मक्का के मुसलमान जब कुफ्फार व मुशरिकीन की तकलीफों से परेशान हो कर सिर्फ अल्लाह, उसके रसूल और दीने इस्लाम की हिफाजत के लिये अपना माल व दौलत, साज व सामान और महबूब वतन को छोड़ कर मदीना मुनव्वरा हिजरत कर गए। उस मौके पर रसूलल्लाह (ﷺ) ने उन मुसलमानों की दिलदारी के लिये आपस में भाई चारा कायम फ़रमाया।
और मुहाजिरीन (यानी वह सहाबा जो मक्का मुकर्रमा से हिजरत कर के मदीना चले गए) उनमें से एक एक को अन्सार (यानी वह सहाबा जिन्होंने मदीना मुनव्वरा में मुहाजिरीन की नुसरत व मदद की) उन का भाई बना दिया। अन्सार ने अपने मुहाजिर भाई के तआवुन और इज्जत व एहतेराम में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और उनके साथ हमदर्दी व मुहब्बत, ईसार व कुर्बानी और मेहरबानी व हुस्ने सुलूक की ऐसी बेहतरीन मिसाल पेश की के आज तक पूरी दुनिया मिल कर उस जैसी मिसाल पेश नहीं कर सकी।
माल व दौलत, जमीन व बागात बल्के हर चीज़ में उन को शरीक कर लिया। मगर मुहाजिरीन ने भी अन्सारी भाइयों का हर मामले में साथ दिया और अपनी रोजी का बजाते खुद इंतजाम करने के लिये तिजारत वगैरा का पेशा भी इख्तियार किया।
बहरहाल यह रिश्त-ए-मुवाखात इस्लामी तारीख में इत्तेहाद व इत्तेफाक और कौमी यकजहती की ऐसी मिसाल थी, जिसने नस्ल व रंग, वतन व मुल्क और तहजीब व तमद्दुन के सारे इम्तियाज को अमली तौर पर खत्म कर डाला।
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