Sacha Dharm Konsa hai ?
सच्चा धर्म कौनसा है?
सच्चा धर्म कौन सा है? यह एक प्रश्न है जिसका उत्तर विभिन्न धर्मों की दृष्टि से दिया जा सकता है। हर धर्म अपने-अपने मार्ग और सिद्धांतों के माध्यम से सच्चे धर्म की घोषणा करता है। लेकिन ईस्लाम एक ऐसा धर्म है जो सच्चा धर्म होने के दावे के साथ सभी लोगों के बीच ऊंच नीच और जातिवाद से परे एकता, इंसानियत और प्रेम के सिद्धांतों को प्रमाणित करता है।
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1: ईस्लाम धर्म के सिद्धांतों का परिचय
ईस्लाम एक मानवतावादी धर्म है जो सबको एक साथ लाए हुए हैं। यह धर्म उच्चतम न्याय, सच्ची इंसानियत, सम्मान और समानता के मूल्यों को बढ़ावा देता है। इस्लाम के अनुसार, सच्चा धर्म अल्लाह के मार्ग पर चलने, दया, समर्पण और प्रेम के साथ अपनी ज़िंदगी बिताने में है।
3: ईस्लाम धर्म के मार्ग
ईस्लाम धर्म का मार्ग सीधा है, जहां ईश्वर के साथ संबंध स्थापित करने के लिए एक मुस्लिम को शान्ति, समृद्धि और मानवता के मार्ग पर चलने की सलाह दी जाती है।
3: ईस्लाम धर्म के महत्वपूर्ण सिद्धांत
दान, न्याय, सच्चाई, इमानदारी, सदभाव, त्याग और प्यार
ईस्लाम धर्म दान, न्याय, सच्चाई, इमानदारी, सदभाव, त्याग और प्यार के मार्ग को आदर्श मानता है। यह धर्म स्वार्थ और दुश्मनी की भावना को परित्याग करने की सलाह देता है और सबके लिए उच्चतम कल्याण की तलाश में सबका भला करने के लिए प्रेरित करता है।
4: बुरे कर्मों से बचाव और अच्छे कर्मों की प्रेरणा देता है इस्लाम:
ईस्लाम धर्म अपने सिद्धांतों और आचारों के माध्यम से बुरे कर्मों से बचाव का प्रमाण देता है। इस्लाम में कई ऐसे अवर्तमान कार्यों को प्रतिष्ठित किया गया है जो समाज में दोषों को रोकते हैं और लोगों को सच्चे धर्म की ओर प्रेरित करते हैं।
1. सूद (Interest/Usury) का वर्जित होना:
सूद या ब्याज लेना ईस्लाम में सख्ती से वर्जित है। इस्लाम में मान्यता है कि सूद लेने या देने से आदमी के अच्छे कर्मों का प्रतिष्ठान हानि होती है और समाज में अन्याय का प्रसार होता है। इस्लाम के अनुसार, धन को सही और न्यायसंगत ढंग से व्यवहार करना चाहिए।
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2. शराब (Alcohol) का वर्जित होना:
इस्लाम में शराब पीना और उसका निर्माण शान्ति और समृद्धि के मार्ग को विघटित करता है। शराब की मात्रा से नशा होता है, जो मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को खराब करता है। शराब के सेवन के कारण बहुत सारे अपराध होते हैं, जैसे कि घरेलू हिंसा, द्विवेदी व्यवहार, गलत निर्णय लेना, और घराने में विवादों की उत्पत्ति। इस्लाम धर्म में शराब पीने का प्रतिषेध है ताकि लोगों में शांति, सद्भाव, और आदर्शता बनी रह सके।
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3. जुआ (Gambling) का निषेध:
जुआ खेलना ईस्लाम में अनुमति योग्य नहीं माना जाता। जुआ में लगातार जीत या हार के परिणामस्वरूप एक व्यक्ति की धनराशि तथा मानसिक स्थिति दोनों बदल सकती हैं। जुआ आदमी के जीवन को व्यर्थ करता है, उसकी व्यक्तित्व विकास को रोकता है, और समाज में अस्थिरता और उथल-पुथल बढ़ाता है। इस्लाम धर्म में जुआ को वर्जित किया गया है ताकि लोग धन को न्यायसंगत ढंग से कमाएं और समाज में सामाजिक और आर्थिक स्थिरता बनाएं।
4. दहेज (Dowry) का वर्जित होना:
दहेज प्रथा ईस्लाम में भी मान्यता से अवश्यकताओं के रूप में नहीं मानी जाती है। इस्लाम में दहेज की मांग या देने की प्रवृत्ति न्यायसंगत नहीं समझी जाती, क्योंकि इससे समाज में अदालती भावना और समाजिक विभाजन बढ़ता है। इस्लाम में शादी एक पवित्र संबंध है जहां विश्वास, प्रेम, और सहानुभूति को महत्व दिया जाता है, न कि संपत्ति के आधार पर अदालती की जाए।
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5. बलात्कार (Rape) एक उच्च अपराध और बलात्कारी को मृत्युदंड:
ईस्लाम में बलात्कार के जैसे अपराधों का निंदनीय और दंडनीय मान्यता से निषेध है। इस्लाम धर्म में स्त्री की इज्जत, सुरक्षा, और सम्मान को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। बलात्कार एक अत्याचारी कार्य है जो मानवीयता को हानि पहुंचाता है और एक समाज को अस्थिर कर देता है। इस्लाम धर्म में इस तरह के अपराधों को रोकने के लिए सख्त कानूनी कार्रवाई की जाती है और सजा होनी चाहिए।
ईस्लाम धर्म अच्छे कर्मों की प्रेरणा करता है जो लोगों को सच्चे धर्म की ओर आकर्षित करते हैं। इस्लाम के सिद्धांतों के पालन से लोगों में इंसानियत, सद्भाव, न्याय, और सम्मान जैसे मूल्यों की प्रतिष्ठा बनी रहती है। यह धर्म एक विश्वव्यापी समानता और एकता की प्रेरणा देता है।
5: ईस्लाम में एकता और समानता की प्रतिष्ठा
ईस्लाम धर्म में एकता और समानता की महत्वपूर्ण प्रतिष्ठा होती है। यह धर्म सभी लोगों को ईश्वर की नजर में समान मानता है, जहां राजा और रंक के बीच कोई भेदभाव नहीं होता है। इसका उदाहरण नमाज की सफ़ (श्रेणीबद्धता) में देखा जा सकता है, जहां सभी लोग एक ही पंक्ति में खड़े होकर कंधे से कंधा मिलाते हैं और एक ईश्वर के सामक्ष झुककर उसके प्रति निष्ठा जताते हैं। यह साबित करता है कि इस्लाम के अनुयायी सभी मानवीय सम्प्रदायों के लोग एकता और समानता में विश्वास करते हैं।
निष्कर्ष:
ईस्लाम धर्म एक विश्वव्यापी धर्म है जो अपने मूल्यों, सिद्धांतों और अदालत के माध्यम से समानता, एकता और सद्भाव को प्रोत्साहित करता है। इस धर्म में विश्वशांति और समाजिक समरसता के लिए समग्र मानविक बंधनों का महत्व दिया जाता है। हज़ जैसी महत्वपूर्ण यात्रा में भी, इस्लाम के अनुयाय अपनी भावनाओं को छोड़कर एकता और बांधवता का प्रतीक बनते हैं।
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इस तरीके से, ईस्लाम धर्म एक व्यापक संदेश देता है कि सभी मानवीय सम्प्रदायों को समानता और एकता के माध्यम से संगठित होना चाहिए और साथ मिलकर समाज में शांति और समृद्धि का सृजन करना चाहिए।
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