रसूलुल्लाह (ﷺ) पर मैदाने अरफात में जुमा के दिन अस्र के बाद आख़री हज के मौके पर एक लाख से जाइद सहाब-ए-किराम के दर्मियान कुरआन की आयत नाज़िल हुई, वही के बोझ से आप (ﷺ) की ऊँटनी बैठ गई, उस में अल्लाह तआला ने खुशखबरी देते हुए फर्माया : “आज मैं ने तुम्हारे लिये तुम्हारा दीन मुकम्मल कर दिया और तुम पर अपनी नेअमत पूरी कर दी और हमेशा के लिये तुम्हारे लिये दीने इस्लाम को पसन्द कर लिया।”
इस आयत में एलान कर दिया गया के इस्लाम ही एक ऐसा दिन (मजहब) है, जो कयामत तक आने वाली नस्ले इन्सानी की हिदायत और रहबरी और दुनिया व आखिरत में कामयाबी की जमानत दे सकता है, इस के अलावा दुनिया का कोई मजहब इन्सानों की नजात का जरिया और अल्लाह के यहाँ कबूलियत व कामयाबी का मेयार नहीं बन सकता।
इस लिये अब कयामत तक किसी नबी या रसूल और नई किताब व शरीअत की बिल्कुल जरूरत नहीं, इस्लाम आख़री दीन और हुजूर (ﷺ) आखरी रसूल हैं, आप के बाद कोई नबी नहीं आएगा।
To be Continued …