एक अरसे तक मुनाफिको ने हमारे नबी (स.) की वफात के दिन १२ रब्बिउल अव्वल को जश्न मनाया, और ये तारीख १२ वफात के नाम से मशहूर हुई, इसी नाम से यहाँ स्कूल और सरकारी छुट्टिया दी जाती रही.
लेकिन जब उम्मत में शऊर आने लगा और लोग सवाल करने लगे के १२ वफात के नाम से जश्न कैसा तो फिर नाम बदल के मिलाद उन नबी, और अब ईद मिलादुन नबी रख दिया गया ,.. यकींन नहीं होता तो अपने घर के बुज्रुगो से पूछना के उन्होंने कभी बचपन में मिलाद का नाम सुना था ?
हाँ इसी बात की हम मुखालिफत करते है, के तुम्हारी जहालत का फायदा उठाकर मफादपरस्त लोग अपनी जेबे भरते है, तुमसे जहालत का इजहार करवा कर , तुम्हारी बद्दअख्लाखी से पुरे मोहल्ले और शहर को परेशांन करते है , तुम्हारी जहालत से लोगो को ये पैगाम दिलाते के यही इस्लाम है, यही आवारगी की ट्रेनिंग कुरान देता है, यही इनके नबी की तालीमात होगी,.. नौज़ुबिल्लाह! जबकि हकीकत तो ये है के तुमसे इस सादगी भरे दिन की तालीमात छुपायी गयी और तुम्हे अल्लाह और उसके रसूल(स.) की पाकीज़ा शरियत से महरूम रखा गया ,..
याद रहे! वफात के दिन जश्न मनाना ये मोमिनो की नहीं मुनाफिको की सुन्नत है ?,, सिर्फ अकल्मन्द इसपर गौर करे, और अपने नबी (सलाल्लाहू अलेही वसल्लम) के आमद की हकीकी ख़ुशी मनाये जैसा के अल्लाह ने कुरान में हमे हुक्म दिया (यानि इताअत करो अलाल्ह की और इताअत करो रसूलअल्लाह (स.) की) और दिन में नयी चीज़े इजाद करने से परहेज़ करो , ये बिद्दत है और दिन में हर बिद्दत गुमराही है ,.
इसके बावजूद भी कोई अपनी इस्लाह नहीं करना चाहता तो ये एक दिन का जश्न उसे मुबारक हो,. और हकीकी जश्न तो मोमिन मनाते है अपने नबी की तालीमात पर अमल करते हुए ..
१२ रबी उल अव्वल के दिन हकीकत में क्या पसेमंज़र था, ये दिन सहाबा पर कैसे गुजरा, और आज हम क्या कर रहे है इसकी तफ्सीली जानकारी के लिए आप इस लिंक पर क्लिक करे,.
⭐ 12 Rabi-Ul-Awwal (Milad-Un-Nabi) Ki Haqeeqat
बहरहाल! १२ वफात के दिन जश्न मनाना एक शराई बिद्दत है जो के सीधे रसूलअल्लाह (सलाल्लाहू अलैहि वसल्लम) की तालीमात में खयानत है, इसकी मुखालिफत करना हर मुसलमान पर लाजिम है, हमने तो अपनी जिम्मेदारी निभाई अब आपकी बारी.
जजाकल्लाहू खैरन कसीरा!