हज़रत जैद बिन अरकम (र.अ) फर्माते हैं :
(शुरू इस्लाम में) हम में से बाज़ अपने बाज़ में खड़े शख्स से नमाज की हालत में बात कर लिया करता था,
फिर यह आयत नाजिल हुई:
तर्जमाः अल्लाह के लिये खामोशी के साथ खड़े रहो (यानी बातें न करो)।
फिर हमें खामोश रहने का हुक्म दे दिया गया और बात करने से रोक दिया गया।
फायदा: नमाज़ में बातचीत न करना और खामोश रहना जरूरी है।
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