हज्जतुल विदाअ

फतहे मक्का के बाद जब पूरे अरब में मजहबे इस्लाम की खूबियाँ अच्छी तरह वाजेह हो गई और लोग फौज दर फ़ौज शिर्क व बुतपरस्ती को छोड़ कर इस्लाम कबूल करने लगे, तो अब वक़्त था के हुज़र (ﷺ) खुद अमली तौर पर फरीज़-ए-हज को अन्जाम देकर इस्लाम के इस अज़ीम रुक्न की शान व शौकत और इस की अदायगी के सही तरीकों को बयान फरमाए और शिरकिया बातों और जाहिली, रुसूम व आदात से उसे पाक कर दें। 

चुनान्चे रसूलुल्लाह (ﷺ) ने हज का इरादा किया और २५ या २६ ज़िल क़ादा सन १० हिजरी को ज़ोहर की नमाज़ के बाद मदीना मुनव्वरा से रवाना हुए, तमाम अजवाजे मुतहहरात और सय्यदा फातिमतु जहरा आप के साथ थीं और सहाब-ए-किराम एक लाख से जाइद की तादाद में आप के साथ शरीक थे, मक़ामे जुलहुलैफा में गुस्ल फर्मा कर एहराम बाँधा।

४ जिलहिज्जा को इतवार के दिन मक्का मुकर्रमा पहुँचे, सब से पहले खान-ए-काबा का में तवाफ किया और सफा व मरवा की सई फ़रमाई और ८ ज़िलहिज्जा से हज के अरकान को अदा करना शुरू फ़र्माया। 

यह आप की मुबारक ज़िन्दगी का आख़री हज था, इसी लिये इस को “हज्जतुल विदा” कहा जाता है।

📕 इस्लामी तारीख

To be Continued …




WhatsApp Channel Join Now

Comment

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *