बैज्ञानिकाें के एक ग्रूप ने पाँच बन्दराें काे एक पिंजरे में बन्द किया। अौर उसके ऊपर उन्हाेंने एक सीढी लगाई अौर उसके ऊपर कुछ केले रखे।
*अनुसन्धान शुरू हुवा।
जब काेई बन्दर केले काे पाने के लिए सीढी पर चढना चाहता ताे बैज्ञानिक नीचे खडे हुए बन्दराें पर ठन्डा पानी बरसाना शुरू कर देते। जब हर बार ऐसा ही हुवा, ताे अब जैसे ही काेई बन्दर केलाें की लालच में ऊपर जाने का प्रयत्न करता ताे नीचे खडे हुए बन्दर उसकाे सीढी पर चढने न देते अौर खूब मारते।
कुछ समय बाद केलाें की लालच के बावजूद काेई भी बन्दर सीढी पर चढने की हिम्मत न कर पा रहा था।
– बैज्ञानिकाें ने कि उन मे से एक बन्दर काे बदल दिया जाए।
पहली चीज जाे नए अाने वाले बन्दर ने की वह सीढी पर चढना था।
परन्तु तुरन्त ही उसे दूसरे बन्दराें ने मारना चालू कर दिया।
कइ बार पिटने के बाद नए अाने वाले बन्दर ने सदा के लिए यह तय कर लिया कि वह सीढी पर नहीं चढेगा। जबकि उसे पता नही था कि क्यूं ?
*बैज्ञानिकाें ने एक अौर बन्दर बदल दिया अौर उसका भी यही हाल हुवा।
अौर अाश्चर्य की बात ताे यह है कि उससे पहले बदला जाने वाला बन्दर भी उस दूसरे बदले हुए बन्दर काे मारने में शामिल था।
– उसके बाद तीसरे बन्दर काे बदला गया, उसका भी वही हाल (पिटाई) हुवा।
यहाँ तक कि सारे पुराने बन्दर नए बन्दर में तबदील हाे गए अौर सब के साथ यही व्यवहार हाेता रहा।
उस पिन्जरे में सिरफ नए बन्दर रह गए जिन पर कभी बैज्ञानिकाें ने बारिश नहीं बरसाई।
लेकिन फिर भी वह सीढी पर चढने वाले बन्दर की पिटाई करते।
यदि यह सम्भव हाेता कि बन्दराें से पूछा जाए। कि तुम क्यूं सीढी पर चढने वाले बन्दर काे मारते हाे ताे निश्चित रूप से वह यही जवाब देते कि हमे पता नहीं, हमने ताे सबकाे ऐसे ही करते देखा है।
* * * * * * *
दाेस्ताे! इसी प्रकार रस्माे रिवाज जन्म लेते हैं,
लाेग अाज भी वही करते हैं जाे उनके पूर्बज करते अा रहे हैं बस देखा देखी ही अज्ञानता में पडे हुए हैं।
♥ अल-कुरआन: “और जब उनसे कहा जाता है कि उस चीज़ की ओर आओ जो अल्लाह ने अवतरित की है और रसूल की ओर, तो वे कहते है, “हमारे लिए तो वही काफ़ी है, जिस पर हमने अपने बाप-दादा को पाया है।” क्या यद्यपि उनके बापृ-दादा कुछ भी न जानते रहे हों और न सीधे मार्ग पर रहे हो ?”
– (सूरः माइदा:१०४)
♥ अल-कुरआन: “और जब उनसे कहा जाता है, “अल्लाह ने जो कुछ उतारा है उसका अनुसरण करो।” तो कहते है, “नहीं बल्कि हम तो उसका अनुसरण करेंगे जिसपर हमने अपने बाप-दादा को पाया है।” क्या उस दशा में भी जबकि उनके बाप-दादा कुछ भी बुद्धि से काम न लेते रहे हों और न सीधे मार्ग पर रहे हों ?”
– (सुरह बकराह: १७०)
लिहाजा हम सबको चाहिए के जिन रीतिरिवाजो पर चलकर हम खुदको सही और दुसरो को गलत समझते है उन रीतिरिवाजो की क्या बुनियादे है ? कहा से वो साबित है ? ये सत्य इश्वर अल्लाह ने अपने प्रेषित मोहम्मद (स.) द्वारा दिया हुआ मार्गदर्शन है या किसी भी बुद्धिजीवी द्वारा गढे गए रस्मो रिवाज, यही जानने के लिये हम सबको ज्ञान प्राप्त करने की आवशयकता है ,.. तभी मुमकिन है सही और गलत में हम फर्क कर पाए ,..
*Source: मोहम्मद अहमद भाई के लेख से
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