Contents
- १. घर सुकून की जगह है
- २. नेक बीवी का इंतिखाब
- ३. घर वालों की तालीम और उनकी तरबियत, घर वालों को दीन सिखाना
- ४.वक्त की पाबन्दी – सोने और जागने का वक़्त
- ५. घर में इबादत की जाए – नमाज़
- ६. अल्लाह का ज़िक्र और कुरआन की तिलावत
- ७. घर में सूरह बकराह की किरात
- ८. मुन्कर और बे फायदा चीज़ों का घर से निकालना
- ९. कुत्ते को घर से निकालना
- १०. गाने और मौसीकी मुमानियत
- ११. बाज़ हलाक करने वाली चीज़ें
- १२. कुफ्फारों की मुशाबियत में शिरकत
- १३. बात में नरमी और बेपर्दगी
१. घर सुकून की जगह है
अल्लाह तआ़ला ने फ़रमाया:
“और अल्लाह ने तुम्हारे घरों को तुम्हारे लिए सुकून की जगह बनाया।”
(सूरह अल नहल 80)
२. नेक बीवी का इंतिखाब
अल्लाह के रसूल ﷺ ने फ़रमाया:
“औरत से चार चीज़ों की बुनियाद पर निकाह किया जाता है । उस के माल, हसब व नसब, खुबसूरती और उस के दीन की बुनियाद पर, तो तुम दीन वाली को चुनो तुम्हारे हाथ खाक आलूद हों ।
(मुत्तफकुन अलैह, अबू दाऊद, इब्ने माजा) रावी अबू हुरैराह
(स़ही़ह़ अल जामे 3003)
३. घर वालों की तालीम और उनकी तरबियत, घर वालों को दीन सिखाना
अल्लाह तआ़ला ने फ़रमाया:
“ऐ ईमान वालों ! तुम अपने आप को और अपने घर वालों को जहन्ऩम की आग से बचाओ।”
(सूरह अल तहरीम 66)
अली रज़िअल्लाहु अ़न्हु (قُوۡۤا اَنۡفُسَکُمۡ وَ اَہۡلِیۡکُمۡ نَارًا) की तफ्सीर में फ़रमाते हैं:
“अपने आप को और अपने घर वालों को भलाई की तालीम दो।”
(इमाम ज़हबी ने तलखीस में बुखारी व मुस्लिम की शर्त पर कहा है ।)
(हाकिम 3826)
४.वक्त की पाबन्दी – सोने और जागने का वक़्त
अबूबर्ज़ा रज़िअल्लाहु अ़न्हु फ़रमाते हैं:
“अल्लाह के रसूल ﷺ इशा से पहले सोने और उसके बाद बात चीत करने को नापसंद करते थे।”
(बुखारी 535, मुस्लिम 1025) अल्फ़ाज़ बुखारी के हैं ।
५. घर में इबादत की जाए – नमाज़
अल्लाह के रसूल ﷺ ने फ़रमाया:
“जब तुम में से कोई आदमी मस्जिद में अपनी नमाज़ पढले तो अपनी नमाज़ का कुछ हिस्सा अपने घर के लिए भी रख छोड़े इस लिए के अल्लाह तआ़ला उस की नमाज़ों के ज़रिये से उसके घर में ख़ैर रखता है।”
(अहमद, मुस्लिम और इब्ने माजा ने जाबिर रज़िअल्लाहु अ़न्हु
और दारकुत्नी ने अनस रज़िअल्लाहु अ़न्हु से रिवायत किया है ।)
(स़ही़ह़ अल जामे 731)
६. अल्लाह का ज़िक्र और कुरआन की तिलावत
अल्लाह के रसूल ﷺ ने फ़रमाया:
“उस घर की मिसाल जिस में अल्लाह का ज़िक्र किया जाता हो और जिस में ना किया जाता हो ज़िंदा और मुर्दा की तरह है।”
(मुस्लिम 1299) रावी: अबू मूसा रज़िअल्लाहु अ़न्हु
७. घर में सूरह बकराह की किरात
अल्लाह के रसूल ﷺ ने फ़रमाया:
“तुम अपने घरों को क़बरस्तान ना बनाओ, बिलाशुबा शैतान उस घर से भागता है जिस घर में सूरह बकराह पढ़ी जाती हो।”
(अहमद, तिर्मिज़ी) रावी: अबू हुरैराह
(स़ही़ह़ अल जामे 2727)
और तिर्मिज़ी में इस तरह हैं:
और यक़ीनन वो घर जिस में सूरह बकराह पढ़ी जाती हो उस में शैतान दाखिल नहीं होता।
(तिर्मिज़ी 2877)
८. मुन्कर और बे फायदा चीज़ों का घर से निकालना
अल्लाह के रसूल ﷺ ने फ़रमाया:
“जिसने किसी चीज़ को लटकाया तो उसके सुपुर्द कर दिया गया”
( तिर्मिज़ी )
रावी: अब्दुल्लाह बिन उकैम अबी माबद अल जोहनी रज़िअल्लाहु अ़न्हु
( ह़सन लिगैरिही स़ही़ह़ अत्तर्गिब 3456 )
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अल्लाह के रसूल ﷺ ने फ़रमाया:
“जिसने तावीज़ लटकाया उसने शिर्क किया।”
( अहमद, हाकिम ) रावी: उक़्बा बिन आ़मिर
( स़ही़ह़ अल जामे 6394 ) ( स़ही़ह़ )
९. कुत्ते को घर से निकालना
अल्लाह के रसूल ﷺ ने फ़रमाया:
“फ़रिश्ते ऐसे घर में दाखिल नहीं होते जिसमें कुत्ता हो और ना ऐसे घर में जाते हैं जिसमें तस्वीर हो।”
( अहमद, मुत्तफकुन अलैह, नसाई, तिर्मिज़ी, इब्ने माजा )
रावी: अबू तलहा ( स़ही़ह़ अल जामे 7262 )
१०. गाने और मौसीकी मुमानियत
इमरान बिन हुसैन रज़िअल्लाहु अ़न्हु फ़रमाते हैं:
अल्लाह के रसूल ﷺ ने फ़रमाया:
“इस उम्मत में ज़मीन का धंसना, लोगों के चेहरों का बदलना और पत्थरों की बारिश होने का अ़ज़ाब होगा । मुसलामानों में से एक आदमी ने कहा: ए अल्लाह के रसूल ! वो कब होगा ? आप ﷺ ने फ़रमाया: जब गाने वालिया और गाने बाजे के आलात ज़्यादा हो जाएं और शराब पीना आम हो जाएं।”
( तिर्मिज़ी ) रावी: इमरान बिन हुसैन
( स़ही़ह़ अल जामे 4273 ) ( स़ही़ह़ )
११. बाज़ हलाक करने वाली चीज़ें
इब्ने अब्बास रज़िअल्लाहु अ़न्हु फ़रमाते हैं:
“अल्लाह के रसूल ﷺ ने उन मर्दो पर लानत भेजी है जो औरतों की मुशाबहत करते हैं और उन औरतों पर लानत की है जो मर्दो की मुशाबहत करती हैं।”
( बुखारी: 5885 )
१२. कुफ्फारों की मुशाबियत में शिरकत
अल्लाह के रसूल ﷺ ने फ़रमाया:
“जो किसी क़ौम से मुशाबहत इख़्तियार करे वो उन्हीं में से है।”
( अबूदाऊद ) रावी: इब्ने उमर
(मोजमुल वसीत: हुज़ैफा रज़िअल्लाहु अ़न्हु)
( स़ही़ह़ अल जामे 6149) (स़ही़ह़)
१३. बात में नरमी और बेपर्दगी
अल्लाह तआ़ला ने फ़रमाया:
“ऐ नबी की बीवियों! तुम आम औरतों की तरह नहीं हो, अगर तुम तक़्वा इख़्तियार करना चाहती हो तो बातों में लचक ना पैदा करो वरना जिसके दिल में बीमारी है वो तमऩ्ना करेगा। और तुम सीधी सीधी बात करो, अपने घरों में ठहरी रहो और ज़माने जाहिलिय्यत की औरतों की तरह ज़िनत इख़्तियार ना करो।”
( सूरह अल अह़ज़ाब 32, 33 )
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