इब्न अल हैथम [965ई -1040ई]
इराक के रहने वाले यह वो शख्स है जिन्हे हम कह सकते है “फादर ऑफ़ मॉडर्न ऑप्टिक्स”।
– ऑप्टिक्स यानी चश्मे जो हम लगा रहे है, कैमरे जो चल रहे है, तमाम चीज़ों के ये बानी (फाउंडर) कहलाते है!
– इसलिए के यह पहले थे जिन्होंने सबसे पहला कैमरा बनाया था “पिन-होल कैमरा”
इन्होने यह इजाद किया के रौशनी सीधी चलती है, टेढ़ा-मेढ़ा नहीं चलती, ये इन्काशाफ़त इन्होने ही किया, की रौशनी जब सीधा चलती है और जब एक छोटे सुराख़ की तरफ जाती है तो उसमे जा कर वो उलटी होती है
– मतलब अगर रौशनी किसी सुराख़ में से जाएगी तो उधर अक्स उल्टा बनाएगी और इन्होने इनकी इसी थ्योरी पर पहली बार “पिनहोल कैमरा’ बनाया।
ये एक चादर लेकर एक कमरा बनाते थे जो अँधेरे में होता था पूरा और इसमें एक बारीक़ सुराख़ करते थे
– उस सुराख़ से जब रौशनी आती तो सामने की चीज़ों का अक्स दीवार पर उल्टा पड़ता एक इमेज बनती,
– फोटो बनती सामने जिसे “रिफ्लेक्शन ओन दा ऑप्टिक्स” कहा जाता है,
– तो इसी इन्काशाफ़त के तहत आँखे कैसे देखती है ये भी फार्मूला ढूंढ निकाला।
और उसी थ्योरी से इन्होने “ऑप्टिक्स” ईजाद किया जिसका आज हम सब बेहिसाब फायदा उठा रहे है।
– जैसे की चश्मे हम सब लगते है ना !! इब्न-अल-हेथम को सवाब पहुंचता होगा क्यूंकि इन्होने ही इजाद किया था इस चीज़ को!
– की आँख कैसे काम करती और अगर कमज़ोर हो जाए तो कैसे इन्हे शीशे के ज़रये हिसाब में लाया जाए।
इसी तरह कैमरे की इजाद भी इन्होने की और कैमरा लफ्ज़ खुद अरबी ज़ुबान से आता है
– “अल-कमरा” जिसका माना होता है अँधेरे में एक छोटा सा कमरा।
– तो ये मुसलमानो की इजादाद है जिन चीज़ों को देख कर आज हम सिर्फ आहे भर सकते है।
– यह हमारे ही बाप-दादाओं की विरासत है जीसे इंसानो ने ले कर फायदा उठाया इन्काशाफ़त किये उसपर तजुर्बात किये।
और ये पहले शख्स थे “इब्न अल-हेथम” जिसने यह कहा की:
– “हर बार कोई बात कह दे तो सुनना ज़रूरी थोड़ी है! बल्की हम खुद तजुर्बात करेंगे”
– और तजुर्बात वो करते रहे और चैलेंज किया इन्होने पूरी “ग्रीक साइंस” को जो तजुर्बात नहीं करती थी ..
ग्रीक साइंस ये कहती थी की आँखों में से एक रौशनी निकलती है, जो चीज़ो को जा कर लगती है, जिससे हम देख पाते है, इसपर इब्न-अल-हेथम ने कहा की: “बेबुनियादी बात है ये” क्यूंकि अगर आँखों से रौशनी निकलती है और हम देख सकते है चीज़ों को तो रात को हम क्यों नहीं देख पाते?
दरहक़ीक़त रौशनी होती है जो चीज़ो से टकरा कर हमारी आँखों में जाती है ! ना की हमारे आँखों में से रौशनी निकलती है ,..
और नए-नए फ़लसफ़ात दिए, नयी-नयी सोच दी, हज़ार से ज्यादा नए-नए इजादाद दिए जिनसे इंसानियत को कई फायदे पहुँच रहे है आज भी।
इब्न अल हैथम के इसी जस्बे को देखकर सन २०१५ को उनेस्को ने “दी लाइट इयर” नाम से मनाया और इसका पनेनुएर इन्होने इब्न अल हैथम को दिया जिसमे वो मुख्तलिफ दुनिया में जा-जाकर इब्न-अल-हैथम ने क्या किया इंसानियत के लिए वो बताया।
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