मुसलमानों को सफह-ए-हस्ती से मिटाने के लिये मुश्रिकीने मक्का एक हज़ार का फौजी लश्कर लेकर मक्का से निकले, सब के सब हथियारों से लैस थे, जब हुजूर (ﷺ) को इत्तेला मिली, तो आप (ﷺ) उन के मुकाबले के लिये अपने जाँनिसार सहाबा को ले कर मदीना से निकले, जिन की तादाद तीन सौ तेरा या कुछ ज़ायद थी, जब के मुसलमानों के पास सत्तर ऊँट, दो घोड़े और आठ तलवारें थीं, यह मैदाने बद्र में हक व बातिल की पहली जंग थी, मुश्रिकीन ने पहले ही से पानी के चश्मों पर कब्जा कर लिया था।
जिस की वजह से मुसलमानों को खुश्क रेगिस्तान में पड़ाव डालना पड़ा, जहाँ वुजू और गुस्ल हत्ता के पीने के लिये भी पानी मौजूद नहीं था, चुनान्चे हुजूर (ﷺ) सहाबा की सफें दुरुस्त फ़रमा कर खेमे में तशरीफ ले गए और सज्दे की हालत में यह दुआ फर्माई: “ऐ अल्लाह! अगर आज तूने इस मुट्ठी भर जमात को हलाक कर दिया, तो रुए ज़मीन पर तेरी इबादत करने वाला कोई नहीं रहेगा।” अल्लाह तआला ने इस दुआ की बरकत से बारिश नाजिल फर्माई, जिस से तमाम ज़रूरतें पूरी हो गईं, मैदाने जंग भी साज़ गार हो गया: जिस की वजह से मुसलमानों को शानदार फतह नसीब हुई।
कुरैश के ७० अफराद मारे गए, ७० अफराद कैद किये गए, जब के मुसलमानों में से १४ सहाबा शहीद हुए।