मदीना मुनव्वरा से तक़रीबन तीन मील के फासले पर एक छोटी सी बस्ती कुबा है, यहाँ अन्सार के बुहत से खानदान आबाद थे और कुलसूम बिन हदम उन के सरदार थे, हिजरत (migration) के दौरान आपने पहले कुबा में कयाम फर्माया और कुलसूम बिन हदम के घर मेहमान हुए, रसूलुल्लाह (ﷺ) ने यहाँ अपने मुबारक हाथों से एक मस्जिद की बुनियाद डाली, जिस का नाम मस्जिदे कुबा है, मस्जिद की तामीर में सहाबा के साथ साथ आप (ﷺ) खुद भी काम करते थे और भारी भारी पत्थरों को उठाते थे।
यही वह मस्जिद है, जिस की शान में कुरआन मजीद में है, यानी इस मस्जिद की बुनियाद पहले ही दिन से परहेज़गारी पर रखी गई है, वह इस बात की ज़्यादा मुस्तहिक है के आप उस में नमाज़ के लिये खड़े हों, उस में ऐसे लोग हैं, जिन को सफाई बहुत पसंद है और आल्लाह पाक व साफ रहने वालों को दोस्त रखता है।
हुजूर (ﷺ) ने यहाँ चौदा दिन कयाम फ़र्मा कर १२ रबीउल अव्वल सन १ हिजरी को जुमा के दिन रवाना हुए। बनी सालिम के घरों तक पहुँचे थे के जुमा का वक़्त हो गया। आप (ﷺ) ने जुमा की नमाज अदा फ़रमाई और खुतबा दिया। यह इस्लाम में जुमा की पहली नमाज़ थी। आप के साथ तक़रीबन सौ आदमी नमाज में शरीक थे।
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