हज़रत जुबैर बिन अव्वाम (र.अ) भी उन खुशनसीब लोगों में हैं जिन को रसूलुल्लाह (ﷺ) ने दुनिया में ही है। जन्नत की खुशखबरी सुना दी थी। आप इस्लाम लाने वालों में चौथे या पाँचवे शख्स है। पंद्रह साल की उम्र में इस्लाम कबूल किया और हबशा और मदीना दोनो की हिजरत की। रसूलुल्लाह (ﷺ) ही के साथ तमाम गज़वात में शरीक रहे। गज़व-ए-खन्दक के मौके पर रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : कौन है जो दुशमन के लशकर की खबर लाए?
हज़रत जुबैर (र.अ) ने अर्ज़ किया के मै खबर लाऊँगा। इस पर रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : हर नबी के लिए हवारी होते हैं और मेरे हवारी जुबैर हैं। हज़रत अली ने फर्माया के मै ने रसूलुल्लाह (ﷺ) से सुना है के आप ने फर्माया : “तल्हा व जुबैर जन्नत में मेरे पड़ोसी होंगे।”
सन ३६ हिजरी में जंगे जमल के मौके पर इब्ने जुरमूज़ ने आप को शहीद कर दिया।
हज़रत मुआज बिन जबल (र.अ) हज़रत मुआज़ बिन जबल (र.अ) ने जवानी में हज़रत मुस्अब बिन उमैर (र.अ) के हाथ पर इस्लाम कबूल किया, जब हुजूर (ﷺ) मदीना मुनव्वरा पहुंचे,तो हज़रत मुआज़ (र.अ) हुजूर (ﷺ) की खिदमत में हर वक़्त रहते, आप उन छे सहाबा में से थे, जिन लोगों ने हुजूर (ﷺ) के ज़माने में पूरा कुरआन जमा कर लिया था। उन की इल्मी सलाहियत की वजह से हुजूर (ﷺ) ने फतहे मक्का के बाद मक्का में दीन सिखाने के लिए उन को मुअल्लिम मुकर्रर किया, इस तरह जब अहले यमन ईमान दाखिल हुए, तो उन की तालीम व तरबियत के लिए उन्हीं को रवाना…
सिरतून नबी (ﷺ) सीरीज | Part 21 Seerat un Nabi (ﷺ) Series: Part 21 पेज: 171 जब तमाम लोग बैअत कर चुके, तो राफेअ बिन मालिक (र.अ) ने कहा, ऐ अल्लाह के रसूल (ﷺ) ! हम चाहते हैं कि आप कोई ऐसा आदमी हमारे साथ करें, जो कारी हो, मुबल्लिग़ हो, शरीअत को खूब जानता हो, अच्छी तकरीर कर सकता हो, दुश्मनों की ज्यादतियों से न घबराए, न डरे। इस्लाम के पहले दायी : मुसअब बिन उमैर (र.अ) हुजूर (ﷺ) ने फ़रमाया, ठीक है मैं कल सुबह तुम्हारे पास मुसबब बिन उमैर को भेजंगा, जो तुम्हारे साथ यसरब जा कर तब्लीग करेंगे। राफेअ ने कहा, बहुत खूब…
सिरतून नबी (ﷺ) सीरीज | Part 37 Seerat un Nabi (ﷺ) Series: Part 37 इस्लाम के फ़िदाकार मुबल्लिग़ अगरचे मुसलमान उहद में भी कुफ़्फ़ार को हरा चुके थे, मुश्रिक बद-हवास हो कर माल व अस्बाब और अपनी औरतों को छोड़ कर भाग खड़े हुए थे, मुसलमानों ने इन भगोड़ों का सामान लूटना शुरू कर दिया था, लेकिन उहद की घाटी में जो दस्ता अब्दुल्लाह बिन जुबैर की सरबराही में लगाया गया था, कुफ्फ़ार को हार कर भागते देख कर और मुसलमानों के साथ वह दस्ता भी पीछा करने में दौड़ पड़ा था। खालिद ने जब उस घाटी को खाली देखा, तो वह इस तरफ़ से हमलावर हो…
सिरतून नबी (ﷺ) सीरीज | Part 45 ✦ खंदक की लड़ाई, खंदक़ खोदने का मशविरा, अल्लाह की मदद, क़बीला बनु नजीर के यहूदी देश से निकाले जाने पर कुछ तो मुल्क शाम चले गये थे और ...
सिरतून नबी (ﷺ) सीरीज | Part 20 Seerat un Nabi (ﷺ) Series: Part 20 पेज: 165 यमन के सरदार तुफ़ैल बिन अम्र का ईमान लाना अब सन् १० नबवी खत्म हो गया था। यह साल मुसलमानों और हुज़र (ﷺ) पर इतना सख्त गुजरा कि यह साल मशहूर हो गया। इसी साल अबू तालिब का इन्तिकाल हुआ। इसी साल हजरत खदीजा का इन्तिकाल हुआ। इसी साल हुजूर (ﷺ) तायफ़ तशरीफ़ ले गये। इसी साल कुरैश ने जुल्म का पहाड़ तोड़ने में इंतिहा भी कर दी। पर हुजूर (ﷺ) हर ग़म को सब के साथ बर्दाश्त करते रहे और हर जुल्म को सहते रहे और पांवों में जरा भी…
सिरतून नबी (ﷺ) सीरीज | Part 42 ✦ बनी मुस्तलिक़ की खूंरेज़ लड़ाई ✦ हजरत उमर (र.अ) की बहादुरी ✦ हारिस की बेटी जुवैरिया ...
सिरतून नबी (ﷺ) सीरीज | Part 12 Seerat un Nabi (ﷺ) Series: Part 12 पेज: 101 हजरत उमर इस्लाम की पनाह में हजरत उमर कुरैश की नस्ल से थे, जो आठवीं पीढ़ी में हुजूर सल्ल. से मिल जाता है। बड़े बहादुर और जोशीले थे। वह नवजवान थे, उन की उम्र २७ वर्ष की थी। गुस्सा भी उन्हें था। तमाम अरब में वह 'अरब के शेर' के नाम से मशहुर थे। आप अच्छी तरह से लिखना-पढ़ना जानते थे। अरबी जुबान के माहिर थे। आप बहादुर भी थे और निडर भी। जब और जिस से उलझ जाते थे, वही दब जाए, तो जाए पर आप न दबते थे। तमाम…
सिरतून नबी (ﷺ) सीरीज | Part 18 Seerat un Nabi (ﷺ) Series: Part 18 तायफ़ वालों की गुस्ताखियां मक्का के सरदार कुफ्र व शिर्क में हद से ज्यादा बढ़े हुए थे। वे उन गरीबों को जिन के दिल इस्लाम की तरफ़ झुक गये थे, मुसलमान होने से रोकते थे और जो मुसलमान हो गये थे, उन्हें लालच देकर, धमकी दे कर अपने बाप-दादा के मजहब में वापस लाने की कोशिश करते थे। मगर जो लोग मुसलमान हो गये थे, वे किसी डर या लालच से भी डगमगाने वाले न थे। मुसलमान होने के बाद तो वे और पक्के हो जाते थे। इन हालात में हुजूर (ﷺ) ने…
सिरतून नबी (ﷺ) सीरीज | Part 9 Seerat un Nabi (ﷺ) Series: Part 9 पेज: 76 कूफ्फारे मक्का बिगड़ कर चले गये थे। उन्होंने जाते ही तमाम लोगों को, जो उन के इन्तिजार में बैठे हुए थे, कह दिया कि मुहम्मद सल्ल. सुलह पर तैयार नहीं हैं। हम ने अबूतालिब के सामने हुज्जत पूरी कर ली है। अबू तालिब से कह आए हैं कि मुहम्मद सल्ल. का साथ छोड़ दें, वरना उन के खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी। हम उन्हें गौर करने लिए कल तक की मोहलत दे आए हैं। अगर उन्हों ने अपने भतीजे को समझा दिया और वह हमारे माबूदों की मुखालफ़त से बाज आ…
सिरतून नबी (ﷺ) सीरीज | Part 26 Seerat un Nabi (ﷺ) Series: Part 26 पेज: 216 सफर ए हिजरत के मुख्तलिफ वाक़ियात हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सुराका को अमाननामा दिला कर रवाना हुए। दोपहर का वक्त था, इसलिए धूप में तेजी भी थी और हवा भी बहुत गर्म थी। रेत इतनी तप रही थी कि जिस्म से लगते ही जिस्म तपने लगता। चूंकि डर था कि कुफ्फारे मक्का हुजूर (ﷺ) का पीछा कर सकते हैं, इसलिए अब्दुल्लाह बिन उरकत ने आम और सीधे रास्ते को छोड़ दिया था इस पूरे नये रास्ते पर दूर-दूर तक न साया था, न नखलिस्तान कि बैठकर दो घड़ी आराम किया…
सिरतून नबी (ﷺ) सीरीज | Part 40 ✦ बनू नज़ीर की लड़ाई ✦ नबी (ﷺ) और सहाबा के क़त्ल की साजिश ✦ आमिर बिन तुफ़ैल के कहने से बनू सलीम ने सत्तर मुसलमानों को बेगुनाह नमाज पढ़ते हुए बड़ी बेदर्दी से शहीद कर दिया था ...
सिरतून नबी (ﷺ) सीरीज | Part 28 Seerat un Nabi (ﷺ) Series: Part 28 पेज: 234 मुसलमानों में आपसी समझौते का हुक्म हुजूर (ﷺ) हजरत अबू अय्यूब के मकान में ठहरे थे। चूँकि उनके मकान के सामने एक बंजर जमीन पड़ी हुई थी, इस लिए मुसलमान रोजाना उस मैदान में जमा होते और हुजूर (ﷺ) उस के पास पहुँच कर वाज व नसीहत फ़रमाते थे। जो लोग मक्का से अपने वतन, अपने घरों को छोड़ आए थे, वे मुहाजिर कहलाते थे और जो लोग यसरब (मदीने) के रहने वाले थे, वे मुसलमान होकर मुहाजिरों की मदद कर रहे थे, वे अन्सार कहलाने लगे। मुहाजिरों और अन्सार में…
सिरतून नबी (ﷺ) सीरीज | Part 39 मुसलमानो के साथ धोका, दरिंदगी की इन्तिहा, सज्दे में ही शहीद कर दिया, हारिस का बच्चा, हजरत खुबैब और हजरत जैद शहादत ...
सिरतून नबी (ﷺ) सीरीज | Part 30 Seerat un Nabi (ﷺ) Series: Part 30 बद्र की लड़ाई अबू सूफ़ियान ने मुसलमानों के आने की खबर सुन कर जमजम बिन अम्र को इसलिए मक्का भेजा था, ताकि वे उस की मदद के लिए आ जाएं। जमजम ने मक्का में जा कर अबू सुफ़ियान का पैगाम मक्का वालों तक पहुंचा दिया। फ़ौरन कुफ्फारे कुरैश ने मज्लिसे शूरा बुलायी। चूँकि कुरैश की खुशहाली और कूवत का राज शाम मुल्क से तिजारत ही में था, और मुसलमानों के हमले से इस तिजारत के बन्द हो जाने का डर था, इस लिए मज्लिसे शूरा ने तै कर दिया कि फ़ौरन अबू सुफ़ियान…
ग़ज़व-ए-खन्दक | खंदक की लड़ाई ग़ज़व-ए-खन्दक की वजह रसूलुल्लाह (ﷺ) ने यहूद की बद अहदी और साजिशों की वजह से मदीना से निकल जाने का हुक्म दिया, तो वह खैबर और वादियुलकुरा में जा बसे, मगर वहाँ पहुँच कर भी उन की अदावत और दुश्मनी की आग ठंडी नहीं हुई, उन्होंने मुसलमानों को सफह-ए-हस्ती से मिटाने के लिये बनू नज़ीर के २० सरदारों का एक वफ़्द कुरैशे मक्का के पास भेजा और उन्हें रसूलुल्लाह (ﷺ) से मुक़ाबले और जंग के लिये आमादा किया। किनाना बिन रबी ने बनू गितफान को खैबर की जमीन व बागात की आधी पैदावार देने का वादा कर के मुसलमानों के…
MD. Salim Shaikh
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