भारत मे यह पूरी तरह मान लिया गया है कि मुसलमान एक जाहिल ,गंवार, फूहड़ ,गंदी और बुध्दू क़ौम है, जबकि मेरा मानना है कि क़ुदरती सलाहियत यानि नैचुरल टैलेंट जितना मुसलमान मे है उतना दुनिया की किसी दूसरी क़ौम मे नही,
हम सिर्फ़ आज के पसमंज़र मे बात करते हैं , किसी भी ख़राब गाड़ी की सिर्फ़ आवाज़ सुनकर उसके इंजिन की ख़राबी बताने की सलाहियत सिर्फ़ इन्ही मे है , कौन सी इमारती लकड़ी कितना सूखेगी, कितना ऐंठेगी , कितना बिझेगी यह भी सिर्फ़ यही जानते हैं , कौन सी दीवार किस तरफ़ कितना झुक गई है सिर्फ़ आंखों से देखकर यही बता सकते हैं ,
लोहे की रैलिंग , कपड़े की कढ़ाई के नये नये डिज़ाइन कौन तैयार करता है ? यही जाहिल लोग , बाग़ मे फ़सल आने से पहले सिर्फ़ बोहर देखकर यह बता देना कि इस बाग़ मे लगभग कितने कुंतल फ़सल आयेगी यह बताना आसान नही , लेकिन यह बता देते हैं , खड़े जानवर को देखकर यह बता देना कि इसमे कितना मांस निकलेगा या मांस देखकर यह बताना कि यह जानवर किस वज़न का था , किस उम्र का था और यहां तक कि किस जंगल का था यह भी यही बता पाते हैं , आप किसी रजवाहे , नहर पर नहाते बच्चों को देखिये , कौन ज़्यादा ऊंचे से कूद रहा होगा और कौन दूर तक देर तक देर तक तैर रहा होगा ? पहचान लेना यही मिलेंगे ,
इसके अलावा किसी भी छोटी बस्ती के किसी मैदान मे जाइये ,वहां खैलते बच्चों को दैखिये किसी भी खैल मे सबसे ज़्यादा जी जान लगाते यही मिलेंगे , कंचे खैलने से लेकर शिकार खेलने तक इनसे अच्छा निशानेबाज़ आपको नही मिलेगा , एक और बात पर ग़ौर कीजिये बिना डिग्री वाले जितने कामयाब डॉक्टर मिलेंगे वो सब यही होंगे , घरों पर बच्चे पैदा कराने वाली कामयाब दाइयां भी सब इन्ही मे थीं ,
होशियार ड्राइवर्स छांट लीजिये ,90 % इन्ही मे निकलेंगे , यह सारे कारनामे बिना तालीम तरबियत वाला मुसलमान कर रहा है क्योंकि दो चीज़ें मुसलमानों के डी एन ए मे हैं एक हौंसला और एक जुझारूपन , भारत मे यह क़ौम आज़ादी के बाद से ही अपने ख़राब दौर से गुज़र रही है , जिस दिन इसकी तालीम तरबियत , रोज़गार की सैटिंग सही बैठ गई यह इस मुल्क की ख़िदमत बाक़ी सब क़ौमों से बेहतर तरीक़े से कर पायेगी , इसका मुझे पूरा यक़ीन है , शायद इसलिये सियासतदारो ने मुस्लिमों को शिक्षा और रोज़गार से दूर किया है ,.
– नदिम अख्तर भाई की कलम से
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