीं पड़ना चाहिये। (मुस्लिम 1859 अबु अल बख़तरी रजि)
- नया चांद देखने पर यह दुआ पढ़ना मसनून है “अल्ला हुम्मा अहिल्लहु अलैना बिल्युम्नि वल ईमानि वस्सलामति वल इस्लाम! रब्बि व रब्बु कल्लाह।” यानि ऐ अल्लाह! हम पर यह चांद अम्न, ईमान, सलामती ओर इस्लाम के साथ तुलूअ फरमा। (ऐ चांद मेरा और तेरा रब अल्लाह है।) (तिर्मिजी, मिश्कात-23 1 5 तल्हा बिन उबैदुल्लाह रजि.)
- (क) चांद देख कर रोजा शुरू करने और चांद देखकर खत्म करने के लिए उस वक्त हाज़िर इलाके या मुल्क का लिहाज़ रखना चाहिये।
(ख) रमजान में एक मुल्क से दुसरे मुल्क सफर करने पर अगर मुसाफिर के रोजों की तादाद हाजिर इलाके में माहे रमजान के रोजों की तादाद से ज्यादा होती हो तो जाइद दिनों के रोजे छोड़ देना चाहिये या नफिल रोजे की नीयत से रखना चाहिये और अगर तादाद कम बनती हो तो ईद के बाद रोजों की गिनती पूरी करनी चाहिये। (मुस्लिम 1858 अबु दाऊद 2332 तिर्मिजी 596 इब्ने अब्बास रजि.) - अब्र (बादल) की वजह से शव्वाल (ईद) का चांद दिखाई ना दे और रोजा रख लेने के बाद मालूम हो जाये कि चांद नजर आ चुका है तो रोजा खोल देना चाहिये। (अबु दाऊद-233 9 रबिअ बिन हिराश रजि.)
5. रोज़े की नीयत के मसाइल
- आमाल के अज्र व सवाब का दारोमदार नीयत पर है। (बुखारी-01 उमर रजि.)
- जिसने दिखावे का रोजा रखा उसने शिर्क किया। (मुसनद अहमद-शद्दाद बिन औस रजि.)
- जिसने फज़र से पहले फ़र्ज़ रोजे की नीयत ना की उसका रोजा नहीं। (अबु दाऊद-2454 तिर्मिजी-628 हफ़सा बिनते उमर रजि.)
(क) नफली रोजे की नीयत दिन में जवाल से पहले किसी भी वक्त की जा सकती है।
(ख) नफली रोजा किसी भी वक्त और किसी भी वजह से तोड़ा जा सकता है। (मुस्लिम-2004-05 अबु दाऊद-2455 आयशा रजि.) - रोजे की नीयत दिल के इरादे से है। मुरव्वजा अलफाज “व बि सौमि गदिन नवैतु मिन शहरि रमज़ान“ सुन्नते रसूल सल्ल. से साबित नहीं.
6. सहरी व इफ्तारी के मसाइल
- सहरी खाओं क्योकि सहरी खाने में बरकत है। (लुलुवल मरजान-665, इबने माजा-1692 अनस रजि.)
- हमारे और अहले किताब के रोजे में फर्क सहरी के खाने का है। (अबु दाऊद-2343 नसाई-21 70 अम्र इब्ने आस रजि.)
- सहरी देर से खाना और इफ्तार में जल्दी करना अखलाके नबुवत से है। (तबरानी-अबुदर्दा रजि.)
- सहरी खाते अगर अजान हो जाये तो खाना फौरन छोड़ देने के बजाय जल्दी-जल्दी खा लेना चाहिये। (अबुदाऊद-2350 अबुहुरैरा रजि.)
- रोज़ा इफ्तार करने के लिए सूरज का गुरूब होना शर्त है। (बुखारी-1954 मुस्लिम-1877 अबु दाऊद-2351 उमर रजि.)
- जब तक लोग इफ्तार में जल्दी करेंगे उस वक्त तक खैर व भलाई पर रहेंगे। (लुलुवल मर्जान-667 सहल बिन सअद रजि.)
- ताजा खजूर, छुवारा या पानी से रोजा इफ्तार करना मसनून है। (तिर्मिजी-अबु दाऊद-2356 अनस रजि.)
- नमक से रोजा इफ्तार करना सुन्नत से साबित नहीं।
- रोजे के इफ्तार पर यह दुआ पढ़ना साबित है। “जहब्बज़्जमउ वन्तलल्तिल उरूक व सब तल अज्रू इन्शा अल्लाह” यानि “प्यास खत्म हो गई, रगें तर हो गई और रोजे का सवाब इन्शा अल्लाह पक्का हो गया। (अबू दाऊद-2357-इब्ने उमर रजि.)
नोट: इफ्तार के वक्त यह दुआ “अल्लाहुम्मा लका सुन्तु (व बिका आमनतु व इलैका तवक्कलत) व अला रिज्किका अफतरतु” (अबुदाऊद-2358) ना पढ़ना बेहतर है। इसलिए के ये अलफाज हदीसे रसूल सल्ल. में ज़्यादती है। और बाकी हदीस भी सनदन जईफ है। - जिसने रोजेदार का रोजा इफ्तार करवाया उसे भी उतना ही सवाब मिलेगा जितना सवाब रोजेदार के लिए होगा और रोजेदार के सवाब (अज्र) से कोई चीज़ कम ना होगी। (इब्ने माजा-1746 तिर्मिजी-700 जेद बिन खालिद रजि.)
7. रोजे की रुख्सत (छूट) के मसाइल
- सफर में रोजा रखना और छोड़ना दोनो जाइज है। (लुलुवल मर्जान-684 आयशा रजि.)
नबी सल्ल. के साथ सफर में कुछ सहाबा ने (रमजान का) रोजा रखा और कुछ ने नहीं रखा और किसी ने किसी पर ऐतराज नहीं किया (मुस्लिम-1923 अबु सईद खुदरी रजि.)
- मुसाफिर को रोजा बाद में रखने और आधी नमाज़ की छूट है। और हामिला और दूध पिलाने वाली औरत को भी रोजा बाद में रखने की रूख्सत है। (अबुदाऊद-2408 इब्ने माज़ा-1667 अनस कअबी रजि.)
- सफर या जिहाद में रोजा तर्क किया जा सकता है और अगर रखा हो तो तोड़ा जा सकता है। उसकी सिर्फ कजा होगी, कफ्फारा नहीं। रमजान के महीने में एक सफर के दौरान आप सल्ल. ने रोजा तोड़ दिया और लोगो (सहाबा) ने भी तोड़ दिया। (लुलु वल मर्जान-680 इब्ने अब्बास रजि. मुसिलम-1913)
- बुढापा या ऐसी बीमारी जिसके खत्म होने की उम्मीद ना हो, कि वजह से रोजा रखने के बजाय फिदया दिया जा सकता है। एक रोजे का फिदया एक मिस्कीन को 2 वक्त का खाना खिलाना है और उस पर कोई कजा नहीं। (मुसतदरक हाकिम, दार कत्नी इबने अब्बास रजि)
- बीमारी, सफर, बुढ़ापा, जिहाद और औरत के मामले में हमल और दूध पिलाने के दिनों में अगर कोई रोजा रख ले ओर रोजा पूरा ना कर सके या तोड़ ले तो ऐसी सूरत में सिर्फ कजा होगी। (लुलु वल मर्जान-682 नसाई-23 19 अनस बिन मालिक रजि.
8. कज़ा रोज़ों के मसाइल
- रमजान के रोजों की कजा आइन्दा रमजान से पहले किसी वक्त भी अदा की जा सकती है। (लुलु वल मर्जान-70 3 आयशा रजि.)
- फर्ज रोजों की कजा अलग-अलग या लगातार दोनों तरह जाइज है। (दार कत्नी-आयशा रजि.)
- मरने वाले के कजा रोजे उसके वारिस को रखना चाहिये। (लुलु वल मर्जान-704 मुस्लिम 1987 आयशा रजि.)
- नफली रोजे की कजा अदा करना वाजिब नहीं। (अबु दाऊद-2456 उम्मे हानी रजि.)
- अगर किसी ने बादल की वजह से रोजा वक्त से पहले इफ्तार कर लिया लेकिन बाद में मालूम हुवा कि सूरज गुरूब नहीं हुआ था तो कजा वाजिब होगी। इसी तरह सहरी खाई और बाद में यकीन हो गया कि सुबह सादिक हो चुकी थी। ऐसी हालत में भी कजा वाजिब होगी, कफ्फारा नहीं। (बुखारी-1959 इबने माजा-1674 अस्मा बिन्ते अबु बकर रजि.)
9. वह बाते जिन से रोज़ा मकरूह नहीं होता
- भूल-चूक से खा-पी-लेने से। (बुखारी-1933, मुस्लिम 2006 अबु दाऊद-2398, अबु हुरैरा रजि.)
- मिसवाक करने से। (इब्ने माजा-1677 अबुदाऊद-2364 आयशा रजि.)
- गर्मी की शिद्दत में सर पर पानी बहाने (नहाने) से। (अबु दाऊद-2365, बुखारी, जिल्द 3 सफा 1 89 इब्ने उमर रजि.)
- मजी खारिज होने या एहतेलाम होने से। (अबु दाऊद-2376 इब्ने अब्बास रजि. तिर्मिजी-618 अबु सईद रजि.)
- सर में तेल डालने, कंघी करने या आंखों में सुरमा लगाने से। (इब्ने माजा-1678-आईशा रजि., तिर्मिजी-624-अनस रजि.)
- हंडिया का जायेका चखने से। (बुखारी-जिल्द 3 सफा-189, इब्ने अब्बास रजि.)
- मक्खी हलक में चले जाने या उसे बाहर निकालने से। (बुखारी-जिल्द 3 सफा-191, हसन बिन अली रजि.)
- थूक निगलने से। (अबुदाऊद-2386 आईशा रजि.)
- नाक में दवा डालने से। (बुखारी-जिल्द 3 सफा-192-हसन रजि.)
- अगर किसी पर गुसल फर्ज हो तो वह सहरी खा कर नमाजे फज़र से पहले गुसल कर सकता है। (लुलु वल मर्जान-677, अबुदाऊद-2388-आईशा रजि.)
- बीवी का बोसा लेने से। (बशर्ते कि जजबात पर काबू हो) (लुलु वल मर्जान-676, अबुदाऊद-2382, तिर्मिज़ी-625-आईशा रजि.)
- खुद ब खुद कय (उलटी) आने से (तिर्मिज़ी-618-अबु सईद खुदरी रजि.)
10. वह बातें जो रोजे की हालत में मना हैं।
- गीबत करना, झूट बोलना, गाली देना और लड़ाई-झगड़ा करना। (बुखारी-1903, अबुदाऊद-2362-अबु हुरैरा रजि.)
- बेहुदा, फहश और जहालत के काम या बातें करना। (लुलु वल मर्जान-706, अबुदाऊद-2363-अबु हुरैरा रजि.)
- (जो अपनी शहवत पर काबू न रख पाता हो, उसके लिए) बीवी से बगलगीर होना या बोसा लेना। (बुखारी-1927-आईशा रजि., अबुदाऊद-2387-अबु हुरैरा रजि.)
- कुल्ली करते वक्त नाक में इस तरह पानी डालना कि हलक तक पहुंच जाए। (तिर्मिजी-68 3, अबुदाऊद-लकीत बिन सबरह रजि.)
11. रोज़े को खराब करने या तोड़ने वाली बातें।
- (क) रोजे की हालत में जमाअ (हमबिस्तरी) करना। इस पर कफ्फारा भी है और कजा भी।
(ख) रोजे का कफ्फारा एक गुलाम आजाद करना, या दो माह के लगातार रोजे रखना या साठ मोहताजों को खाना खिलाना है। (लुलु वल मर्जान-678, अबुदाऊद-2390-अबु हुरैरा रजि.)
- कसदन कय (उलटी) करना। इस से रोजा टूट जाता है और कजा वाजिब है। (अबु दाऊद-2380, इब्ने माजा-1676 अबु हुरैरा रजि.)
- हैज (माहवारी) या निफास का शुरू हो जाना। रोजे की कजा है, नमाज की नहीं। (बुखारी-1951-अबु सईद रजि., अबु अल जनाद रह.)
12. नफली रोजे
- (रमजान के रोजो के साथ) हर साल माहे शव्वाल में 6 रोजे रखने का सवाब उम्र भर रोजे रखने के बराबर है। (मुस्लिम-2040, अबुदाऊद-2433,इब्ने माजा-1716, अबु अय्युब अन्सारी)
- हमेशा अय्यामे बैद (चांद की 13-14-15 तारीख) के रोजे रखने से उम्र भर के रोजों का सवाब मिलता है। (मुस्लिम-2033- अबु दाऊद-2449 इब्ने माजा1707-अबु कतादा रजि.)
- (क) सफ़र में रोजा रखना जाइज है। (अबुदाऊद-2402-आईशा रजि.)
(ख) सफर में रोजा छोड़ना जाइज है। (अबु दाऊद-2403-हमजा बिन उमर सलमी रजि.)
(ग) सफर में रोजा रखना और न रखना दोनो जाइज है। (लुलु वल मर्जान-684-आईशा रजि., 685’अबु दर्दा रजि.)
- जिहाद के सफर में नफली रोजा रखने वाले को अल्लाह तआला 70 साल की मुसाफत के बराबर जहन्नम से दूर कर देते हैं। (लुलु वल मर्जान-709, इब्ने माजा-1717-अबु सईद खुदरी रजि.)
- सोमवार और गुरूवार (पीर और जुमेरात) को रोज़ा रखना आप सल्ल. को पसन्द था। (अबुदाऊद-2436, उसामा बि जैद रजि., तिर्मिजी-644-अबु हुरैरा रजि.)
- यौमे अरफा (9 जिल्हिजा) का रोजा रखने से अगले और पिछले एक साल के सगीरा गुनाह माफ हो जाते हैं। जब कि यौमे आशूरा (10 मुहर्रम) का रोजा रखने से गुजरे एक साल के सगीरा (छोटे) गुनाह माफ हो जाते हैं। (मुस्लिम-20 33-अबुकतादा रजि.)
- एक दिन छोड़कर दूसरे दिन रोजा रखना सबसे अफजल रोजा है। (लुलु वल मर्जान -714,अबु दाऊद-2427,2448-इब्ने उम्र बिन आस रजि.)
- रमजान के बाद सब से अफजल रोजे माहे मुहर्रम के रोजे हैं। (मुस्लिम-20 38,अबु दाऊद-2429, अबु हुरैरा रजि.)
- जिल्हिज्जा के 1 से 9 तारीख के रोजे रखना मुस्तहब है। (तिर्मिजी-653, आईशा रजि.)
- हर माह तीन रोजे रखना मुस्तहब है। (तिर्मिज़ी-660-आईशा रजि., अबुदाऊद2449-कतादा बिन मुलहान रजि.)
- हर माह के पहले सोमवार और पहली दो जुमेरातों के रोजा रखना मुस्तहब है। (नसाई-2419, अबु दाऊद-2451 -हफ्सा रजि.)
- नफली रोजे की नीयत दिन में जवाल से पहले किसी वक्त भी की जा सकती है बशर्त कि कुछ खाया-पिया न हो। (अबु दाऊद-2455, मुस्लिम-2004,05, आईशा रजि.)
13. ममनूअ और मकरूह रोजे
- ईदुल फितर और ईदुल जुहा के दिन रोजा रखना मना है। (लुलु वल मर्जान-697, अबु दाऊद-2416-उमर रजि.)
- सिर्फ जुमे के दिन रोजा रखना मकरूह है। अलबत्ता अगर कोई शख्स रोजे रखने का आदी हो और उसमें जुमा आ जाए तो फिर जाइज़ है। (लुलु वल मर्जान-701 इब्ने माजा-1 723-अबु हुरैरा रजि.)
- सौमे विसाल (यानि शाम के वक्त रोजा इफ्तार न करना और बिना कुछ खाये-पिये अगला रोजा शुरू कर देना) मकरूह है। (लुलु वल मर्जान-672-अबु हुरैरा रजि.)
- लगातार रोजे रखना मना है। इसलिए कि “जिसने लगातार रोजे रखे, उसका कोई रोजा नहीं। (लुलु वल मर्जान-71, 4-अब्दुल्लाह बिन अम्र रजि.)
- (क) अय्यामे तश्रीक (11-12-13 जिल्हज्ज) के रोजे रखना मना है। (मुस्लिम 1974-75, अबु दाऊद-2419-उक्बा बिन आमिर रजि)
(ख) अलबत्ता जो हाजी कुर्बानी न दे सके वह ‘मिना’ में इन दिनों में रोजे रख सकता है। (बुखारी-1997-98-आईशा व इब्ने उमर रजि.) - हाजी को अरफात में 9 जिल्हज्जा का रोजा रखना मना है। (लुलु वल मर्जान-687, तिर्मिजी-647 मैमूना रजि.)
- निस्फ शअबान के बाद रोजे नहीं रखना चाहिये। (अबुदाऊद-2337, तिर्मिजी-635 -अबु हुरैरा रजि.)
- औरत का अपने शौहर की इजाजत के बिना नफली रोजे रखना मना है। (बुखारी 51 92, अबु दाऊद-2458-अबु हुरैरा रजि.)
- सिर्फ आशूरा (10 मुहर्रम) का रोजा रखना मकरूह है। 9 व 10 या 10 और 11 मुहर्रम के रोजे रखना चाहिये। (मुस्लिम-1963-64-इब्ने अब्बास रजि.)
- सिर्फ शनिवार (हफ्ते) के दिन नफली रोजा रखना मकरूह है। (इब्ने माजा-1726-अब्दुल्ला बिन बसर रजि.)
- शक के दिन का रोजा रखना मकरूह है। (नसाई-2194-अबु हुरैरा रजि., तिर्मिजी-589, अम्मार रजि.)
- आशूरा का रोजा रखना और न रखना दोनों जाइज है। (तिर्मिजी-650–आईशा रजि.)
अहले इल्म हजरात से गुजारिश है कि अगर कहीं कमी या गल्ती पाये तो जरूर हमारी इस्लाह फरमाएं। और आप हजरात से अपील है अगर आप हमारी इसे कोशिश से सहमत हैं तो इसे आम करने में हमारे साथ तआवुन करे।
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