हजरत इब्ने उमर (र.अ) फ़र्माते हैं के हुजूर (ﷺ) ने जमात की नमाज के लिये जमा करने का मशवरा किया, तो सहाब-ए-किराम (र.अ) ने मुख़्तलिफ राएँ पेश की, किसी ने यहूद की तरह बूक (Beegle) बजाने और किसी ने ईसाइयों की तरह नाकूस (घंटी) बजाने का मशवरा दिया, लेकिन आप (ﷺ) ने पसंद नहीं फ़र्माया।
बल्के सोचने का मौका दिया, उसी रात हज़रत उमर (र.अ) ने ख्वाब में अजान सुनी और एक सहाबी अब्दुल्लाह बिन जैद बिन अब्दे रब्दिही (र.अ) ने भी ख़्वाब में देखा, के एक शख्स अजान के कलिमात कह रहा है, उन्होंने उस को याद कर लिया और आँख खुलते ही रसूलुल्लाह (ﷺ) के पास तहज्जुद के वक्त पहुँचे और ख़्वाब सुनाया।
आप (ﷺ) ने हजरत बिलाल (र.अ) को उन कलिमात के साथ फज्र की अजान देने का हुक्म फर्माया, अजान सुनते ही हज़रत उमर (र.अ) दौड़े हुए आए और अर्ज किया: मैंने भी इसी तरह अज़ान के कलिमात को ख्वाब में सुना है, उस के बाद से ही अजान देने का सिलसिला शुरू हो गया।
इस्लाम में सब से पहले मोअज्जिन हजरत बिलाल (र.अ) हुए और दूसरे हज़रत अब्दुल्लाह बिन उम्मे मकतूम (र.अ) बने। हजरत बिलाल ने फज्र की अजान में सबसे पहले (Assalatu khairum minannaum) यानी नींद से बेहतर नमाज़ है.) कहा जिस को हुजूर ने पसन्द फर्माया।