अल्लाह तआला ने इन्सानों की पैदाइश से हज़ारों साल पहेले फ़रिश्तों के ज़रिए बैतुल्लाह (खाना-ऐ-काबा) तामीर कराई, यह रूए ज़मीन पर पहेला बाबरकत घर और दुनिया वालों के लिए अमन व सुकून की जगह है, फिर हज़रत आदम अलैहि सलाम ने दुनिया में आने के बाद बैतुल्लाह की तामीर फ़रमाई, बाज़ रिवायतों के मुताबिक तूफाने नूह (अ०) के मौके पर अल्लाह तआला ने हिफाज़त के लिए इस घर को आस्मान पर उठा लिया था, फिर अल्लाह के हुक्म से हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम व इस्माईल अलैहि सलाम ने इस की तामीर फ़रमाई और फ़रिश्ते जिब्रीले अमीन जन्नत से एक कीमती पत्थर ले कर आए जिस को बैतुल्लाह के कोने में लगाया गया और दूसरा वह जन्नती पत्थर है जिस पर हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम खड़े हो कर बैतुल्लाह की तामीर करते थे, मुअजिज़ाना तौर पर यह पत्थर काबा की दीवारों के साथ बलंद हो जाता था। यह मकामे इब्राहीम के नाम से मशहूर है।
जब तवील ज़माना गुजरने की वजह से काबा की दीवारें कमज़ोर पड़ गयीं, तो हुजूर (ﷺ) की नुबुब्बत से पहले कुरैशे मक्का ने हतीम का हिस्सा छोड़ कर और बैतुल्लाह का पिछला दरवाजा बंद कर के इसास्त को मुरब्बा (चौकोर) अंदाज़ में बनाया। गर्ज़ तामीरे बैतूल्लाह के साथ तमाम हज व उमरह करने वालों के लिए अल्लाह तआला ने इस का तवाफ़ फ़र्ज़ कर दिया है और इसी घर को तमाम मुसलमानों की इबादत का मरकज़ और क़िब्ला करार दे दिया है।