शबे मेराज का वाकिया | Shab e Meraj ka waqia

इसरा और मेराज एक चमत्कार – Isra Aur Meraj Ka Safar

शबे मेराज का वाकिया | Shab e Meraj ka waqia in Hindi

मेराज की घटना नबी (सल्ललाहो अलैहि वसल्लम) का एक महान चमत्कार है, और इस में आप (सल्ललाहो अलैहि वसल्लम) को अल्लाह ने विभिन्न निशानियों का जो अनुभव कराया यह भी अति महत्वपूर्ण है।

मेराज के दो भाग हैं, प्रथम भाग को इसरा और दूसरे को मेराज कहा जाता है, लेकिन सार्वजनिक प्रयोग में दोनों ही को मेराज के नाम से याद कर लिया जाता है।

इसरा क्या है ?

इसरा कहते हैं रात के एक भाग में चलना, अभिप्राय यह है कि मुहम्मद (सल्ललाहो अलैहि वसल्लम) का रात के एक भाग में मस्जिदे हराम से मस्जिदे अक़सा (बैतुल मक़्दिस) तक की यात्रा, जिसका वर्णन अल्लाह ने सुरः बनी इस्राइल (इस्रा) के शुरू में किया हैः

“क्या ही महिमावान है वह जो रातों-रात अपने बन्दे (मुहम्मद) को प्रतिष्ठित मस्जिद (काबा) से दूरवर्ती मस्जिद (अक़्सा) तक ले गया, जिसके चतुर्दिक को हमने बरकत दी, ताकि हम उसे अपनी कुछ निशानियाँ दिखाएँ। निस्संदेह वही सब कुछ सुनता, देखता है” – (अल-कुरान सूरःइस्रा 1)

मस्जिदे हराम मक्का में है और मस्जिदे अक़सा फलस्तिन में है, दोनों के बीच की दूरी चालीस दिन की थी, चालीस दिन की यह दूरी अल्लाह के आदेश से रात के एक थोड़े से भाग में तै हो गई। जिसमें अल्लाह की महानता की पहचान है कि उसका कोई भी काम माध्यम का पाबंद नहीं होता।

इसरा और मेराज एक चमत्कार – Isra Aur Meraj Ka Safar

मेराज क्या है ?

मेराज का अर्थ होता है चढ़ने का माध्यम अर्थात् सीढ़ी, मस्जिदे अक़सा से नबी (सल्ललाहो अलैहि वसल्लम) को आसमानों पर ले जाया गया, कुछ रिवायतों में सीढ़ी का शब्द प्रयोग हुआ है कि इसी के द्वारा आपको आसमानों पर ले जाया गया था। इसी लिए आसमानी यात्रा के इस दूसरे भाग को मेराज कहा जाता है। इसका कुछ वर्णन अल्लाह ने सूरः नज्म में किया है और अन्य बातें हदीसों में विस्तृत रूप में बयान हुई हैं।

इसरा और मेराज की यह घटना वास्तव में एक महत्वपूर्ण चमत्कार है, वीदित है कि चालीस दिन की यात्रा रात के एक थोड़े भाग में कर लेना किसी इंसान के वश की बात नहीं, उसी प्रकार रात के उसी भाग में आसमानों की सैर कर लेना भी प्रत्यक्ष रूप में एक अनहोनी सी घटना है, परन्तु जब उसकी निस्बत अल्लाह की ओर हो अर्थात् उसमें अल्लाह की शक्ति पाई जाए तो फिर उसे असम्भव समझना किसी मुसलमान के योग्य नहीं इसी लिए इस प्रकार की घटनाओं को मोजज़ा अर्थात् चमत्कार कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है विवश कर देने वाली घटनाएं।

अब हम इसरा और मेराज की घटनाओं का संक्षिप्त में वर्णन कर रहे हैं :

• सीना चीरा जानाः

अल्लाह के रसूल (सल्ललाहो अलैहि वसल्लम) ने फरमाया: मैं अपने घर में सोया हुआ था कि मेरे पास एक सज्जन (हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम) आए और वह मुझे काबा के पास हतीम में ले आए फिर मेरा सीना चीरा, मेरा दिल निकाला और एक सोने का तश्त लाया गया जो ईमान औऱ हिकमत से भरा हुआ था, उससे मेरा दिल धोया और पहले की तरह रखा। – (बुखारी, मुस्लिम)

सीना चीरे जाने की घटना सही रिवायतों में मौजूद है, इस लिए इसमें किसी प्रकार के संदेह की गुंजाइश नहीं। और यह पहली बार नहीं था अपितु इससे पहले भी दो बार हो चुका था, पहली बार बाल्यावस्था में जब आप हलीमा सादिय के घर में परवरिश पा रहे थे, और दूसरी बार नबी बनाए जाने के समय। जैसा कि हाफिज़ इब्ने हज्र ने बयान किया है। और शायद इस में हिकमत यह थी कि आपको बाद में पेश आने वाली बड़ी बड़ी घटनाओं के लिए तैयार किया जाए। – (ज़ादुल खतीब, डा. हाफिज़ मुहम्मद इस्हाक़ ज़ाहिद 1/ 289)

• इसरा की शुरूआतः

फिर उसके बाद एक जानवर लाया गया जो घोड़े से छोटा और गधा से थोड़ा बड़ा था और सफेद था, उसे बुराक़ कहा जाता था, उसका हर कदम आंख की अन्तिम छोड़ पर पड़ता था. हज़रत अनस रज़ि. कहते हैं कि बुराक़ को जब लाया गया जिस पर ज़ैन कसी हुई थी जब उस को नकील डाली गई तो उसने कुछ तंगी बरती, उससे कहा गया क्या तुम मुहम्मद (सल्ललाहो अलैहि वसल्लम) के तंगी करती हो जब कि अल्लाह के पास उन से अधिक सम्मानित कोई नहीं, उसने जब यह बात सुनी तो उसके पसीने झूट गाए। – (तिर्मिज़ीः अलबानी ने इसे सही कहा है)

• बैतुल मक़दिस में:

नबी सल्ल. फरमाते हैं” मैं उस बुराक़ पर सवार हुआ यहां तक कि बैतुल मक़दिस में पहुंच गया, अतः मैं नीचे उतरा और अपनी सवारी को उसी स्थान पर बांधा जहां अन्य संदेष्टा बांधा करते थे, फिर मैं मस्जिद के अंदर चला गया और उस में दो रकअत नमाज़ अदा की। और दूसरी रिवायत में यह है कि मैंने सारे संदेष्टाओं को जमाअत से नमाज़ पढ़ाई।

मेराजः

नबी (सल्ललाहो अलैहि वसल्लम) फरमाते हैं फिर जीब्रील ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे आसमाने दुनिया की ओर ले गए। इब्ने हज्र ने कुछ रिवायतें यह भी बयान की हैं कि आपके लिए एक सुंदर सीढ़ी गाड़ी गई जिसके द्वारा आप ऊपर गए।

• पहले आसमान पर:

जिब्रील मुझे लेकर आसमाने दुनिया पर पहुंचे तो दरवाजा खुलवाया, पूछा गया कौन साहब हैं? उन्होंने कहा कि जीब्रील (अलैहिस्सलाम), पूछा गया और आपके साथ कौन हैं? आपने कहा कि मुहम्मद (सल्ललाहो अलैहि वसल्लम) ! पूछा गया कि क्या उन्हें बुलाने के लिए भेजा गया था? उन्होंने कहा कि हाँ! इस पर आवाज आई उनका स्वागत है मुबारक आने वाले हैं। और दरवाजा खोल दिया। जब मैं(सल्ललाहो अलैहि वसल्लम) अंदर गया तो वहां आदम (अल्लैहिस्सलाम) को देखा, जीब्रील (अलैहिस्सलाम) ने फ़रमाया: यह आपके दादा आदम हैं, उन्हें सलाम करें, मैंने उन्हें सलाम किया और उन्होंने जवाब दिया और कहा आपका स्वागत है, नेक बेटे और अच्छे नबी।

• दूसरे आसमान पर:

जीब्रील (अलैहिस्सलाम) ऊपर चढ़े और दूसरे आकाश पर आए, वहाँ भी दरवाजा खुलवाया आवाज़ आई कौन साहब आए हैं? बताया कि जीब्रील (अलैहिस्सलाम) पूछा गया तुम्हारे साथ और कोई साहब हैं? कहा मोहम्मद (रसूलुल्लाह) पूछा गयाः क्या आप उन्हें बुलाने के लिए भेजा गया था? उन्होंने कहा कि हां, फिर आवाज आयी उनका स्वागत है। क्या हैं अच्छे आने वाले वे। फिर दरवाजा खुला और अंदर गए तो वहां यह्या और ईसा (अलैहिमुस्सलाम) मौजूद थे। यह दोनों पैतृक ज़ाद भाई हैं। जीब्रील (अलैहिस्सलाम) ने फ़रमाया यह ईसा और यह्या अलैहिमुस्सलाम हैं, उन्हें सलाम कीजिएः मैं सलाम किया और उन लोगों ने मेरे सलाम का जवाब दिया और कहा आपका स्वागत है, प्यारे नबी और अच्छे भाई.

• तीसरे आसमान पर:

फिर जीब्रील (अलैहिस्सलाम) मुझे तीसरे आसमान पर ले कर चढ़े और दरवाजा खुलवाया. पूछा गयाः कौन साहब आए हैं? कहा कि जीब्रील पूछा गयाः और अपने साथ कौन साहब आए हैं? कहा कि मुहम्मद (पैगंबर), पूछा गया क्या उन्हें लाने के लिए भेजा गया था? कहा कि हाँ ! इस पर आवाज़ आईः उन्हें आपका स्वागत है। क्या ही अच्छे आने वाले हैं, दरवाजा खुला और जब मैं अंदर गया तो वहां यूसुफ (अलैहिस्सलाम) मौजूद थे। जीब्रील (अलैहिस्सलाम) ने फ़रमाया कि यह यूसुफ हैं, उन्हें सलाम कीजिए, मैंने सलाम किया तो उन्होंने जवाब दिया और कहा आपका स्वागत है, नेक नबी और अच्छे भाई।

• चौथे आसमान पर:

फिर हज़रत जीब्रील (अलैहिस्सलाम) मुझे लेकर ऊपर चढ़े और चौथे आसमान पर पहुंचे, दरवाजा खुलवाया तो पूछा गयाः कौन साहब हैं? बताया कि जीब्रील! पूछा गयाः और अपने साथ कौन है? कहा कि मुहम्मद (पैगंबर), पूछा गया कि क्या उन्हें बुलाने के लिए आपको भेजा गया था? कहाः हां कहा, जवाब मिलाः उनका स्वागत है, क्या ही अच्छे आने वाले हैं वह। अब दरवाजा खुला, वहाँ इदरिस (अलैहिस्सलाम) की सेवा में पहुंचे, जीब्रील (अलैहिस्सलाम) ने फ़रमाया यह इदरिस (अलैहिस्सलाम) हैं उन्हें सलाम कीजिए, मैं ने उन्हें सलाम किया और उन्होंने जवाब दिया और कहा आपका स्वागत है, नेक भाई और नेक नबी.

• पांचवें आसमान पर:

फिर मुझे लेकर पांचवें आसमान पर आए और दरवाजा खुलवाया, पूछा गया कौन साहब हैं? कहा कि जीब्रील, पूछा गयाः तुम्हारे साथ कौन साहब आए हैं? कहा कि मुहम्मद (रसूलुल्लाह) पूछा गया कि उन्हें बुलाने के लिए भेजा गया था? कहा कि हाँ, तब आवाज आईः स्वागत है उनका, अच्छे आने वाले हैं वे, यहाँ हारून (अलैहिस्सलाम) की सेवा में हाज़िर हुए तो जीब्रील (अलैहिस्सलाम) ने बताया कि यह हारून हैं उन्हें सलाम कीजिए, मैं उन्हें सलाम किया उन्होंने उत्तर दिया और कहाः स्वागत नेक नबी और अच्छे भाई।

• छठे आसमान पर:

यहाँ से आगे बढ़े और छठे आसमान पर पहुंचे और दरवाजा खुलवाया, पूछा गयाः कौन साहब आए हैं? बताया कि जीब्रील, पूछा गयाः आप के साथ कोई अन्य साहब आए हैं? कहा कि मुहम्मद (पैगंबर) पूछा गयाः क्या उन्हें बुलाने के लिए भेजा गया था? कहा कि हाँ. तब कहाः उनका स्वागत है, अच्छे आने वाले हैं वे। जब वहाँ मूसा (अलैहिस्सलाम) की सेवा में हाज़िर हुए तो जीब्रील (अलैहिस्सलाम) ने फ़रमाया कि यह मूसा हैं, उन्हें सलाम कीजिए, मैं सलाम किया और उन्होंने सलाम का जवाब देने के बाद कहा स्वागत है नेक नबी और अच्छे भाई. जब आगे बढ़ा तो वह रोने लगे उन से पूछा गया कि आप क्यों रो रहे हैं? तो उन्होंने कहाः मैं इस पर रो रहा हूँ कि यह लड़का मेरे बाद नबी बना कर भेजा गया लेकिन जन्नत में उसके अनुयाई मेरी उम्मत से अधिक होंगे.

• सातवें आसमान पर:

फिर जीब्रील (अलैहिस्सलाम) मुझे लेकर सातवें आसमान की ओर गए और दरवाजा खुलवाया. पूछा गया कौन साहब आए हैं? कहा कि जीब्रील. पूछा गयाः और अपने साथ कौन साहब आए हैं? जवाब दिया कि मुहम्मद (पैगंबर) पूछा गयाः क्या उन्हें बुलाने के लिए भेजा गया था? कहा कि हाँ. तब कहा कि उनका और आपका स्वागत है, क्या ही अच्छे आने वाले हैं वे, जब अंदर गए तो वहाँ इब्राहीम (अलैहिस्ससलाम) उपस्थित थे.

जीब्रील (अलैहिस्सलाम) ने कहा कि यह आपके जद्दे अमजद हैं, उन्हें सलाम करें. मैंने उन्हें सलाम किया तो उन्होंने जवाब दिया और कहा आपका स्वागत है, नेक नबी और नेक बेटे। फिर सिदरतुल मुन्तहा मेरे सामने कर दिया गया मैंने देखा कि इसके फल हिज्र (स्थान) के मटकों की तरह (बड़े) थे और उसके पत्ते हाथियों के कान की तरह थे। जीब्रील (अलैहिस्सलाम) ने कहा कि यह सिदरतुल मुन्तहा है, वहाँ चार नदियां देखीं, दो नीचे की ओर और दो ऊपर की ओर, मैंने पूछाः जीब्रील ये क्या हैं? उन्होंने बताया कि दो अंदर वाली नदियां जन्नत में हैं, और दो बाहर वाली नदियां नील और फरात हैं।

शबे मेराज का असल तोहफा :

फिर मेरे सामने बैतुल मामूर को लाया गया, वहाँ मेरे सामने तीन बर्तन प्रस्तुत किए गए एक में शराब दूसरे में दूध और तीसरे में शहद था. मैंने दूध का बर्तन ले लिया तो जीब्रील (अलैहिस्सलाम) ने फ़रमायाः यही प्रकृति है, और आप तथा आपकी उम्मत इसी पर कायम हैं, फिर मुझ पर दिन और रात में पचास नमाज़ें अनिवार्य की गईं, वापस हुआ और मूसा के पास से गुज़रा तो उन्होंने पूछाः किस चीज़ का आपको आदेश हुआ?

मैंने कहाः कि दैनिक पचास समय की नमाज़ो का।

मूसा (अलैहिस्सलाम) ने कहाः लेकिन आपकी उम्मत में इतनी ताकत नहीं है। वल्लाह मैं इससे पहले लोगों को आज़मा चुका हूँ, और इस्राएल के साथ मेरा सख्त अनुभव है। इसलिए अपने रब के सामने जाइए और उनमें कटौती के लिए निवेदन कीजिए। अतः मैं अल्लाह के दरबार में गया, और कमी के लिए पूछा तो दस समय की नमाज़ें कम कर दी गईं। फिर जब वापसी में मूसा (अलैहिस्सलाम) के पास से गुज़रा तो उन्होंने फिर वही सवाल किया फिर उन्हों ने कहा कि आप अल्लाह की सेवा में दोबारा जाइए, उस बार भी दस समय की नमाज़ें कम कर दी।

फिर मैं मूसा (अलैहिस्सलाम) के पास से गुज़रा तो उन्होंने वही मांग तीसरी बार भी दोहराई, अतः इस बार भी अल्लाह के दरबार में उपस्थित हो कर दस समय की नमाज़ें कम कराईं, मूसा (अलैहिस्सलाम) के पास फिर गुजरा, उन्होंने फिर यही राय जाहिर की, फिर बारगाहे इलाही में हाज़िर हुआ तो मुझे दस समय की नमाज़ का आदेश हआ, मैं वापस होने लगा तो फिर मूसा (अलैहिस्सलाम) ने वही कहा, अब बारगाहे इलाही में उपस्थित हुआ तो दैनिक पाँच समय की नमाज़ों का आदेश शेष रहा. मूसा (अलैहिस्सलाम) के पास आया तो आपने कहा अब कितना कम हुआ?

*मैंने हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) को बताया कि दैनिक पांच बार की नमाज़ों का आदेश हुआ है।

– कहा कि आपकी उम्मत इसकी भी ताक़त नहीं रखती, मेरा तजरबा पहले लोगों से हो चुका है और इस्राइलियों का मुझे कड़वा अनुभव है, अपने रब के दरबार में फिर हाज़िर हो कर नमाज़ में कटौती के लिए निवेदन करें।

आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः मैं ने अल्लाह सर्वशक्तिमान से सवाल कर चुका और अब मुझे शर्म आती है. अब मैं बस इसी पर राज़ी हूँ. आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया कि फिर जब मैं वहां से गुजरने लगा तो एक आवाज़ लगाने वाले ने आवाज़ लगाईः “मैं अपना आदेश जारी कर दिया, ऐ मुहम्मदः(स.) अब हर दिन और रात में पांच नमाज़ें ही हैं और हर नमाज़ दस नमाज़ों के बराबर है। अतः यह (गिनती में पांच हैं परन्तु पुण्य के एतबार से) पचास नमाज़ें हैं।” – (बुखारी, मुस्लिम)

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