नज़र एक ऐसा फ़ित्ना हैं जिस पर कोई रोक नही जब तक कोई इन्सान खुद अपनी नज़र को बुराई से न फ़ेर ले। अमूमन नज़र के फ़ित्ने से आज का इन्सान महफ़ूज़ नही क्योकि टीवी, अखबार, मिडिया के ज़रीये जिस तरह इन्सान के जज़्बात को जिस तरह भड़काने का मौका दिया जा रहा हैं उससे कोई इन्सान नही बच सकता। ऐसी सूरत मे अल्लाह ने जो हुक्म दिया वो इस तरह हैं –
» अल्लाह के नाम से शुरू जो बड़ा कृपालु और अत्यन्त दयावान हैं.!!
(ऐ रसूल) ईमानवालो से कह दो के अपनी नज़रे नीची रखे और अपनी शर्मगाहो की हिफ़ाज़त करें यही उनके लिये ज़्यादा अच्छी बात हैं। ये लोग जो कुछ करते हैं अल्लाह उससे यकीनन वाकिफ़ हैं और) ऐ रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ! ईमानवाली औरतो से कह दो कि वह भी अपनी नज़रे नीची रखे और अपनी शर्मगाहो की हिफ़ाज़त करे। [सूरह नूर 24:30-31]
ये आयत इस बात का खुला सबूत हैं कि हर मर्द और औरत दोनो पर ये लाज़िम हैं की वो अपनी नज़रे नीची रखे। न के ये हुक्म कुरान के ज़रीये सिर्फ़ मर्द या सिर्फ़ औरत को दिया जा रहा हैं। गौर करने की बात ये हैं के क्या कोई मर्द किसी ऐसी औरत से शादी करेगा जो लूज़ केरेक्टर हो या कोई औरत किसी ऐसे मर्द से शादी करेगी जो लूज़ केरेक्टर हो| ये सवाल अगर अवाम से पूछा जाये तो 99% मर्द और औरत यही जवाब देगे के जिस औरत या मर्द का कोई केरेक्टर न हो उससे कोई शादी क्यो करेगा ताकि ज़िन्दगी भर वो अपने लोगो मे ज़िल्लत और शर्म महसूस करे। तो सवाल ये हैं के जब कोई ये नही कर सकता तो उस पर ये लाज़िम हैं की अपनी नज़र और शर्मगाह की हिफ़ाज़त करे। इस बारे मे हदीस नबवी पर भी ज़रा गौर करें-
» हदीस: हज़रत ज़रीर बिन अब्दुल्लाह (रज़ी अल्लाहु अनहु) से रिवायत हैं के मैने रसूलल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से अचानक नज़र पड़ जाने के बारे मे पूछा तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया – “अपनी नज़रे फ़ेर लो।” – (मुस्लिम शरीफ)
अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की इस हदीस से साबित हैं के नज़र ज़िना (कुकर्म, बलात्कार, Rape) की ही एक किस्म हैं लिहाज़ा इस ज़िनाकारी से बचने की सूरत सिर्फ़ ये हैं के नज़रे नीची रखी जाये और अचानक पड़ जाने की सूरत मे नज़र फ़ेर ली जये।
Nice