♥ मफहूम ऐ हदीस: अबू सोबान (रज़ीअल्लाहु अन्हु) से रिवायत है के नबी-ऐ-करीम (सलाल्लाहो अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया –
बेशक मैंने अपने रब से सवाल किया : “या रब! मेरी उम्मत को कहतसाली से हलाक न करना, इनपर कोई ऐसा गैरमुस्लिम दुश्मन मुसल्लत ना हो जो इनकी मरकज़ीयत को बिलकुल नेस्तो-नाबूद कर दे !”
अल्लाह रब्बुल इज्ज़त ने फ़रमाया : “ऐ नबी(सलाल्लाहो अलैहि वसल्लम) ! मेरे फैसले में कोई रद्दो बदल नहीं हो सकता, मैंने आपकी उम्मत के हक में ये दुआ कबूल कर ली है के इन्हें कहतसाली से हलाक नहीं करूँगा और न इनपर कोई गैरमुस्लिम दुश्मन मुसल्लत करूँगा जो इनकी जड़ें उखाड फेंके,.. जब तक के आपकी उम्मत आपस में क़त्लो-गारत न करे और एक दूसरे को कैदी तक बना ले..”
– (सही मुस्लिम किताब उल फितन २८८९)
✦ सबक:
तो इस हदीस में मालूम हुआ के – अल्लाह हमे किसी गैरमुस्लिम के हाथो तबतक हलाक नहीं करेगा जब तक के हम आपस में एक दुसरे के दुश्मन न बन जाये ,. और यही हमारे आबा-ओ-अजदाद की तारिख से भी हमे पता चलता है के ,.. जब वो ३१३ कुरानो सुन्नत के मुताबिक इस दिन पर अमल कर रहे थे तब वो हजारो पर ग़ालिब आ गये , अल्लाह रब्बुल इज्ज़त ने उन्हें ऐसी हुकूमते अता की जिसपर आज भी सारी दुनिया रश्क करती है ,..
लेकिन उनके बाद जब हमने जहालत को थाम लिया, आपस में दुनिया परस्ती के लालच में अपने भाइयो से ही हम लड़ने झगड़ने लग गए, अपनी मस्जिदों के बहार तख्तिया लगाकर अपने ही भाइयो को मस्जिदों में आने से रोकने लगे तब अंजाम वोही हुआ जो आज आप और हम देख रहे है ,
खैर अब भी वक्त है मेरे अजीजो, लौट आओ और अल्लाह उसके रसूल सलाल्लाहू अलैहि वसल्लम की तालीमात की तरफ इस से पहले के देर हो जाये ,..
– अल्लाह तआला हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे ,
– हमे कुरानो सुन्नत का मुत्तबे बनाये ,
– जबतक हमे जिंदा रखे इस्लाम और ईमान पर जिन्दा रखे,
– खात्मा हमारा ईमान पर ,..
!!! वा’आखिरू दावा’ना अलाह्म्दुलिल्लाही रब्बिल आलमीन !!!
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