अशरा ज़ुल हज की फ़ज़ीलत ~ क़ुरानो सुन्नत की रौशनी में

अशरा ज़ुल हज की फ़ज़ीलत ~ क़ुरानो सुन्नत की रौशनी में

۞ बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम ۞

तमाम तारीफे है अल्लाह सुब्हानहु तआला के लिए जो तमाम जहानों को बनाने वाला और उसे पालने वाला है और दुरूदो सलाम हो उसके आखरी नबी मुह्म्मदुर्रसूलुल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम पर।

1. अशरा ज़ुलहिज्जा क्या है (तारुफ़ और इसकी अहमियत) ?

ज़ुलहिज्जा हिजरी (इस्लामी) कैलेंडर  का सबसे आखरी यानि १२ वा महीना है। और इस महीने के पहले १० दिनों को अशरा ज़ुलहिज्जा कहा जाता है। इस महीने को यह फ़ज़ीलत हासिल है कि इस्लाम के ५ सुतूनों (शहादत, नमाज़, रोज़ा, जकात और हज) में से एक अहम सुतून हज को अदा किया जाता है, इसी तरह ईदैन में से एक ईद – ईदुल-अज़हा – इसी महीने की दस तारीख़ को मनाई जाती है। शायद यही वजह है कि इस महीने के पहले दस दिनों की कुरआन व हदीस में बहुत फ़ज़ीलत साबित है, और अल्लाह तआला ने सूरतुल फज्र में जिन दस रातों की क़सम ख़ाई है, उनसे जमहूर मुफ़स्सिरीन ने ज़ुलहिज़्ज़ा की ही दस रातों को मुराद लिया है। अल्लाह तआला ने फरमाया:

❝क़सम है फज्र की और दस रातों की।❞

सूरतुल-फज्र: 1-2

इससे ज़ुलहिज़्ज़ा के दस दिनों की फ़ज़ीलत साबित होती है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि आम लोग इन दिनों की फज़ीलत और अहमियत से बेखबर हैं।

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हदीसों में ज़ुलहिज़्ज़ा के दस दिनों की जो फ़ज़ीलत साबित है वो यह है:

A). अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) कहते हैं कि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया:
अल्लाह तआला को जितना नेक अमल ज़ुलहिज़्ज़ा के पहले दस दिनों में पसंन्द है उतना किसी और दिन में पसन्द नहीं है।’’ आप से पूछा गया कि: हे अल्लाह के रसूल! अल्लाह के रास्ते (मार्ग) में ज़िहाद करना भी?
आप ने जवाब दिया: “हाँ, अल्लाह के रास्ते (मार्ग) में ज़िहाद करना भी, मगर यह कि आदमी अल्लाह की राह में अपनी जान व माल के साथ निकले और कुछ भी लेकर वापस न लौटे।” (और लड़ते लड़ते शहीद हो जाए।)

📕 सहीह बुख़ारी, हदिस: 969, तिर्मिज़ी, हदिस: 757

B). अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) रिवायत करते हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया:
अल्लाह के नज़दीक इन दस दिनों से सबसे ज्यादा नेक अमल करने से ज्यादा पसन्दीदा और कोई दिन नहीं, लिहाजा इन दिनों में ज्यादा से ज्यादा ला-इलाहा इल्लल्लाह, अल्लाहु अक्बर और अल्हम्दुलिल्लाह कहो।” (इसे तबरानी ने मोजमुल कबीर में रिवायत किया है)


2. ज़ुलहिज्ज़ा के अशरे को इतनी फ़ज़ीलत क्यों ?

ज़ुलहिज्ज़ा के दस दिनों में नेक अमल करने की अहमियत और फ़ज़ीलत की वजह क्या है?

बहरहाल! इस बारे में उलेमाए हक़ ने मुख्तलिफ दलाइल पेश की है, लेकिन उसकी हकीकत अल्लाह तआला ही सबसे बेहतर जानता है। इसलिए हमारे लिए वाजिब है कि इसकी फ़जीलत पर इमांन रखते हुए इन दिनों में ज्यादा से ज्यादा नेक अमल करें। क्योंकि इसकी फ़जीलत सही हदीस से साबित है।


3. अरफ़ा के रोजे की फजीलत:

ज़ुलहिज़्ज़ा की नौवीें (9th) तारीख़ को “अरफ़ा” के नाम से जाना जाता है। इस दिन हाजी लोग ‘‘अरफ़ात’’ के मैदान में ठहरते हैं, यानी: सुबह से ले कर सूरज़ ड़ूबने तक वहाॅं पर रहते हैं, और अल्लाह से खूब दूआयें करते हैं। हाजियों के लिए उस दिन का रोजा रख़ना गैर मुसतहब है, क्योंकि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से उस दिन हाजी के लिए रोजा रख़ना साबित नहीं। लेकिन गैर हाजियों के लिए उस दिन रोज़ा रख़ना बहुत ही फ़ज़ीलत वाला अमल है।

अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया:

‘‘अरफ़ा के दिन रोज़ा रख़ने से मुझे अल्लाह से उम्मीद है कि वह पिछले और अगले (दो) साल के गुनाहों को मुआफ कर देगा।’’

तिरमिज़ी, हदीस: 749

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह फ़रमान गैर हाज़ियों के लिए है। क्योंकि इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा फ़रमाते हैं कि मैं ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ हज्ज किया, आप ने अरफ़ा के दिन रोज़ा नहीं रख़ा, अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ हज्ज किया उन्हों ने रोजा नहीं रख़ा, उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ हज्ज किया, उन्हों ने रोजा नहीं रखा़, उसमान रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ हज़्ज़ किया, उन्हों ने भी रोजा नहीं रखा, और मैं भी इस दिन अरफ़ा में रोजा नहीं रख़ता हूँ, और न ही उसका किसी को आदेश देता हूँ, और न ही उससे रोकता हूँ।”


4. सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम का अमल

ऊपर बताई हुई हदीस पर अमल करते हुऐ, सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम ज़ुलहिज्जा के पहले दस दिनों में बहुत दिलचस्बी के साथ नेक आमाल, इबादात और नवाफ़िल का एहतिमाम करते थे।

चुनाँचे इब्ने उमर और अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हुम का यह अमल था कि वे इन दस दिनों में बाज़ार जाते और तेज़ आवाज़ में तकबीरें पढ़ते थे, उन्हें देख़ कर दूसरे लोग भी तकबीरें पढ़ने लगते थे।’’ (सहीह बुखारी)

सईद बिन जुबैर के बारे में आता है कि वह ज़ुलहिज्जा के दस दिनों में नेक आमालो में बहुत मेहनत और जद्दो जहद करते थे। (बैहक़ी, अत्तरगीब वत-तरहीब 2/198)


5. तकबीरों का मसअला

सहीह बुख़ारी से यह बात वाजेह है कि ज़ुलहिज़्जा के दस दिनों में जहाँ नेकी के दूसरे आमाल बहुत दिलचस्बी और ध्यान से किया जाएं, वहीं पर तक़बीरों का भी ज़्यादा से ज़्यादा एहतिमाम करने की ताकीद है।

हमारे यहाँ यह रिवाज है कि ९ ज़ुलहिज़्जा को फ़ज्र की नमाज़ से तक़बीरों का पढ़ना शुरू किया जाता है, और हर फ़र्ज़ नमाज़ के बाद पढ़ी जाती है और यह सिलसिला १३ ज़ुलहिज़्जा की अस्र की नमाज़ तक़ चलता है। और यह तक़बीरें निम्नलिखि़त श्ब्दों के साथ पढ़ी जाती हैं:

❝अल्लाहु अक्बर, अल्लाहु अक्बर, ला-इलाहा इल्लल्लाह, वल्लाहु अक्बर, अल्लाहु अक्बर, वलिल्लाहिल हम्द❞

यह तक़बीर के अलफ़ाज़ सुनन दाराकु़तनी (किताबुल ईदैन) की एक रिवायत में वर्णन हुआ है, लेकिन यह रिवायत ज़ईफ़ होने की वजह दलील की तौर पे पेश करना काफी नहीं है, लेकिन फ़िर भी अली और इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हुमा की एक सहीह असर से यह बात साबित होती है कि अरफा की सुबह से ले कर अय्यामे तश्रीक़ (11,12,13 ज़ुलहिज़्जा) के आखिर तक तक़बीरें पढ़ी जायें। (फ़त्हुलबारी )

इसलिए तक़बीरें तेरह (13) जु़लहिज्जा के अस्र की नमाज़ तक पढ़ना चाहिऐ, और यह सिर्फ नमाज़ों के बाद ही न पढ़ी जाए बल्कि दूसरे तमाम औक़ात में भी इसके पढ़ने का एहतिमाम किया जाए। (अल्लाह तआला हमे अमल की तौफीक दे)

इसी तरह तक़बीर के अल्फ़ाज़ जो ऊपर बताये है अगरचे सही हदीस से साबित नहीं हैं, लेकिन उमर और अब्ब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत से साबित है, इसलिए यह तकबीर भी पढ़ी ज़ा सकती है। परन्तु हाफ़िज़ इब्ने हजर ने सलमान रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत तक़बीर के इन अल्फाज़ो में:

‘‘अल्लाहु अक्बर, अल्लाहु अक्बर, अल्लाहु अक्बर कबीरा’’ को सबसे सही क़रार दिया है।

फत्हुल बारी, किताबुल ईदैन, हदीस 2/595

6. कुर्बानी का इरादा रख़ने वाला ज़ुलहिज्जा के दस दिनों में बाल न कटवाए:

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया:

‘‘जब तुम ज़ुलहिज्जा का चाँद देख लो, और तुम में से कोई शख्स कुर्बानी करने का इरादा रख़ता हो, तो वह अपने बाल और नाख़ून न काटे।’’

सहीह मुस्लिम, हदीस संख्या: 1977

इस हदीस से यह बात बिल्कुल साफ़ हो जाती है कि कुर्बानी की नीयत रख़ने वाले शख्स को बाल बनवाने और नाखून काटाने से बचना चाहिए।


7. क़ुरबानी की ताकत न रखने वाले लोग क्या करे ?

एक हदीस का मफ़हूम है कि एक आदमी ने कुर्बानी करने की ताक़त न रख़ने का जिक्र किया, तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उस आदमी से फ़रमाया कि

“तुम दस ज़ुलहिज्जा को अपने बाल बनवा लेना, नाखून काट लेना, मूँछें बनवा लेना और नाफ़ के नीचे का बाल साफ कर लेना, यही अल्लाह के यहाँ तुम्हारी कुर्बानी है।”

सुनन अबी दाऊद, किताबुल उजि़्हया, हदीस: 2788

इस हदीस की बुनियाद पर यह कहा जा सकता है कि कुर्बानी की ताकत न रख़ने वाला आदमी अगर ज़ुलहिज्जा के दस दिनों में हजामत वगैरा न कराए, और दस ज़ुलहिज्जा को ईदुल अज़हा के दिन हजामत वगैरा कर ले, तो उसे भी कुर्बानी का सवाब मिल जाएगा, लेकिन यह हदीस सनद के एतिबार से ज़ईफ़ (कमज़ोर) है।

चुनाँचे अल्लामा अल्बानी ने इस हदीस को ज़ईफ़ अबू दाऊद में वर्णन किया है, इस लिए यह हदीस सही नहीं है और न ही इससे किसी मसअले को साबित किया जा सकता है।

लिहाजा ज़ुलहिज्जा के दस दिनों में हजामत न करवाने का हुक्म सिर्फ उस शख्स के लिए है जो कुर्बानी करने की नीयत कर चुका हो, या वह जानवर ख़रीद चुका हो, या कुर्बानी की नीयत से उसने जानवर पाल रख़ा हो, तो ऐसे लोग ज़ुलहिज्जा के दस दिनों में बाल और नाखून वगैरा न कटायें।

बहरहाल तफ्सीली जानकारी के लिए इस वीडियो बयांन का मुताला करे।

और भी देखे :

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे। आमीन।


Discover more from उम्मते नबी ﷺ हिंदी

Subscribe to get the latest posts sent to your email.




WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now

Comment

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *