रिश्तेदारों के हुकूक अदा करने का हुक्म:
क़ुरआन: “बेशक! अल्लाह तआला इंसाफ का और अहसान करने का और रिश्तेदारों को उनके हुकुक देने का हुक्म देता है” 1
हदीस : रसूलल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : जो शख्स रिश्तेदारों का हक अदा करने के लिए सदके का दरवाज़ा खोलता है तो अल्लाह तआला उस की दौलत को बढ़ा देता है। 2
हदीस : सबसे अफजल सदका वो है जो ऐसे रिश्तेदार पर किया जाए जिसने दिल में दुश्मनी छुपा रखी हो। 3
हदीस : रसूलअल्लाह (ﷺ) ने फरमाया : “जो ये चाहे कि उसकी रोज़ी बढ़ जाए और उसकी उमर लंबी हो जाए, उसे चाहिए कि सिला रहमी (रिश्तेदारों के साथ अच्छा सुलूक) करे।” 4
हदीस : रसूलअल्लाह (ﷺ) ने फरमाया : “अल्लाह से डरते रहो और अपने रिश्तेदारों के साथ हुस्ने सुलूक करो। 5
रिश्तेदाओं से सिला रेहमी की अहमियत:
हदीस : रसूलअल्लाह (ﷺ) ने फरमाया : “अपने हसब व नसब को सीखो (रिश्तेदारों को जानो) ताके तुम उन के साथ सिला रहमी कर सको, इस लिये के सिला रहमी करने से रिश्तेदारों में मुहब्बत, माल मे वुस्अत (ज्यादती) और उम्र में बरकत होती है।” 6
बुरे रिश्तेदार से सिला रेहमी करने का सवाब:
हदीस : एक शख़्स ने अर्ज़ किया “या रसूलअल्लाह (ﷺ)! मेरे बाज़ रिश्तेदार है, मैं उनसे तालुक जोड़ता हूं वो मुझसे ताल्लुक तोड़ते हैं, मैं उनके साथ अच्छा सुलूक करता हूं, वो मेरे साथ बदसलूकी करते है। और मैं उनकी जियादतियों को बर्दाश्त करता हूं, वो मेरे साथ जहालत से पेश आते हैं।”
रसूलअल्लाह (ﷺ) ने इरशाद फरमाया “जैसा तुम कह रहे हो अगर ऐसा ही है, तो गोया तुम उनके मुंह में गरम गरम राख झोंक रहे हो, और जब तक तुम इस खूबी पर कायम रहोगे तुम्हारे साथ हर वक्त अल्लाह ताला की तरफ से एक मददगार रहेगा।” 7
रिश्तेदारी तोड़ने का गुनाह:
हदीस : रसूलल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: “कता रहमी करनेवाला (यानी रिश्ते तोड़ने वाला) जन्नत में नहीं जायेगा।” 8
रिश्तेदारों पर खर्च न करने की सजा:
हदीस : “कोई भी रिश्तेदार अपने किसी रिश्तेदार के पास आता है और अल्लाह सुब्हानहु ने उसे जो अता किया है उसमें से फ़ज़्ल (जो चीज जरूरी से ज्यादा हो) का सवाल करता है और वह बुखल (बुरे अखलाख / कंजूसी) से पेश आता है तो कयामत के दिन उसके लिए दोज़ख से एक सांप निकाला जाएगा जिसको शुजा कहा जाता है ,वो फुंकार रहा होगा उससे उसके गर्दन में तौक बना कर डाल दिया जाएगा।” 9
रिश्तेदारों में भी इंसाफ से काम लेने की तरबियत:
क़ुरआन: अल्लाह ताला कुरान में फरमाता है: ‟जब कोई बात कहो तो इन्साफ से काम लो, चाहे मुआमला अपने करीबी रिश्तेदार ही का हो।” 10
मसलन जब भी कोई मामला पेश आये तो इंसाफ से काम लो, चाहे वो रिश्तेदारों के हक़ में हो या खिलाफ हो। यानि किसी रिश्तेदार की मोहब्बत तुम्हे नाइंसाफी करने पर मजबूर न कर दे।
हवाला (Reference) :