Contents
- दुरूद शरीफ का मतलब
- दुरूद शरीफ़ की अहमियत
- १. दुरुद शरीफ न पढ़ने वाले पर फ़रिश्ते की लानत:
- २. दुरूद न भेजने वाला कजूंस है:
- दुरूद शरीफ की फ़ज़ीलत
- दुरूद शरीफ के अलफाज़
- दुरूदे इब्राहिम १:
- दुरुद शरीफ २:
- दुरुद शरीफ ३ : सबसे छोटा दुरुद:
- रसूलल्लाह (ﷺ) पर सलाम भेजने के अलफाज़
- अत्तहियात / तशहुद:
- दुरूद शरीफ पढ़ने के मौके
- गैर मसनून दुरूद व सलाम:
दुरूद शरीफ़ | Darood Sharif In Hindi
अहमियत, फ़ज़ीलत और बरकत का मुकम्मल तरीक़ा
۞ बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम ۞
अल्लाह के नाम से शुरू जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
सब तारीफे अल्लाह तआला के लिये हैं जो सारे जहानों का पालने वाला है।
हम उसी की तारीफ करते हैं और उसी से मदद और माफी चाहते हैं। अल्लाह की लातादाद सलामती, रहमतें और बरकतें नाज़िल हों मुहम्मद सल्ल. पर, आप की आल व औलाद और असहाबे रज़ि. पर। व बअद!
दुरूद शरीफ का मतलब
अल्लाह तआला का नबी सल्लललाहु अलैहि व सल्लम पर दुरूद भेजने का मतलब आप (ﷺ) पर रहमत नाज़िल करना है और फरिश्तों व मुसलमानों का आप (ﷺ) पर दुरूद भेजने का मतलब आप (ﷺ) के लिए रहमत की दुआ करना है।
1. अल्लाह के रसूल सल्ल. ने फ़रमाया:
“तुम में से कोई शख़्स जब तक अपनी नमाज़ की जगह पर जहां उसने नमाज़ पढ़ी है, बैठा रहे और उसका वुजू न टूटे तब तक फ़रिश्तें उस पर दुरूद भेजते रहते हैं और यूं कहते हैं ‘’या अल्लाह! इसको बख़्श दे और इस पर रहम फ़रमा।” 1
2. “सफ के दाई तरफ के लोगों पर अल्लाह रहमत नाज़िल करता है और फ़रिश्ते उनके लिए दुआ ए रहमत करते हैं।” 2
3. ‘“पहली सफों के लोगों पर अल्लाह रहमत नाज़िल करता है और फ़रिश्तें दुआए रहमत करते हैं।” 3
4. ‘“नबी सल्ल. के अलावा किसी पर दुरूद न भेजो। अलबत्ता मुसलमान मर्दो व औरतों के लिए अस्तगफार करो। 4
दुरूद शरीफ़ की अहमियत
१. दुरुद शरीफ न पढ़ने वाले पर फ़रिश्ते की लानत:
आप (ﷺ) का इस्म मुबारक (नाम) सुनकर दुरूद न भेजने वाले के लिए जिब्रील अलैहि ने बददुआ की और आप सल्ल. ने ” आमीन’ कही।
5. कअब बिन अजराह रज़ि. का बयान है कि एक दिन अल्लाह के रसूल (ﷺ) मिम्बर की पहली सीढ़ी पर चढ़े तो फ़रमाया “आमीन” फिर दूसरी सीढ़ी पर चढ़े तो कहा “आमीन” फिर तीसरी सीढ़ी पर चढ़े तो फ़रमाया “आमीन”।
खुत्बे के बाद आप सल्ल. ने फ़रमाया “जिब्रील अलैहि आए और कहा “हलाकत है उस शख़्स के लिए जिसने रमजान का महीना पाया लेकिन अपने गुनाह न बख्शवाए तो मैंने जवाब में कहा ‘आमीन’।”
जब में दूसरी सीढ़ी पर चढ़ा तो जिब्रील अलैहि ने कहा “हलाकत है उस शख़्स के लिए जिसके सामने आप सल्ल. का नाम लिया जाए फिर वह आप सल्ल. पर दुरूद न भेजे तो मैंने जवाब में कहा ‘आमीन’।”
जब तीसरी सीढ़ी पर चढ़ा जिब्रील अलैहि. ने कहा “हलाकत हो उस शख़्स के लिए जिसने अपने मां-बाप या दोनों में से किसी एक को बुढ़ापे की उम्र पाया लेकिन उनकी ख़िदमत करके जन्नत हासिल न की तौ मैंने जवाब में कहा ‘आमीन’।” 5
२. दुरूद न भेजने वाला कजूंस है:
6. “जिसके सामने मेरा नाम लिया जाए और वह दुरूद न पढ़े तो वह बखील है।” 6
7. ‘’जिस मजलिस में लोग अल्लाह का ज़िक्र न करें और न नबी सल्ल. पर दुरूद न भेजें। वह मजलिस कयामत के दिन उन लोगों के लिए बाइसे हसरत होगी। चाहे नेक आमाल के बदले में जन्नत में चले जाए।” 7
8. “जो मुझ पर दुरूद पढ़ना भूल गया। उसने जन्नत का रास्ता खो दिया।” 8
9. ‘“जब तक नबी सल्ल. पर दुरूद न पढ़ा जाए, कोई दुआ कुबूल नहीं की जाती।” 9
दुरूद शरीफ की फ़ज़ीलत
दुरूद शरीफ की फजीलत में आप सल्ल. की कई हदीसें मिलती हैं। जैसे –
1. ” जिसने मुझ पर एक बार दुरूद भेजा, अल्लाह उस पर दस दफा रहमतें नाज़िल करेगा। उसके दस गुनाह माफ़ करेगा और दस दर्जे बुलन्द करेगा।” 10
2. “जो शख़्स मुझे जितना ज़्यादा दुरूद भेजेगा। वह कयामत के दिन मुझसे उतना ही क़रीब होगा।” (मिश्कात – 862-सही)
3. “जिसने मुझ पर दुरूद भेजा या मेरे लिए अल्लाह से वसीला मांगा। उसके लिए मैं क़यामत के दिन ज़रूर सिफारिश करूंगा।” (इस्माईल काजी सही)
4. जब अबि बिन कअब रज़ि. ने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल.! में अपनी दुआ का सारा वक्त दुरूद शरीफ पढ़ने के लिए वक्फ़ करता हूँ तो आप सल्ल. ने फ़रमाया ” यह तेरे सारे दुखों और गमो के लिए काफी होगा और तेरे गुनाहों की बख्शिश का ज़रिया होगा।” (मिश्कात – 868 – हसन)
5. ”अल्लाह तआला का फरमान है कि जो शख़्स आप (सल्ल.) पर दुरूद भेजेगा, मैं उस पर रहमत नाज़िल करूंगा और जो आप (सल्ल.) पर सलाम भेजेगा तो मैं भी उस पर सलाम भेजूगां।” (अहमद, मिश्कात – 875 – सही)
6. “जिसने दस दफा सुबह और दस दफा शाम के वक्त मुझ पर दुरूद भेजा। क़यामत के दिन उसे मेरी सिफारिश हासिल होगी।” (तबरानी – हसन)
7. अब्दुल्लाह बिन मसऊद रजि. जब दुआ करने लगे तो पहले अल्लाह की हम्द व सना की। फिर नबी सल्ल. पर दुरूद भेजा। फिर इसके बाद अपने लिए दुआ की तो नबी सल्ल. ने फ़रमाया ” (इस तरह) अल्लाह से मांगों, जरूर दिये जाओंगे।” फिर फ़रमाया “अल्लाह से मांगों! दिये जाओंगे।” (तिर्मिज़ी-मिश्कात – 870 – हसन)
8. “जिसने मुझ पर एक दफा दुरूद भेजा। अल्लाह उस पर दस रहमतें नाज़िल करेगा।” (मुस्लिम, मिश्कात-860)
9. “अल्लाह तआला (मुझ पर) एक दफा दुरूद पढ़ने वाले पर दस रहमतें नाज़िल करता है और एक दफा सलाम भेजने वाले पर दस दफा सलाम भेजता है।” (नसाई-1286-हसन)
10. “जिसने मुझ पर पर एक दफा दुरूद भेजा। अल्लाह उसके नामा ए आमाल में दस नेकियां लिखेगा।” (इस्माईल काज़ी – सही)
11. “जब तक कोई मुसलमान मुझ पर दुरूद भेजता रहता है। उस वक्त तक फ़रिश्तें उसके लिए रहमत की दुआ करते रहते हैं। अब जो चाहे कम (दुरूद) पढ़े और जो चाहे ज़्यादा पढ़े।” (इस्माईल काज़ी – हसन)
हमारे लिए ध्यान देने वाली बात यह है कि अलग-अलग हदीस में दुरूद शरीफ पढ़ने का अज्र व सवाब अलग-अलग बताया गया है, जिसकी वजह पढ़ने वाले के खुलूस ईमान, तक़वे और नीयत पर है।
दुरूद शरीफ के अलफाज़
दुरूदे इब्राहिम १:
اللهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَّ عَلَى آلِ مُحَمَّدٍ، كَمَا صَلَّيْتَ عَلَى إِبْرَاهِيمَ وَ عَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ، إِنَّكَ حَمِيدٌ مَّجِيدٌ اللَّهُمَّ بَارِكْ عَلَى مُحَمَّدٍ وَّ عَلَى آلِ مُحَمَّدٍ ، كَمَا بَارَكْتَ
عَلَى إِبْرَاهِيمَ وَعَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ، إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ
“अल्लाहुम्मा सल्ली अला मुहम्मदिन व अला आलि मुहम्मददिन कमा सल्लयता अला इब्राहीमा व अला आलि इब्राहीमा इन्न का हमीदुम मजीद।”
“अल्लाहुम्मा बारिक अला मुहम्मदिन व अला आलि मुहम्मदिन कमा बारकता अला इब्राहीमा व अला आलि इब्राहीमा इन्न का हमीदुम मजीद।”
तर्जुमा:
(ऐ अल्लाह! मुहम्मद सल्ल.) और आले मुहम्मद पर उसी तरह रहमत भेज जिस तरह तूने इब्राहीम अलैहि और उनकी आल पर रहमत भेजी है। तारीफ़ व बुजुर्गी तेरे ही लिए है।
ऐ अल्लाह ! मुहम्मद (सल्ल.) और आले मुहम्मद पर उसी तरह बरकत नाज़िल फ़रमा। जिस तरह तूने इब्राहीम (अलैहि.) और उनकी आल पर बरकत नाज़िल की। तारीफ व बुजुर्गी तेरे ही लिये है।
दुरुद शरीफ २:
”अल्लाहुम्मा सल्ला अला मुहम्मदिन व अला आलि मुहम्मद।”
(ऐ अल्लाह ! मुहम्मद (सल्ल.) और आले मुहम्मद पर अपनी रहमतें नाज़िल फ़रमा।)
(नसाई – 1295)
दुरुद शरीफ ३ : सबसे छोटा दुरुद:
सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
(ए नबी! आप पर सलामती हो।)
रसूलल्लाह (ﷺ) पर सलाम भेजने के अलफाज़
अत्तहियात / तशहुद:
“अत्तय्यिहातु लिल्लाहि वस्सलावातु वततय्यिबातु अस्सलामु अलैका अय्युहन्नबीयु व रहमतुल्लाहि व बरकातुहु, अस्सलामु अलैना व अला इबादिल्ला हिस्सा लिहीन। अश्हदु अल्ला इलाहा इल्ललाहु व अशहदु अन्ना मुहम्मदन अबदुहु व रसूलुहू”
(मेरी ज़बानी, जिस्मानी और माली तमाम इबादात सिर्फ अल्लाह ही के लिए हैं। ऐ नबी (सल्ल.) आप पर अल्लाह का सलाम उसकी रहमतें व बरकतें हो। हम पर भी और अल्लाह के सारे नेक बन्दों पर सलाम। मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के अलावा कोई माअबूद नहीं और यह भी कि मुहम्मद (सल्ल.) अल्लाह के बन्दे और रसूल हैं।)
(बुखारी – 831,835, नसाई – 1165 से 1169, इब्ने माजा, 899, मुस्लिम – 638 )
दुरूद शरीफ पढ़ने के मौके
1. नमाज़ ख़त्म करने से पहले: तश्हुद के बाद पढ़ना लाज़िम है। (नसाई – 1287, तिर्मिज़ी-3223, 3225-सही)
2. नमाज़े जनाज़ा में: नमाज़े जानने में दूसरी तक्बीर के बाद। (मुसनद शाफई – 581)
3. अजान के बाद: अज़ान सुनने के बाद दुआ मांगने से पहले। (मुस्लिम – 849, तिर्मिज़ी-3358)
4. ईमान वाले कहीं से भी और किसी भी वक्त दुरूद भेज सकते हैं: “मेरी कब्र को मेला न बनाओं और न ही अपने घरों को कब्रिस्तान बनाओं। तुम जहां कहीं भी हो मुझ पर दुरूद भेजते रहो। तुम्हारा दुरूद मुझे पहुंचा दिया जाता है। (मुसनद अहमद – सही)
5. “अल्लाह तआला ने मेरी उम्मत का सलाम मुझ तक पहुंचाने के लिए फ़रिश्ते मुकर्रर कर रखें हैं, जो ज़मीन पर गश्त करते रहतें हैं।” (नसाई-1285)
6. जुमे के दिन: आप (ﷺ) ने फ़रमाया: “जुमे के दिन मुझ पर कसरत से दुरूद भेजा करो। वह मेरे सामने पेश किया जाता हैं।” (बैंहकी, हाकिम – सही )
6. दुआ मांगने से पहले (अल्लाह की हम्द व सना के बाद) : “एक शख़्स ने नमाज़ पढ़ी। (नमाज़ के बाद) अल्लाह की हम्द व सना की और अपने नबी पर दुरूद भेजा तो आप सल्ल. ने फ़रमाया ” ऐ नमाज़ी ! दुआ कर, तेरी दुआ कुबूल की जाएगी।” (तिर्मिज़ी – 3223 – सही)
7. गुनाहों से तौबा करते वक्त:
8. तक्लीफ, मुसीबत व रंज व ग़म के मौके पर: जब उबई बिन कअब रज़ि. ने अल्लाह के रसूल सल्ल. से कहा कि मैं अपनी दुआ का सारा वक्त आप पर दुरूद भेजने के लिए वक्फ करता हूँ तो आप सल्ल. ने फ़रमाया: “यह तेरे गुनाहों की बख्शिश का ज़रिया होगा।” (तिर्मिज़ी – मिश्कात – 868 – हसन)
9. अल्लाह के रसूल सल्ल. का इस्में मुबारक सुनने पढ़ने या लिखने के वक्त। (तिर्मिज़ी – 3283)
10. मस्जिद में दाखिल होते और मस्जिद से निकलते वक्त। (इब्ने माजा – 771, 772-सही)
11. नमाज़ से फारिग होने के बाद। (अबु यअला – हसन)
12. हर मजलिस में: कुछ लोग मिल कर बैठें और अल्लाह का ज़िक्र न करें और न नबी सल्ल. पर दुरूद भेजें। तो क़यामत के दिन वह मजलिस उन लोगों के लिए व बाल की वजह होगी। अल्लाह चाहे तो उन्हें सज़ा दे या चाहे तो उन्हें माफ़ कर दें।” (तिर्मिज़ी – 3133 – हसन)
13. सुबह व शाम में: “जिसने दस दफा सुबह व दस दफा शाम को मुझ पर दुरूद भेजा। उसे क़यामत के दिन मेरी सिफारिश हासिल होगी।” (तबरानी – हसन)
गैर मसनून दुरूद व सलाम:
दुरूदे ताज, दुरूदें लक्खी, दुरूदे हज़ारा, दुरूदे मुकद्दस, दुरूदे अकबर, दुरूदे माही, दुरूदे तन्जीना, अहदनामा और दुआ ए गंज अल अर्श वग़ैरह! ये वो दुरूद, अज़कार व वज़ाइफ है जिनका अल्लाह की किताब या हदीसे रसूल सल्ल. में कोई ज़िक्र नहीं। ये सब खुद साख़्ता है, बाद में गढ़े गए हैं इनमें से कुछ भी आप सल्ल. से साबित नहीं।
अल्लाह तआला से दुआ है कि वह हमें अपने नबी मुहम्मद (सल्ल.) पर ज़्यादा से ज़्यादा दुरूद भेजने की तौफ़ीक़ दे और उन्हें हमारे लिए ज़खीरा ए आखिरत बनाए । आमीन!
माखूज़: दुरूद शरीफ़ के मसाइल
अज़ – मुहम्मद इक़बाल जीलानी
✒️ आपका दीनी भाई: मुहम्मद सईद
मो. 9214836639, 9887239649
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