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Seerat un Nabi (ﷺ) Series: Part 7
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हजरत उमर रजि० के बांदी का इबरतनाक सब्र
हजरत उमर (अभी इस्लाम नहीं लाये थे) बड़े बहादुर और बहुत सख्त थे। आप की बहादुरी कहावत बन गयी थी। तमाम कबीले आप की बहादुरी के कायल थे। आप को मालूम हो चुका था कि आप की बांदी लुबनिया मुसलमान हो गयी। आप ने गुस्से में पूछा, बदबख्त बांदी ! किस लालच ने तुझे मुस्लमान होने पर मजबूर कर दिया।
आप उस मुस्लिमा को बाल पकड कर खींचते हुए बाहर लाये। लुबनिया पहले तो डरी, घबरा गयीं, पर जब उमर ने उन से पूछा कि कौन-सी लालच से वह मुसलमान हई है, तो उसे जोश आया। उस ने जवाब दिया,
उमर ! किसी लालच ने मुझे मुसलमान होने पर नहीं उभारा। हजरत मुहम्मद कोई मालदार नहीं हैं, बादशाह नहीं हैं, हाकिम नहीं हैं, उन के पास क्या रखा है ?
उमर ने बात काटते हुए कहा, फिर तू मुसलमान क्यों हुई? लुबनिया ने कहा, इसलिए कि इस्लाम सिर्फ एक खुदा की इबादत करना सिखाता है, बुतों की पूजा करने से मना करता है।
उमर ने गजबनाक हो कर कहा, बेवकूफ़ ! ख़याली खुदा को पूजती है? कमबख्त ! इस्लाम को छोड़ दे।
लुबनिया ने आजिजी से कहा, मेरे आका ! यह नामुम्किन है। .
हजरत उमर को गुस्सा आ गया। उन्होंने लुबनिया को मारना शुरू कर दिया। एक कमजोर औरत एक ताक़तवर मर्द की मार कसे सह पाती। लुबनिया तड़पने लगी। चेहरा पिला पड़ गया। लेकिन सब्र के साथ सहती रही, यहां तक कि उमर मारते-मारते थक गये।
आप एक तरफ़ बैठ गये और कनीज से बोलें, लुबनिया ! मैं ने तुझे रहम की वजह से नहीं छोड़ा, बल्कि इस वजह से छोड़ा है कि मैं थक गया हूं। जिंदगी चाहती है तो इस्लाम छोड़ दे।
लुबनिया ने बड़ी हिम्मत भरा जवाब दिया, ऐ उमर ! अगर तुम मेरी बोटी-बोटी उड़ा दो, हड्डियां तोड़ दो, तो भी यह नामुम्किन है कि इस्लाम छोड़ दू। मैं तुम से आजिजी के साथ कहती हूं कि तुम भी मुसलमान हो जाओ।
हजरत उमर को उस के जवाब पर बड़ा तैश आ गया। अगरचे वह बांदी को मारते-मारते थक गये थे, लेकिन उस की इस बात से उन को इतना तैश आया कि उन्हों ने फिर मारना शुरू किया।
जब लुबनिया पिट रही थीं, तो बहुत से लोग उन के चारों ओर जमा हो गये थे और हर आदमी उसे बुरा-भला कह रहा था, गालियां दे रहा था, लेकिन उन्हें न गालियों की परवाह थी, न मार की। वह बे-ज़बान जानवर की तरह पिटती जा रही थीं, यहां तक कि बेदम होकर गिर पड़ीं और गिरते ही बेहोश हो गयीं।
उस जगह काफ़ी मज्मा था। लोग बड़े जोश और ग़ज़ब में भरे हुए कनीज के पिटने का तमाशा देख रहे थे कि एक तरफ़ से शोर व गुल की आवाज आयी।.लोग उस तरफ़ देखने लगे। उधर से सैकड़ों आदमी एक काले रंग के आदमी को रस्सी में जकडे लाते हुए नजर आये। उस मज्मे ने पहली ही नजर में पहचान लिया। यह हजरत बिलाल रजि० थे।
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हजरत बिलाल रजि० पर ज़ुल्मो सितम की इंतेहा
हजरत बिलाल रजि० के साथ उन के दुश्मनों की भीड़ थी। सब के सब जोश व गजब से दीवाना बने हुए थे। वे हजरत बिलाल को घसीटे ला रहे थे। लात, मुक्के, घुसे, खजूरों की कमचियां, चमड़े के कोड़े मारते आ रहे थे।
कुछ लोग कंकर और पत्थर भी मार रहे थे। एक बड़ा आदमी भी उन के साथ था, यह उमैया बिन खलफ़ था। हजरत बिलाल रजि० उस के गुलाम थे।
वह आवाज दे दे कर कह रहा था, मारो। इस बडबख्त को, खूब मारो! यह मुसलमान हो गया है। यह बाग़ी और गद्दार है।
जब वह मारने के लिए कहता, तो लोग जोर-जोर से उन को मारते। हजरत बिलाल रजि० पिट रहे थे। आप का तमाम जिस्म जख्मी हो गया था। जख्मों से खून बह रहा था, मगर आप को न जख्मों की परवाह थी और न खून निकलने का डर, न आप के लबों पर आह थी, न किसी का शिकवा और न चेहरे से किसी किस्म का ग़म और दुख जाहिर हो रहा था।
जब आप को कोई पत्थर लगता या कोई घुसा या लात मारता, तो आप नारा लगाते, ‘अहद-अहद’ (अल्लाह एक है, अल्लाह एक है)।
जब आप अहद का नारा लगाते तो मक्का के कुफ्फ़ार सख्त ग़जबनाक होकर उस से पहले से ज्यादा तीरों और पत्थरों की बरसात करते। आप कहते मारो, मुझे मारो। मैं मुसलमान हूं, एक खुदा का परस्तार हूं। खुदा ने मुझे इस लिए पैदा किया है कि मैं उस का नाम लूं और पिटूं। खुदा की कसम ! इस पिटने में भी लज्जत है। मारो, मुझे मारते-मारते मार डालो।
इन वहशी, संगदिल, दरिदों में एक भी ऐसा न था, जो उन पर रहम खाता, बेरहम भेड़ियों से उन्हें बचाता।
धूप सख्त थी। रेत का जर्रा-जरां खूब जल रहा था, इतना कि उस पर नंगे पैर चलना मुश्किल था। ये लोग हजरत बिलाल को घसीटते हुए मक्का से बाहर ले गये। उन्हें तपती हुई रेत पर खड़ा किया, कपड़े उतार कर जिस्म को नंगा किया।
जिस से जितना मारा गया, मारा। फिर जलती हुई रेत पर लिटा दिया गया। एक बड़ा पत्थर आप के सीने पर रख दिया गया, ताकि आप करवट लेकर रेत की तपिश से राहत न पा सकें। आप चित पड़े हुए थे।
वजनी पत्थर, जिस को कई आदमियों ने उठा कर आप के सीने पर रख दिया था, सीने पर धरा हुआ था। आप हरकत न कर सकते थे। शरीर झुलस रहा था। प्यास की तेजी की वजह से जुबान और तालु में कांटे से जम गये थे। आप सब्र व शुक्र से ये तमाम सख्तियां बर्दाश्त कर रहे थे।
उफ़ भी न करते थे। अगर कभी नारा लगाते थे तो वही अहद-अहद पुकारते थे, यानी उस खुदा को जिस की अजमत व जलाल के कायल थे और मक्का के काफिरों को अगर जिद थी तो अहद के नाम से।
जब हजरत बिलाल अहद का नारा लगाते, अल्लाहु अहद कहते काफ़िरों के तन बदन में आग लग जाती। भड़क उठते, सीने पर हाथ रखे हुए पत्थर पर खड़े हो जाते।
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उमैया चीख कर कहता, बिलाल छोड़ दे इस कलिमे को, छोड़ दे इस्लाम को, तुम्हे आजाद कर दूंगा, तुझे दौलत दूंगा, तुम इज्जत के साथ, आराम के साथ, ऐश व इशरत के साथ जिंदगी बसर करना।
हजरत बिलाल रजि० कहते, उमैया! मैं जब तक जिंदा रहूंगा, अहद का नारा लगाऊंगा, इस्लाम मेरी नस-नस में बस गया है। जब तक रगों में खून जारी है, इस्लाम का दामन नहीं छोड़ेगा। कोई लालच मुझे इस्लाम से नहीं फेर सकता।
उमैया ग़ज़बनाक हो जाता। वह कुफ्फ़ार को इशारा करता और वे काफ़ी दिल खोल कर हजरत बिलाल को मारते।
हजरत सुहैब रजि० की आज़माइश
जिस वक्त हजरत बिलाल पर ये जुल्म हो रहे थे, उसी वक्त उन के करीब ही सुहैब रजि० भी रस्सियों से बंधे जकड़े पड़े थे। कुरैश उन को मारते थे। उन को चित लिटा कर उन के सीने पर दो पहलवान अरब उनके सीने पर खड़े थे और कह रहे थे कि सुहेब ! खुदा का नाम मत ले। जिंदगी चाहता है तो बुतों को माबूद मान, उनकी खुदाई का इकरार कर हैं और उन ही के आगे सर झुका।
हजरत सुहैब रजि० सख्त तकलीफ़ में थे, जलती हुई रेत पर पडे थे। नंगा बदन था।
गर्म रेत ने पूरे बदन में जलन पैदा कर दी थी, उन्हें मारा जा रहा था, उन के सीने पर दो आदमी खडे थे। पसलियां दबी जा रही थीं, मौत और जिंदगी का सवाल था, लेकिन इस्लाम ने उन के दिल को इतना सख्त कर दिया था कि बावजूद इतनी तक्लीफ़ के जुबान से यही निकलता था कि मरते दम तक इस्लाम न छोडं गा। तुम मारो, यहां तक मारो कि मर जाऊं।
कुरैश इस नारे को सुन कर और ज्यादा ग़जबनाक हुए और उन्हों ने उन के सर को पत्थरों से कुचलना शुरू किया।
आप का सर फट गया, खून का परनाला बह निकला। हवास खत्म हो गये, बेहोशी छा गयी।
आप ने बेहोशी की हालत में पानी मांगा। इन दरिदों में से एक भी ऐसा न था जो उस बेबस मुसलमान के सूखे गले में कुछ बूदे टपका देता। हजरत सुहैब बेदम हो गये। उन के चेहरे पर पीलापन छा गया। आंखें गहरी धंस गयीं, जिस्म बेहरकत हो गया, मगर सांस अभी तक आ रही थी।
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हजरत अबू फकीह रजि० पर कुफ़्फ़ारो का ज़ुल्म
जिस वक्त हजरत सुहैब बेहोश हुए, उसी वक्त मक्के की तरफ से शोर व गुल बुलन्द हुआ। जो लोग वहां जमा थे उन में हर एक ने उस तरफ़ नजर उठा-उठा कर देखा। उस तरफ़ से सौ-सौ कुफ्फार तीन मुसलमानों और एक औरत को घसीट कर लाते हुए नजर आए।
उन के आगे अबू जहल, अबू लहब, अब्बास, सफ़वाम, वलीद और बहुत से दुश्मने इस्लाम नजर आ रहे थे। उन मजलूम मुसलमानों में एक हजरत अबू फकीह रजि० थे।
हजरत अबू फकीह रजि० के पांव में रस्सी बंधी हुई थी। कुछ आदमी उस रस्सी को खींचते हुए लिए चले आ रहे थे। आप का नंगा जिस्म रेत पर घसिट रहा था। तमाम जिस्म छिल गया था। जख्मो पर रेत चिपक गया था, जो बहुत तक्लीफ़ दे रहा था।
जब इन शैतानों का गिरोह हजरत बिलाल रजि० के करीब आया, तो एक गोबरैला निकल कर रेंगा। उमैया उसी जगह खड़ा था। उस ने आवाज़ देकर मजाक में कहा, अबू फकीह ! देख तेरा खूदा यह है।
अबू फकीह रजि० ने सर उठा कर गोबरैला को देखा, कहा, उमैया ! मजाक न उड़ा, मेरा, मेरा दोनों का खुदा वही है, जिसने मुझे और तुझे और पूरी दुनिया को पैदा किया है।
उमैया ने बिगड़ कर कहा, बदबख्त! बुत हमारे माबूद हैं, वे माबूद, जिन को हम और हमारे बाप-दादा और सारा अरब पूजते चले आ रहे हैं।
हजरत अबू फ़कीह रजि० ने कहा, पत्थर के बुत अपने हाथों की बनायी हुई मूर्तियां हैं, वे कैसे खुदा बन जाएंगे, खुदा तो वह है, जिस के हाथ में जिंदगी और मौत होती है। जो पानी बरसाता है, हवा चलाता है, छिपी और खुली चीजों को जानता है। वह अकेला है और उस का कोई शरीक नहीं।
यह सुन कर उमैया को बड़ा गुस्सा आया। वह झुका और हजरत अबू फकीह रजि० का गला पकड़ कर इस जोर से घोंटा कि उन की आंखें उबल पड़ी। चेहरा तमतमा गया, सांस रुक गयी। सब ने समझ लिया कि हजरत अबू फकीह रजि० का दम निकल गया।
उमैया खड़ा हो गया। खड़े हो कर हजरत अबू फकीह को देखने लगा। उस के देखते ही देखते उन की सांस चलने लगी। चढ़ी हुई आंखें ठीक हो गयीं, थोड़ी देर के बाद उन्हों ने आंखें खोली।
कुफ्फार उन्हें देख कर सख्त हैरान हो गये। उमैया ने कहा, अबू फकीह ! तुम्हारा खुदा कौन है ?
हजरत अबू फकीह रजि० ने जवाब दिया, वह जिस ने मुझे और तुझे पैदा किया है। उमैया ने कहा, सख्तियां सहता है और खुदा के नाम की रट लगाये जाता है ?
हजरत अबू फकीह रजि० ने कहा, जब तक जिंदा रहूँगा, जब तक मेरे दम में दम बाकी रहेगा, खुदा का नाम लूंगा!
उमैया ने कहा, लोगो! अभी इस का दिमाग ठीक नहीं हुआ है। जरा यह भारी पत्थर इस के सीने पर रख दो।
एक बड़ा भारी पत्थर करीब ही पड़ा था। पांच-छ: मन का था। कई आदमियों ने मिल कर पत्थर उठाया और हजरत अबू फ़कीह रजि० के सीने पर रख दिया।
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पत्थर गर्म था, वजनी था और इतना भारी था कि जब अबू फ़कीह रजि० के सीने पर रखा गया, तो उन की जुबान निकल आयी, तड़प गये, हिल न सके और बेदम हो कर रह गये।
उमैया ने पूछा, अब बता कि खुदा कौन है ? हजरत अबू फकीह रजि० बोल न सकते थे। सांस निकली जा रही थी। हरकत करने की ताकत न थी। उन्होंने इशारे से बताया कि खुदा वह है, जो नीली छत पर है।
उमैया कुछ कहना चाहता था कि करीब ही से दिल हिला देने वाली चीख सुनायी दी। सब ने गरदनें उठा कर देखा। पहली ही नजर में दिखायी दे गया कि अबू जहल बरछी लिए खड़ा है और सुमैया के सीने से खून का फ़व्वारा उबल रहा है। अबू जहल कह रहा है। कमबख्त कनीज! क्यों जान देती है ? अब भी इकरार कर, हुबल सब से बड़ा खुदा है।
इस्लाम की पहली शोहदा हज़रत सुमैया रजि०
अगरचे हजरत सुमैया रजि० के सीने से खून का फ़व्वारा निकल रहा था, चेहरे पर पीलापन छा रहा था। इस पर भी उन की जुबान से एक खुदा की रट लग रही थी। उन्होंने कहा, हुबल खुदा नहीं, बूत है, पत्थर की मूर्ति है, खुदा वह है जो दुनिया को पैदा करने वाला है, आसमानों और जमीन का मालिक है। हर वक्त और हर जगह मौजूद रहता है।
अबू जहल का चेहरा गुस्से से बदल गया। उस ने चिल्लाकर कहा, खुदा की दीवानी ! देखू, तेरा खुदा तुझे मेरे हाथों से कैसे बचाता है ? बुला अपने खुदा को बुला, आवाज़ दे, पुकार कर आवाज दे।
हजरत सुमैया रजि० ने कहा, खुदा को चिल्ला कर पुकारो या धीरे से। वह देखता है, अपने नेक बन्दों का इम्तिहान लेता है, अबू जहल ! सोचो, क्या पत्थर की तस्वीरें, जिन्हें तुमने या तुम्हारे बाप-दादा ने खुद गढ़ा है क्या वो खुदा हो सकते हैं ? खुदा की कसम ! नहीं। खुदा वही है, जो पूरी दुनिया का पैदा करने वाला है। इज्जत व जिल्लत, मौत और जिंदगी उसी के हाथ में है।
अबू जहल गुस्से से पागल हो रहा था। उस ने ग़ज़बनाक़ होकर हजरत सुमैया रजि० को जोर से बरछी मारी। उन की जुबान से अल्लाह का प्यारा नाम निकला। वह लड़खड़ा कर गिरी। उन के चेहरे पर मुरदनी छा गई। आंखें बन्द होने लगीं। जिस्म में ‘कपकपी तारी हुई और अल्लाह को प्यारी हो गयीं।
हजरत सुमैया शहीद हो गयीं, लेकिन दरिंदों के दिल न पसीजे।
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माँ की लाश पर अम्मार बिन यासिर रजि० की तड़प
हजरत अम्मार रजि० ने जब यह मंजर देखा तो मां की मुहब्बत ने जोश मारा। वह लपक कर अपनी मुर्दा मां के पास बैठ गये, रोते हुए बोले, अम्मी ! मैं बड़ा बदबस्त हूं, तुम्हारी कोई खिदमत न कर सका। आह, मुझे भी अपने साथ ले चलती। उठो प्यारी अम्मी ! उठो। आह खुदा! खुदा का नाम लेना कुफ्फ़ार चुपचाप कैसे सुनते।
जब उन्हों ने खुदा का नाम लिया, तमाम कुफ्फार बिगड़ गये। सब उन पर बरस पड़े। उन्हें लात, घुसो और मुक्कों से मारना शुरू किया। इतना मारा कि वह बेहोश होकर अपनी मां की लाश पर गिर पड़े।
हज़रत यासिर रजि० की बेबसी
हजरत यासिर रजि० भी करीब ही खड़े थे। बीवी की मौत ने दुखी बना दिया था। बेटे के बेहोश होने से और बे-करार हो गये। उन्होंने कहा, बदबख्तो ! तुम में एक भी खुदा का बन्दा ऐसा नहीं है, जो इस बे-गुनाह और बे-जुबान मख्लूख पर रहम करे।
खुदा का नाम सुनते ही कुफ्फार को गुस्सा आ गया। उन्हों ने उसे भी घुसो और मुक्कों से मारना शुरू किया, बोले, बेवकूफ बूढ़े ! खुदा का नाम लेता है। ख़याली खुदा को छोड़ और हमारे माबूदों का इकरार कर।
हजरत यासिर रजि० ने कहा, ना-मुम्किन है। मुसलमान उस खुदा को मानता है जो सब का पैदा करने वाला है। उन का सर बुतों के सामने कभी नहीं झुक सकता।
अबू जहल गुस्से से भर उठा, बोला, ओ मौत को दावत देने वाले!
बदों के सामने सर झुकाना होगा ! हजरत यासिर रजि० ने कहा, जब तक बदन में ताक़त और दिमाग में सोचने की ताक़त बाक़ी है, तब तक तो गैर-मुम्किन है कि मेरा सर क्या किसी मुसलमान का सर किसी बुत के सामने झुक जाए।
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अबू जहल बोला, इतना घमंड ! अच्छा देखते हैं, तू कब तक अपनी जिद पर कायम रहता है।
यह कहते ही उस ने अपने दो आदमियों को दो ऊंट लाने का हुक्म दिया। लोग दौड़े हुए गये और जल्दी से दो ऊंट लाये। दोनों पर अमारियां कसी हुई थीं।
अबू जहल ने कहा, यासिर! अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है। हमारे माबूदों को खुदा मान ले, बच जाएगा। न सिर्फ यह कि बच जाएगा, बल्कि दौलत से मालामाल कर दूंगा। कमबख्त ! जिंदा रह, आराम व राहत से जिंदगी बसर कर।
हजरत यासिर रजि० ने कहा, दुनिया कुछ दिनों की है, आखिरत तो हमेशा की है। आखिरत का आराम भी हमेशा का है और जिसे आखिरत की तक्लीफ पहुंची, उस ने अपना सब कुछ खो दिया।
अल्लाह का फरमान है, ‘तुम और जिन चीजों को पूजते हो, सब दोजख के ईधन बनेंगे।’ इस खुले डरावे के बाद हकीक़ी माबूद को छोड़कर बुतों के सामने सिर मकाना मुसलमानों का काम नहीं है।’
अबू जहल ने कहा ऐसा है, तो अब जबरदस्ती तुझे बुतों को सज्दा कराया जाएगा।
उस ने अपने आदमियों को इशारा किया। उस के आदमियों ने यासिर को दोनों ऊंटों से इस तरह जकड़ दिया कि एक ऊंट की अमारी से दोनों हाथ और दूसरे ऊंट की अमारी से दोनों पांव बांध दिये। इस तरह हजरत यासिर दोनों ऊंटों के दर्मिनान लटकने लगे।
अबू जहल ने कहा हमारे माबूदों को सज्दा करोगे?
आखिरी सांस तक नहीं। हजरत यासिर ने कहा।
अबू जहल ने ऊंट वालों को इशारा किया। उन्हों ने दोनों ऊंटों को मुखालिफ़ सिम्तो में हांक दिया। ऊंट चले, रुके, झटका देकर फिर चले। हजरत यासिर रजि० के दोनों हाथ बाजुओं से उखड़ गये। मौत ने उन को गोद में लेकर उन की मुसीबतों का खात्मा कर दिया।
To be continued …
इंशा अल्लाह सीरीज का अगला हिस्सा कल पोस्ट किया जायेगा ….
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