दुनिया की जाहिरी हालत धोका है कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है : "यह लोग सिर्फ दुनियावी ज़िंदगी की ज़ाहिरी हालत को जानते हैं और यह आख़िरत से बिल्कुल ग़ाफिल हैं।" (यानी इन्सान सिर्फ दुनिया की चीजों को जानते और उसी को हासिल करने की फिक्र में लगे रहते हैं, उन्हें पता ही नहीं है के इस के बाद दूसरी जिंदगी आने वाली है और वह हमेशा हमेशा की जिंदगी है, लिहाजा दुनिया में लगने के बजाए आखिरत की तय्यारी में मशगूल रहना चाहिये।)" 📕 सूरह रूम : ७
बिच्छू के जहर का इलाज हजरत अली (र.अ) फरमाते हैं : एक रात रसूलुल्लाह (ﷺ) नमाज़ पढ़ रहे थे के नमाज के दौरान एक बिच्छू ने आप को डंक मार दिया, रसूलुल्लाह (ﷺ) ने उस को मार डाला जब नमाज़ से फारिग हुए तो फरमाया : अल्लाह बिच्छू पर लानत करे, यह न नमाज़ी को छोड़ता है और न गैरे नमाज़ी को, फिर पानी और नमक मंगवा कर एक बर्तन में डाला और जिस उंगली पर बिच्छू ने डंक मारा था, उस पर पानी डालते और मलते रहे और सूरह फलक व सूरह नास पढ़कर उस जगह पर दम करते रहे। 📕 बैहकी फी शोअबिल…
समुन्दर इन्सानों की गिजा का ज़रिया है Highlights • समुंदर का फ़ायदा: अल्लाह तआला ने समुंदर को इंसानों के लिए एक अहम ज़रिया बना दिया, जिससे ताजे गोश्त, मोती और अन्य जेवरात प्राप्त होते हैं।• कश्तियाँ और रोज़ी की तलाश: समुंदर में कश्तियाँ चलती हैं और लोग अपने रोज़गार के लिए समुंदर से लाभ उठाते हैं।• शुक्र अदा करना: यह सब अल्लाह की कृपा है, और इंसानों को इसका शुकर अदा करते रहना चाहिए। कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है : "अल्लाह तआला ही ने समुन्दर को तुम्हारे काम में लगा दिया है, ताके तुम उस में से ताज़ा गोश्त खाओ और उसमें से जेवरात (मोती वगैरह)…
हर नमाज के बाद तस्बीह फातिमी अदा करना रसूलल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया : “जो हर फ़र्ज नमाज़ के बाद ३३ मर्तबा “सुभानअल्लाह” ३३ मर्तबा “अलहम्दुलिल्लाह” और ३४ मर्तबा “अल्लाहु अकबर” कहता है, वह कभी नुकसान में नहीं रहता।” 📕 मुस्लिम : १३४९
वुजू कर के इमाम के साथ नमाज अदा करने की फ़ज़ीलत रसुलल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : "जिस ने अच्छी तरह मुकम्मल वुजू किया, फिर फर्ज नमाज अदा करने के लिये गया और इमाम के साथ नमाज पढी, उसके (सगीरा गुनाह) माफ कर दिये जाते हैं।" 📕 इब्ने खुजैमा १४०९
अस्र की नमाज़ की फज़ीलत एक मर्तबा रसूलुल्लाह (ﷺ) ने अस्र की नमाज़ पढ़ाई और फिर लोगों की तरफ मुतवज्जेह हो कर फ़रमाया - "यह नमाज़ तुमसे पहले वाले लोगों पर भी फ़र्ज़ की गई थी, मगर उन्होंने इस को ज़ाय कर दिया, लिहाज़ा सुनो! जो इसको पाबन्दी से पढ़ता रहेगा उसको दोहरा सवाब मिलेगा।" 📕 मुस्लिमः१९२७
नमाज के बाद दूसरी नमाज़ का इंतज़ार करने की फ़ज़ीलत रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया: "तकलीफ और नागवारी के बावजूद पूरी तरह मुकम्मल वुजू करना, मस्जिदों की तरफ जियादा कदम बढ़ाना और एक नमाज के बाद दूसरी नमाज़ का इंतज़ार करना, यह आमाल गुनाहों से (आदमी को) बिलकुल पाक साफ कर देते हैं।" 📕 मुस्तदरक : ४५६
नमाजे अस्र की अहमियत रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया : "जिस शख्स ने अस्र की नमाज़ छोड़ दी, तो उस का अमल जाया हो गया।" 📕 बुखारी : ५५३. अन बुरैया (र.अ) वजाहत: दिन और रात में तमाम मुसलमानों पर पाँचों नमाजों को अदा करना तो फर्ज है ही, लेकिन ख़ास तौर से अस्त्र की नमाज़ छोड़ने वालों के हक में रसूलल्लाह (ﷺ) का वईद बयान फर्माना इस की अहमियत को मजीद बढ़ा देता है, चुनान्चे हमारे लिए जरूरी है के हम अस्र की नमाज वक्त पर अदा करें और कजा न करें। अल्लाहतआला हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे , अमीन।
अपने घर वालों को नमाज़ का हुक्म देना अपने घर वालों को नमाज़ का हुक्म देना कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है: "आप अपने घर वालों को नमाज़ का हुक्म करते रहो और खुद भी नमाज़ के पाबन्द रहिये, हम आपसे रोजी तलब नहीं करते, रोजी तो आप को हम देंगे आर अच्छा अंजाम तो परहेजगारों का है।" 📕 सूरह ताहा: १३२
नमाज़े जनाज़ा फर्जे किफाया है रसूलुल्लाह (ﷺ) ने सात चीजों का हुक्म दिया, जिसमें से एक जनाजे में शरीक होना भी है। 📕 बुखारी, हदीस : १२३९ नोट: नमाज़े जनाजा फर्जे किफाया है, फ़र्ज़ किफाया ऐसे फ़र्ज़ को कहते हैं जो हर एक पर फर्ज हो, लेकिन उनमें से किसी ने भी अगर अदा कर दिया तो सबकी तरफ से काफी हो जाएगा।
खड़े हो कर नमाज़ पढ़ना कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है : “नमाज़ में अल्लाह के सामने आजिज़ बने हुए खड़े हुआ करो।” 📕 सूरह बकराह: २३८ फायदा: अगर कोई शख्स खड़े होकर नमाज़ पढ़ने की ताकत रखता हो तो उस पर फ़र्ज और वाजिब नमाज़ को खड़े हो कर पढ़ना फ़र्ज़ है।
नमाज़ दीन ऐ इस्लाम का सुतून है एक आदमी ने आप (ﷺ) से अर्ज़ किया ऐ अल्लाह के रसूल ! इस्लाम में अल्लाह के नजदीक सबसे ज़ियादा पसन्दीदा अमल क्या है ? आप (ﷺ) ने फर्माया : "नमाज़ को उस के वक्त पर अदा करना और जो शख्स नमाज़ को (जान बूझ कर) छोड़ दे उसका कोई दीन नहीं है, और नमाज़ दीन का सुतून है।" 📕 बैहकी फी शोअबिल ईमान : २६८३, अन उमर (र.अ)
अल्लाह से डरते रहो जैसा के उस से डरने का हक्र है कुरआन में अल्लाह तआला फरमाता है : “ऐ ईमान वालो ! अल्लाह से डरते रहो जैसा के उस से डरने का हक्र है और मरते दम तक इस्लाम पर क़ाएम रहना।” 📕 सूरह आले इमरान :१०२
हज़रत इस्हाक़ (अ.) की पैदाइश हजरत इस्हाक़ (अ.) की विलादत बा सआदत अल्लाह तआला की एक बड़ी निशानी है, क्योंकि उन की पैदाइश ऐसे वक्त में हुई जब के उन के वालिद हजरत इब्राहीम (अ.) की उम्र 100 साल और उनकी वालिदा हजरत सारा की उमर 90 साल हो चुकी थी, हालाँके आम तौर पर इस उम्र में औलाद नहीं होती है। जब फरिश्तों ने उन की पैदाइश की खुशखबरी दी, तो दोनों हैरत व तअज्जुब में पड़ गए। मगर फरिश्तों ने यकीन दिलाया और कहा : आप नाउम्मीद मत हों। चुनान्चे अल्लाह तआला के हुक्म से इस्हाक़ पैदा हुए। उसी साल हजरत इब्राहीम व इस्माईल ने बैतुल्लाह की…
इल्म हासिल करना फ़र्ज़ है ... रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : “इल्म हासिल करना हर मुसलमान पर फर्ज है।” 📕 इब्ने माजा: २२४ फायदा : हर मुसलमान पर इल्मे दीन का इतना हासिल करना फर्ज है के जिस से हलाल व हराम में तमीज़ कर ले और दीन की सही समझ बूझ, इबादात के तरीके और सही मसाइल की मालमात हो जाए।
MD. Salim Shaikh
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